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व्यंग्य: अमेरिका के ‘चाहत’ और भारत की ‘उम्मीद’ का हुआ मिलन

रोहित श्रीवास्तव
रोहित श्रीवास्तव
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जैसा की पहले से ही अनुमानित था ‘सुषमा काकी’ का हक़ मारते हुए संबंध स्थापित करने वाले नरेंद्र मोदी सारी मोह-माया, रीति-रिवाज और दुनिया के बंधन तोड़ते हुए जा पहुंचे अपने ‘सखा’ ओबामा को एयरपोर्ट पर लेने। उधर पुष्पक-विमान के द्वार खुले ही थे कि मोदी का चेहरा खुशी के मारे चमचमा उठा जिसकी चमक के सामने चाँद की ‘चमकीली-चाँदनी’ भी फीकी पड़ जाए।

खगोलीय विशेषज्ञो की माने तो ऐसा ‘संयोग’ और मन को मोहने वाले ‘आत्मीय-दृश्य’ सदियों मे एक बार देखने को मिलते हैं। एक तरफ अपने सखा के निमंत्रण पर आए सबसे प्राचीन लोकतन्त्र के मुखिया बाराक ओबामा थे तो दूसरी ओर दुनिया के सबसे बड़े लोकतन्त्र की सत्ता पर फतह पाने वाले मुकद्दर के सिकंदर नरेंद्र मोदी थे, होना क्या था, दोनों ने एक-दूसरे को आलिंगन मे ऐसे लिया कि आकाश मे बिजली चमकने लगी, बादल गरजने लगे, समुद्र मे ज्वार-भाटा बनने लगे, चीन और पाकिस्तान की छाती पर साँप लोटने लगे और ‘मिशाल’ ऐसी बनी की ‘मिशेल’ मजबूर होने लगे। इससे पहले ऐसे दृश्य द्वापर युग मे ‘कृष्ण-सुदामा’ मिलान पर देखे गए थे। आश्चर्य की बात है सुदामा की तरह ओबामा भी अपने मन मे एक संभावनाओ का समुंदर लेकर आए थे। याद रहे मित्र कृष्ण की तरह मोदी ने भी अपने सखा ओबामा को निराश नहीं किया है।

वाकई मे मोदी ने ओबामा का ऐसा भव्य स्वागत-सम्मान किया कि दुनिया दंग एवं अचंभित रह गयी। ओबामा अपने बारातीय प्रतिनिधिमंडल के साथ राष्ट्रपति भवन की और बढ़ रहे थे, उधर उनके सत्कार की तैयारी जोरों पर थी, दर्शनाभिलाषियों मे प्रमुख प्रणब दादा और विनीतकर्ता नरेंद्र मोदी बाहे फैलाये खड़े थे। नए रिश्तो की नयी कहानी लिखने की शुरुआत हो चुकी थी। शाही अंदाज़ मे दोनों नातेदार ओबामा-मोदी को हैदराबाद हाउस की वाटिका मे इस रिश्ते पर ‘सलाह-मशवरा’ करते देखा गया, चाय की चर्चा के बहाने मेजबान मोदी भारत और अमेरिका के रिश्तो मे मिठास लाने के प्रयत्न मे अग्रसर दिखे। दोनों के बीच शायद रजामंदी बन गई थी कि दोनों प्रैसवार्ता के दौरान एक-दूसरे की तारीफ के पुल बांधेंगे मसलन वही ‘पुल’ भारतीयो-अमेरीकन के दिलो को जोड़ने का काम करेगा। हुआ भी कुछ ऐसा ही, मोदी ने ओबामा को परम-मित्र बताया, तो ओबामा ने भी मोदी की प्रशंसा मे कोई कमी नहीं छोड़ी।

मिशेल प्रणब ओबामा मोदी
मिशेल प्रणब ओबामा मोदी

ओबामा और उनकी जीवनसंगीनी मिशेल भारत और मोदी की ऐसी अप्रत्याशित मेजबानी देख आत्म-विभोर हो गई थी। ओबामा दंपत्ति बार-बार धन्यवाद कहकर थक नहीं रहे थे। इसके बाद शक्ति-प्रदर्शन की परेड मे अपने सखा मोदी के देश की शक्तियों को देखकर यूएस के मुखिया को अंदाज़ा हो गया था की उनके सखा का देश प्रगति की राह पर बड़े तेजी से बढ़ रहा है। राष्ट्रपति भवन के भोज के एक दृश्य मे देखने को मिला कि ‘मोदी-ओबामा’ एक साथ ज़ोर-ज़ोर से ठहाके लगा रहे हैं, संग खड़े राष्ट्रपति महोदय प्रणब बाबू मुस्करा रहे हैं, तो श्रीमति ओबामा ‘मुह’ बना रहे हैं।

इसी शाही भोज के मेन्यू में गलौती कबाब, सूफियाना फिश टिक्का और चिकन मलाइ टिक्का था। वहीं शाकाहारी खाने में दही कबाब, तंदूरी मशरूम, हरियाली कबाब, साथ ही ब्रोक्ली और वॉलनट का सूप, मस्टर्ड फिश करी, मटन रोगन जोश, चिकन कोरमा, अचारी पनीर, कढ़ी पकौड़ा, पुलाव परोसे गए। मिठे में ओबामा-मिशेल को मालपुआ और रबड़ी परोसी गयी।

एक दृश्य मे जब ओबामा कढ़ी-पकौड़ा खाने के बाद अपना मुह पोंछते हुए नज़र आ रहे हैं तभी वहाँ प्रणब ओबामा से पूंछते है “अरे भाई, आपने बंगाल के रोसगुल्ले खाये की नहीं, ओबामा बोलते हैं “ जी, शुक्रिया। हम मीठा कम खाता है, हम अभी मालपुआ खाया है, हमको बहुत मजा आया है, अभी थोड़ा पचाया है, प्रणब बाबू सब ‘माया’ है, बाटी-चोखा हमको खूब भाया है, मिशेल हमारी मेहरारू को ‘गुलगुला’ बहुत पसंद आवा, प्रणब बाबू। प्रणब एक अधिकारी  से “सब ठीक है? यह भोजपुरी कैसे? अधिकारी: साहब, अभी “लालू जी’ मिले थे इनसे, 10 मिनट बतियाए हैं। प्रणब अधिकारी  से: काली माता, चेक करो ‘मांझी’ को तो नहीं बुलाया गया है ? । 😀 😛

सुना है इस दोस्तनुमा माहौल मे मोदी ने ओबामा के लिए एक गाना भी गाया “दोस्ती, इम्तिहान लेती है, जिसके जवाब मे ओबामा ने गाया “बने चाहे दुश्मन जमाना हमारा, सलामत रहे दोस्ताना हमारा। लोगो की माने तो दोनों का इशारा ‘पाकिस्तान’ की ओर था। 😀 😛

दूरिया घटने लगी थी, नजदीकीया बढ्ने लगी थी, इसी बीच अब बात अमेरिका की दहेजरूपी मांगो की थी, मोदी ने अपनी ‘’उम्मीद’ की खातिर ओबामा की कुछ मांगे मान ली थी जिसपर पहले सहमति नहीं बन पाई थी। ओबामा ने भी एक अच्छे नातेदार के नाते भारत की सुरक्षा परिषद ’की मांग को समर्थन देने का वादा दोहराया। अब पर्दे के अंदर क्या लेन-देन हुआ उसका अभी तक पूरी तरीके से खुलासा नहीं हुआ है, कयासो का दौर अभी भी जारी है। और आखिरकार, अंतत: हो ही गया अमेरिका की ‘चाहत’ और भारत की उम्मीद का ‘मिलन’। माना की इस मिलन के बीच मे बहुत अड़चने आई पर शुक्र है कि सब ठीक-ठाक निपट गया।  अब देखने वाली बात होगी यह अंकुरित रिश्ता जिसमे नयी खाद और उर्वरक डाले गए हैं कितनी ऊंचाइया पाता है, पाकिस्तान और चीन की कितने नींदे उड़ाता है, पौधे मे ही दम तोड़ देगा या एक विशाल वृक्ष बन कर सम्पूर्ण दुनिया को छाँव देता है।

लेखक/व्यंग्यकार  : रोहित श्रीवास्तव

(सच्चाई और व्यंग्य के मिश्रण वाला मेरा यह लेख ‘यथार्थ’ के बेहद करीब है)

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