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तेरी यादें

kalam ki awaaz
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मेरे आँसुओ की परतें उधेड़ के देखो,
तेरे सिवा किसी और का नाम न होगा,
इश्क़ के गलियों में नाम पुकार के देखो,
हम सा तो कोई और बदनाम न होगा,

चाहत में हमारा तुम पे वो हक़ जताना,
कभी तेरा वो मोहब्बत में मुझको सताना,
हर बात पे पहले ज़रा सा रूठ जाती थी,
तो चाँद हथेली पे रख मेरा घंटो मनाना,
यादो की बस्ती में कभी झाँक के देखो,
तेरे सिवा इस इश्क़ का अंजाम न होगा,
इश्क़ के गलियों में नाम पुकार के देखो,
हम सा तो कोई और बदनाम न होगा,

सिक्को वाली बूथ पे सिक्के को तड़पना,
मिनटो की चुप्पी में बस सिक्को का खनकना,
तेरी नींद भी आयी तो अपनी साँसे तक रोका,
छोटी सी बात पे वो तेरा बेबाक तुनकना,
बिस्तर की सिलवटों पे पड़ी आँसू को तो देखो,
लुढ़कते हुए बूँद का कुछ इल्ज़ाम न होगा,
इश्क़ के गलियों में नाम पुकार के देखो,
हम सा तो कोई और बदनाम न होगा,

सर्दी की सर्द रातो में नंगे पांव वो चलना,
छत की मुंडेर पे बैठ मेरा घंटो तुझे ताकना,
सब को खबर थी इश्क़ की चिंगारी लगी हैं,
सर झुका के आना तेरा वैसे ही निकलना,
प्रेमदिवस पे तेरा वो गुलाबी खत को तो देखो,
वो लफ़्ज़ों को भी कागज़ में आराम न होगा,
इश्क़ के गलियों में नाम पुकार के देखो,
हम सा तो कोई और बदनाम न होगा,

शादियों के रंगीनियों में वो अपने इश्क़ के चर्चे,
चार जोडे मिले उस दिन पर बस दो के थे खर्चे,
यूँ जबरदस्ती तेरा लड्डू परोसना याद हैं हमको,
बीते उम्र के भी जुबान पे थे अपने प्यार के पर्चे,
आज जलती बुझती जुगनुओं सी बल्ब को देखो,
उनका भी चेहरा उदासी सा हैं वैसा शाम न होगा,
इश्क़ के गलियों में नाम पुकार के देखो,
हम सा तो कोई और बदनाम न होगा।।

-रोहित ठाकुर

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