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मेरी ये खामोश धड़कने,
धक से क्यूँ कर जाती हैं।।
रह जाता हूँ उसे देखते,
नज़र क्यूँ वो चुराती हैं।।
मेरे दिल के ख़्वाबो को,
क्यूँ अनदेखा कर जाती हैं।।
मेरी ये खामोश धड़कने,
धक से क्यूँ कर जाती हैं।।
मुस्कान नयी जस तीर कही,
गली से जब वो गुजरती हैं।।
अनदेखा करती हैं मुझको,
खिड़की पे जब वो संवारती हैं।।
क्या बुनती हैं ताना-बाना वो,
बोलने से क्यूँ हकलाती हैं।।
मेरी ये खामोश धड़कने,
धक से क्यूँ कर जाती हैं।।
कितना सुन्दर मुखड़ा उसका,
सिन्दूरी रंगत हो जैसा।।
क्यूँ उसके दो होठ गुलाबी,
कुछ कहने से कतराती हैं।।
मेरी ये खामोश धड़कने,
धक से क्यूँ कर जाती हैं।।
अबकी बार वो नहीं बचेगी,
मेरी बंद जुबान खुल कर रहेगी।।
अबकी मैं हिम्मत करूँगा,
दिल की बात उसे कह दूँगा।।
पर उसको फिर देख गुजरते,
साहस साथ छोड़ जाती हैं।।
दिल की बात मेरे दिल में ही,
क्यूँ दब के रह जाती हैं।।
फिर ये खामोश धड़कने,
धक से क्यूँ कर जाती हैं।।
-रोहित ठाकुर
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