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प्रधानमंत्री की दौड़ ———–

विचारों का संसार
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प्रधानमंत्री की दौड़
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प्रधानमंत्री की दौड़ में अब तक घोषित रूप से बीजेपी के तथाकथित भीष्म पितामह ही शामिल हुए, इनकी कथनी और करनी के कारण ही कमजोर प्रत्याशी को दौड़ में पराजित नहीं कर पाए, बावरी मस्जिद तोड़ने का ठीकरा भी जो अपने सर पर नहीं ले पाया वह देश को कब तक उठा कर ले जायेगा इस अविश्वास ने ही आज यह प्रश्न खड़ा कर दिया है कि ” पी एम इन वेटिंग कभी दौड़ को जीत सकता है” कभी हिन्दुओ के हम दर्द बने तो कही गैर हिन्दुओ को गले लगाने से भी नहीं चुके, देश के लिये समान कानून बनाने की हिमायत करने वाला तब का यह महा नायक अपनी रट भी पूरी नहीं कर सका. राम लला का मंदिर बनाने की घोषणा करने वाला वीर आज भी अपनी वीरता का परिचय नहीं दे सका. आचरण और व्यवहार के इसी अंतर ने उन्हें कही का नहीं छोड़ा. जिन मुख्यमंत्रियों को आज ये शाबासी दे रहे है उन्ही के प्रदेश में अपनी इज्ज़त नहीं बचा पाये? संत तुकाराम ने अनायास ही यह नहीं कहा था कि ” जैसे बोलावे तैसे वागावे त्याचे वन्दावे पाउले” आज ये भीष्म पितामह अपनी कथनी और करनी के भेद को मिटा देते तो शायद आज मोदी पी एम वेटिंग नहीं होते ? रही मोदी की बात तो वे अपनी हर चाल सम्हल सम्हल कर चाल रहे है. वे ऐसी कोई गलती नहीं कर रहे है कि युद्ध का यह मैदान सरलता से किसी दूसरे के लिये छोड़ दे. वे युध्द के नियमों को जानते है और अपने प्रतिद्वंदियों को पछाडना उन्हें बखूबी आता है. केशु भाई से लेकर शंकर सिंग वाघेला उदहारण है. भगवान कृष्ण के उपदेशो को आत्मसात कर यह योध्दा मैदान में उतरा है. जनता भी इनको आजमाने के लिये अपना दावं लगा रही है .विरोधी कहते है कि इनके पास दूसरे दल नहीं है. मोदी यह जानते है कि दौड़ने और विजयी घोड़े की सवारी हर कोई करता है. विजयी होने पर सब दल इनके साथ रहेंगे. उनका एक एक को साधने की कला  अब से ही दिख रही है, वे कोई भ्रम में नहीं है, युध्द जितने लिये रणनीति फुक फुक कर बना रहे है. भूतपूर्व सैनिको की सभा उनकी रणनीति का हिस्सा है, इन सब को देखकर यह लगता कि पीएम इन वोटिंग का मुहावरा अब अपनी अंतिम सांसे गिनेगा. यह सेनापति अपना युध्द खुद लड़ता है.
प्रधानमंत्री की दौड़
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प्रधानमंत्री की दौड़ में अब तक घोषित रूप से बीजेपी के तथाकथित भीष्म पितामह ही शामिल हुए, इनकी कथनी और करनी के कारण ही कमजोर प्रत्याशी को दौड़ में पराजित नहीं कर पाए, बावरी मस्जिद तोड़ने का ठीकरा भी जो अपने सर पर नहीं ले पाया वह देश को कब तक उठा कर ले जायेगा इस अविश्वास ने ही आज यह प्रश्न खड़ा कर दिया है कि ” पी एम इन वेटिंग कभी दौड़ को जीत सकता है” कभी हिन्दुओ के हम दर्द बने तो कही गैर हिन्दुओ को गले लगाने से भी नहीं चुके, देश के लिये समान कानून बनाने की हिमायत करने वाला तब का यह महा नायक अपनी रट भी पूरी नहीं कर सका. राम लला का मंदिर बनाने की घोषणा करने वाला वीर आज भी अपनी वीरता का परिचय नहीं दे सका. आचरण और व्यवहार के इसी अंतर ने उन्हें कही का नहीं छोड़ा. जिन मुख्यमंत्रियों को आज ये शाबासी दे रहे है उन्ही के प्रदेश में अपनी इज्ज़त नहीं बचा पाये? संत तुकाराम ने अनायास ही यह नहीं कहा था कि ” जैसे बोलावे तैसे वागावे त्याचे वन्दावे पाउले” आज ये भीष्म पितामह अपनी कथनी और करनी के भेद को मिटा देते तो शायद आज मोदी पी एम वेटिंग नहीं होते ? रही मोदी की बात तो वे अपनी हर चाल सम्हल सम्हल कर चाल रहे है. वे ऐसी कोई गलती नहीं कर रहे है कि युद्ध का यह मैदान सरलता से किसी दूसरे के लिये छोड़ दे. वे युध्द के नियमों को जानते है और अपने प्रतिद्वंदियों को पछाडना उन्हें बखूबी आता है. केशु भाई से लेकर शंकर सिंग वाघेला उदहारण है. भगवान कृष्ण के उपदेशो को आत्मसात कर यह योध्दा मैदान में उतरा है. जनता भी इनको आजमाने के लिये अपना दावं लगा रही है .विरोधी कहते है कि इनके पास दूसरे दल नहीं है. मोदी यह जानते है कि दौड़ने और विजयी घोड़े की सवारी हर कोई करता है. विजयी होने पर सब दल इनके साथ रहेंगे. उनका एक एक को साधने की कला  अब से ही दिख रही है, वे कोई भ्रम में नहीं है, युध्द जितने लिये रणनीति फुक फुक कर बना रहे है. भूतपूर्व सैनिको की सभा उनकी रणनीति का हिस्सा है, इन सब को देखकर यह लगता कि पीएम इन वोटिंग का मुहावरा अब अपनी अंतिम सांसे गिनेगा. यह सेनापति अपना युध्द खुद लड़ता है.

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