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बॉलीवुड में गत एक वर्ष में नए आयाम स्थापित हुए और फिल्मों का दमदार कंटेंट स्टारडम पर हावी रहा। दर्शकों ने बड़े स्टार्स की उन फिल्मों को सिरे से नकार दिया जिनकी कहानी में नयापन नहीं था। मुख्यत: इनमें जीरो, ठग्स ऑफ हिंदुस्तान, रेस 3, यमला पगला दीवाना:फिर से, साहब बीवी और गैंगस्टर 3, फन्ने खां जैसी बड़े बजट की फिल्में हैं जो सुपरस्टार्स की मौजूदगी के बावजूद बॉक्स ऑफिस पर औंधे मुँह गिरी। आजकल फ़िल्म दर्शक सोशल मीडिया पर कहानी को टटोलता है, फ़िल्म समीक्षकों की राय जानता है और फिर निर्णय लेता है कि फ़िल्म को देखा जाए या नहीं। अगर कहानी में कुछ नयापन नहीं है तो दर्शक शुरुआती दौर में ही फ़िल्म को नकार देते हैं।
पिछले एक वर्ष में प्रदर्शित हुई फिल्मों का आकलन किया जाए तो यह विदित है कि कंटेंट और दमदार अभिनय आधारित फिल्में ही दर्शकों का दिल जीतने में कामयाब हुई हैं जैसे कि हिचकी, 102 नॉट आउट, स्त्री, परमाणु, अंधाधुन, बधाई हो इत्यादि। इस ट्रेंड के महत्व को समझते हुए फ़िल्म निर्माता और निर्देशक अच्छी कहानी के चुनाव पर पूरा ध्यान दे रहे हैं और कलाकारो का चयन भी सोच समझकर कहानी के अनुरूप कर रहे हैं। परिणामस्वरूप अच्छे स्क्रिप्ट राइटर्स की मांग बढ़ गयी है । कमजोर कहानी को लेकर फ़िल्म का निर्माण करना आग में खेलने जैसा और अपने करियर को दांव पर लगाना है । राजू हिरानी, संजय लीला भंसाली, राकेश रोशन और सूरज बड़जात्या जैसे उच्च कोटि के निर्देशक कहानी के लेखन पर पूरा समय निवेश करते हैं और पूर्णतया सन्तुष्ट होने पर ही किरदार को ध्यान में रखते हुए कलाकारों का चयन करते हैं।
इसी वजह से इनकी फिल्मों की सफलता की दर अपेक्षाकृत अधिक है। अच्छा कंटेंट फ़िल्म की सफलता में अहम रोल अदा करता है। अगर अच्छी कहानी को दर्शकों तक पहुंचाने के लिये उम्दा कलाकार फ़िल्म में अभिनय करते हैं तो यह सोने पर सुहागा होने जैसा है। लेकिन अगर कहानी कमज़ोर है तो सुपरस्टार्स भी दर्शकों को सिनेमाघर में बांध कर नहीं रख सकते। कहानी को इस तरह से पिरोया जाए कि दर्शकों का जुड़ाव फ़िल्म से बना रहे। फ़िल्म इंडस्ट्री का वो दौर अब गया जब बड़े स्टार की मौजूदगी फ़िल्म को हिट करवाने की गारण्टी होती थी। फ़िल्म के व्यापक प्रचार प्रसार से दर्शक आ सकते हैं लेकिन कहानी में दम होगा तभी फ़िल्म चलेगी ।
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