Menu
blogid : 26822 postid : 9

‘मॉब लिंचिंग’ अमेरिकी का सभ्यता का एजेंडा और उदाहरण

Rohit singh
Rohit singh
  • 1 Post
  • 0 Comment

“जिनके घर शीशे के होते है वो दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं फेंकते हैं”

बीते कुछ सालों में जिस तरह से भारत में एक के बाद एक समय रहते नई तरक्की हो रही है उससे ध्यान हटाने के लिए रोज नए-नए प्रोपोगेन्डा और एजेंडा के साथ कुछ लोग हाजिर हो रहे हैं. समझने की जरूरत ये है की कुछ लोग कौन है. गौरतलब है की 2014 में पार्टी विशेष की जीत के बाद भी इसी प्रोपोगेन्डा को बिहार विधानसभा चुनाव में प्रयोग के तौर पर किया गया था और बिहार चुनाव में हार के बाद उसे हार का मुख्य मुद्दा बताया गया. एक बार  उसी  पार्टी की जीत के बाद फिर इस इसे मुद्दा बनाया जा रहा है. जिन  इसे मुद्दा बनाया जा

क्या जानबूझकर “मॉब लिंचिंग” शब्द का उपयोग किया जा रहा है और कराया जा रहा है?
क्या वो ये एजेंडा है और ये शब्द आपके मुंह में डालने की कोशिश हो रही है?
क्या अमेरिका, ब्रिटेन जैसे देश अपनी कमजोरी (मॉब लिंचिंग) छुपाने के लिए भारत पर आरोप लगा रहे हैं? तब सैकड़ों लोगों की भीड़ के सामने पेड़ों या पुलों से लटकाकर पहले अंग-भंग कर और जिंदा जलाकर घोर अमानवीय तरीके से हत्याएं की जाती थीं.

लिंचिंग शब्द का जनक अमेरिका खुद

लिंचिंग का सबसे क्रूरतम इतिहास संयुक्त राज्य अमेरिका का रहा है
‘लिंचिंग’ शब्द अमेरिका से ही आया है जिसे कुछ लोग विलियम लिंच, तो कुछ विद्वान चार्ल्स लिंच नाम के एक कैप्टन से जोड़ते हैं. कहा जाता है कि अमेरिकी क्रांति के दौरान वर्जीनिया के बेडफर्ड काउंटी का चार्ल्स लिंच अपनी निजी अदालतें बिठाने लगा और अपराधियों तथा विरोधी षड्यंत्रकारियों को बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के सजा देने लगा. धीरे-धीरे ‘लिंचिंग’ के रूप में यह शब्द पूरे अमेरिका में फैल गया. इस अत्याचार का सर्वाधिक शिकार अमेरिका के दक्षिणी हिस्से में बसे अश्वेत अफ्रीकी-अमेरिकी समुदाय के लोग हुए. लेकिन बाद में मैक्सिकन, इतालवी और स्वयं श्वेत अमेरिकी भी इसके शिकार हुए.

ये क्या है?

भारतीयों पर अमेरिकी भीड़ का हमला

अमेरिका के कैलिफोर्निया में एक गुरुद्वारे के ग्रंथी पर घर में घुसकर हमला करने की घटना सामने आई।अमेरिका के स्‍थानीय मीडिया के मुताबिक, घृणा अपराध (Hate Crime) की यह घटना सैन फ्रांसिस्को से 160 किलोमीटर दूर स्थित एक गुरुदारे में घटी है। बताया जा रहा है कि एक स्थानीय युवक गुरुद्वारे के परिसर में उनके मकान की खिड़की तोड़ कर अंदर घुस आया और उसने पुजारी पर हमला कर दिया। पुजारी अमरजीत सिंह ने बताया कि हमले के दौरान युवक ने उन्हें अपने देश वापस जाने के लिए कहा और गाली-गलौज भी की। इससे ग्रंथी काफी डर गए हैं। अमरजीत सिंह ने यह भी बताया कि गुरुद्वारे में घुसे युवक ने नकाब पहना हुआ था। उसके हाथ में औजार जैसा कुछ था, जिससे उसने खिड़की तोड़ी थी। हमला करने वाले युवक ने जोर-जोर से चिल्लाकर उन्हें अपने देश वापस जान के लिए कहा और मुंह पर मुक्‍का मारा।

अमेरिकियों द्वारा अमेरिकियों पर ही हमला

11 जुलाई 2019 – अमेरिका के फिलाडेल्फिया में बच्चों समेत कार चोरी करने पर एक शख्स को भीड़ ने पीट-पीट कर मौत के घाट उतार दिया. मृतक की पहचान एरिक हुड के रूप में हुई है. उसकी उम्र 55 साल बताई गई है. मॉब लिंचिंग की यह वारदात 11 जुलाई 2019 को जब हुई तब एरिक हुड ने बच्चों समेत कार चुराई. कार में तीन बच्चे बैठे हुए थे.

अमेरिका विभिन्न देशों की धार्मिक आधार पर हमले की रिपोर्ट जारी करता है जिसमें उसे सबसे ज्यादा चिंता वहां के अल्पसंख्यकों की होती है ऐसा रिपोर्ट में कहा जाता है. हाल ही में भारत के लिए भी ऐसी ही फर्जी रिपोर्ट जारी की गई है लेकिन क्या अमेरिका में हो रहे मॉब लिंचिंग का हिसाब है, ऐसी लिंचिंग जिसमें उनके अपने नागरिक अपनों पर भी कर रहे हैं और भारतीयों पर भी कर रहे हैं एक उदाहरण देखिये-

1922 अमेरिका में गोरा बनाम काला और काला धब्बा

1922 अमेरिका (नीग्रो समुदाय के खिलाफ हमले) Chicago Commission on Race Relations   द्वारा 1922 में प्रकशित रिपोर्ट के अनुसार नीग्रो लोगों पर सफेद अमेरिकन भीड़ ने अत्याचार किया उन्हें बेघर किया भीड़ द्वारा घर, दुकान जलाए गए. हजारो नीग्रो परिवार को घर छोड़कर मजबूरन भागना पड़ा जो बच गए उन्हें नौकर बनाकर गोरो द्वारा रखा गया. अमेरिका के इतिहास में वो घटना आज भी काला धब्बा है जिसे अमेरिका याद भी नहीं रखना चाहता है.

इन हमलों में गोरा बनाम काला की लड़ाई लड़ी गई जिसमें काले (नीग्रो) पर अत्याचार अपने चरम पर थी. बिखरे टूटे घरों का फोटो आज भी चींख-चींख के गवाही दे रही है उस अत्याचार का जो मानवता को भी शर्मसार कर दे.

सवाल हमसे नहीं अमेरिका से पूछा जाए की आप क्या कर रहे थे जब इतनी भयावह घटनाएं भीड़ की शक्ल में हो रही थी. अमेरिकी भाषा में कहे तो मॉब लिंचिंग के इन सत्य घटनाओं का कोई हिसाब है. फर्जी कहानी बनाकर दूसरों पर अपना एजेंडा थोपने से पहले अमेरिका को अब समझना होगा की भारत की तस्वीर बदल चुकी है. ये 1984 वाला भारत नहीं है.

संयुक्त राज्य अमेरिका के दक्षिणी राज्यों में इस तरह की हत्याएं शुरू हुईं, तो जहां 1890 में केवल 137 ऐसी घटनाएं सामने आईं, वहीं दो साल बाद 1892 में यह आंकड़ा बढ़कर 235 हो चुका था.

झूठा इतिहास लिखने की कोशिश करने वालों का भी इतिहास होता है कुछ ऐसा ही अमेरिका का भी है.

अमेरिका स्थित ‘नेशनल एसोसिएशन फॉर दी एडवांसमेंट ऑफ कलर्ड पीपुल’ के एक आंकड़े के मुताबिक सन् 1882 से 1968 तक अमेरिका में 4,743 लोगों की हत्या भीड़ द्वारा की गई. लेकिन लिंचिंग के शिकार लोगों में जहां 3,446 अश्वेत अफ्रीकी अमेरिकी थे, वहीं 1,297 श्वेत लोग भी थे.

भारत का इतिहास मानवाधिकार के सदियों से सबको सिखाने वाला रहा है. विश्व ने भारत से दया भाव सीखा है.

दया भूतेष्वलोलुप्त्वं मार्दवं ह्रीरचापलम्
-ये भारत का भाव है

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh