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भ्रष्टाचार पीड़ित की खोज अभी जारी है !!

राजनीतिक सरगर्मियॉ
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गत कुछ समय से निरंतर भ्रष्टाचार से प्रभावित जनमत को एक मंच तले लाकर आंदोलन की ताल ठोंकने वाली अन्ना टीम का दावा कहीं न कहीं बड़े पैमाने पर विफल होता नजर आ रहा है। टीम अन्ना के सिपहसालार हैरत में हैं कि आखिर रामलीला मैदान की वह भारी भीड़ पुनः क्यों नहीं दिखाई दे रही है। कहां खो गई है वह जमात जिसके भरोसे इतना बड़ा परिवर्तन लाने का सपना देखा जा रहा था। स्वयं अन्ना हजारे के लिए भी ये एक बड़े सदमे की तरह है क्योंकि शायद उन्हें ये भरोसा था कि अब तो देश की जनता जाग चुकी है, उसे बस एक हुंकार की जरूरत है और वह दौड़ी चली आएगी। अन्ना का अंतस कहीं से भी ये मानने को तैयार नहीं दिखता कि उनका दावा खोखला साबित हो चुका है।


एक बार हम इस मसले को पूरी तरह खंगालने की कोशिश करें ताकि ये जाना जा सके आखिर देश की जनता की इस तरह के आंदोलन में रुचि क्यों नहीं हो पा रही है और आखिरकार इस आंदोलन की परिणति क्या होगी। याद कीजिए वह वक्त जब पहली बार जंतर-मंतर से अन्ना हजारे ने लोकपाल लाओ-भ्रष्टाचार मिटाओ का नारा दिया। इंडिया गेट पर मोमबत्ती जलाकर प्रतिरोध जाहिर करने वाला शहरी युवा वर्ग और तड़क-भड़क में यकीन रखने वाले सोशलाइट वर्ग के सहारे टीम अन्ना एक प्रकार के दिवा स्वप्न के आगोश में खोती नजर आई थी। इसके बाद हुआ रामलीला मैदान आंदोलन पूरी तरह से उनसे समर्थित नजर आया जो कहीं से भी भ्रष्टाचार के शिकार नहीं बने बल्कि जिन्हें व्यवस्था का लाभ कदम-कदम पर मिलता रहा है। यानि भ्रष्ट व्यवस्था से संपोषित लोगों की जमात का समर्थन पाकर अन्ना टीम की बांछें खिलती नजर आईं और फिर एक मूक सहमति से आंदोलन वापस ले लिया गया।


लेकिन इन सबके बीच जो बात काबिले गौर है उस पर ध्यान देने की जरूरत है। सही मायने में भ्रष्टाचार पीड़ित वर्ग इस आंदोलन से अभी तक नहीं जुड़ पाया। व्यवस्था की अराजकता के शिकार लोग पूरी जांच पड़ताल के बाद फूंक-फूंक कर कदम रखते है। अन्ना टीम ऐसे पीड़ित लोगों तक अभी भी अपनी पहुंच नहीं कायम कर सकी है क्योंकि अभी भी उसे अपने कृत्यों और वचनों में समभाव कायम करके दिखाना बाकी रह गया है। सही रूप से देखा जाए तो टीम अन्ना की पूरी कार्यप्रणाली ऐसी नजर आती रही है जैसे उनका मंतव्य भ्रष्टाचार विरोध की आड़ में व्यवस्था पर अपना शिकंजा कसना हो ताकि भविष्य में समानांतर सत्ता का नया सूत्र निर्मित किया जा सके। बुजुर्ग समाजसेवी अन्ना हजारे के मजबूत कंधे के सहारे कुछ छुपे हुए उद्देश्यों वाले लोग एक बड़े हितसाधन की चेष्टा में संलग्न हैं और यह छुपा उद्देश्य भ्रष्टाचार मिटा कर सुशासन लाना तो कतई नहीं मालूम होता है।


पग-पग पर भ्रष्टाचार से पीड़ित आखिर क्योंकर ऐसे आंदोलन को समर्थन देगा जो आखिरकार उनके स्वयं के शोषण की एक नई आधारशिला कायम कर रहा हो। सत्ता पक्ष और टीम अन्ना का गठजोड़ कहें या विपक्ष का षडयंत्र इस आंदोलन को केवल उन्हीं से समर्थन मिला जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से व्यवस्था पोषित रहे हैं। इस जमात के लिए पिछला आंदोलन कौतुक व मनोरंजन का नया आयाम नजर आया और इसने उसका पूरा आनंद भी लिया किंतु यह वर्ग किसी भी क्रांति का वाहक नहीं बन सकता। इस बार भी टीम अन्ना इस वर्ग के साथ आने की उम्मीद कर रही है तो उसे समझना चाहिए कि ऐसा होने से रहा। हां, आंदोलन में शामिल लोगों की नीयत तथा आंदोलन का वास्तविक उद्देश्य स्पष्ट तौर पर सामने लाए जाने पर वास्तविक पीड़ित लोग जरूर आगे आएंगे तथा व्यवस्था परिवर्तन में भागीदारी करेंगे किंतु इसके लिए अभी की तरह बड़ी-बड़ी बयानबाजियों की जगह धैर्य, संयम तथा निरंतरता का संयोग जरूरी है।


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