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“कल होगा कल से भी बेहतर” खालीपन, पर ना घुट घुट जीना, दिखलाता तू सीखा है बेहतर .. सूखे तेरे आंसू कहते, छोड़ आया तू अतीत संभलकर… कुछ रुके रुके तेरे पाँव हैं कहते, है प्रेम ढूंढ़ता तू प्रकृति में खोकर.. थक मत तू अब इतना चलकर कल होगा कल से भी बेहतर… बहुत हुआ अनुभव अब गहरा मत बढ़ा कदम अब फूंक फूंक कर.. गिर जाता जो चोट न होगी तू उठा बहुत है गिर गिर कर.. थक मत तू अब इतना चलकर कल होगा कल से भी बेहतर… मत मार तू अपनी आशा को जो नज़र उठा तू देख पलट कर, बीते कल से लड़ आया तू है अब भी नाज़ नहीं क्या खुद पर? बुझा दिया जो जज्बातो का बन जाएगा तू भी पत्थर.. मत रोक कदम को बढ़ते रह तू ना डाल फ़र्क़ तू तेरे “खुद” में, जैसा था तू वैसा ही रह जो बुझा दिया “खुद” मर जाएगा तनिक भी ना बदला यदि अब भी तू “खुद” विस्मय से भर जाएगा बस तभी ख़ुशी घर कर बोलेगी ले आ लौटा “खुद” अप्रभावित होकर थक मत तू, अब इतना चलकर कल होगा कल से भी बेहतर कल होगा कल से भी बेहतर
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