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आज कल स्मार्ट सिटी की चर्चा यहाँ वहा हो रही. प्रदेश के दो शहरो भोपाल और जबलपुर का चयन भी हो गया है. चारो तरफ उत्साह और उमंग का वातावरण है, नगर निगम के पैर जमीन पर नहीं है. इन सब खुशियों में मुझे पता नहीं इन स्मार्ट सिटीयो के बारे में क्यों संदेह है. यह बात सही है कि भोपाल की लाखो जनता ने स्मार्ट सिटी के शिवाजी नगर में बनाने के लिए मतदान भी किया, जहा तक मै जानता हूँ, मतदान करने वालो यह भी नहीं मालूम कि स्मार्ट में कौनसे कार्य होने है, भोपाल के मेहनती मेयर ने इसके लिए शहर के अनेको स्थान पर शिविर लगा कर सुझाव भी लिए, किन्तु केंद्र सरकार की गाईड लाईन के चलते इन सुझाव की क्या अहमियत है ? नगर निगम भोपाल ने आज तक यह सार्वजानिक नहीं किया कि स्मार्ट सिटी में कोंनसे निर्माण कार्य होने वाले है ? शिवाजी नगर के निवासी क्यों भयभीत है? उनके भय को दूर करने के लिए नगर निगम भोपाल ने क्या किया है. यदि जनता यह जानती कि स्मार्ट सिटी से शिवाजी नगर की हरियाली ख़त्म हो जायेगी तब इस नगर के लोग संभवतः शिवाजी नगर में स्मार्ट सिटी के पक्ष में कभी मतदान नहीं करते. एक तथ्य मेरे समझ में अब भी नहीं आ रहा है कि जिस जनता ने कभी सुन्दर रहे भोपाल को बदसूरत कर दिया ऐसी दशा में स्मार्ट सिटी का वजूद कब तक कायम रह पायेगा. लिंक रोड न. 1 और 2 की सुन्दरता को हम आज तक नहीं भूले है, लोग इन रोड़ो के बिजली के खम्बे तोड़कर कबाड़ी के यहाँ बेच रहे है. लगायी गयी बेंचो पर धुल पड़ी है जहा कभी वरिष्ठ नागरिक बैठा करते थे. रोड के किनारे बनाये गए बगीचों में विहार करते हुए आनंद का अनुभव करते थे वे आज किस दशा में है. बसों के लिए बनाया कोरीडोर की हालत दिन प्रतिदिन ख़राब हो रही है? यात्रियों के बनाये गए बस स्टॉप की स्थिति किसी से छुपी नहीं है. अपने बुरे दिनों पर ये स्टॉप आज आंसू बहा रहे है. गंदगी का आलम की कल्पना इससे की जा सकती है कि आवारा कुते भी इनमे बैठना पसंद नहीं करते. शहर की खूबसूरती को नष्ट करने के लिए कोन जिम्मेदार है?. यदि नगर निगम जिम्मेदार है तब स्मार्ट सिटी की स्मार्ट नेस कब तक बचा कर रख सकता है? स्मार्ट सिटी का निर्माण कर उसे सञ्चालन और संधारण की जवाबदारी को भूलकर क्या देश की जनता के पैसे का दुरूपयोग तो नहीं किया जा रहा है. केंद्र सरकार ने महामना ट्रेन में विश्व स्तर के कोच लगाकर जनता की सुविधा के उसे चलाया जनता ने उसके क्या हाल किये हमने समाचार पत्रों और सोशल मिडिया में पढ़ा है, इस वातावरण में क्या स्मार्ट सिटी अपनी स्मार्ट नेस बचा पायेगी ? यह यक्ष प्रश्न है. मै स्मार्ट सिटी के निर्माण का विरोधी नहीं हूँ . नगरीय प्रशासन विभाग के अधिकारियो के अथक प्रयासों से प्रदेश के दो शहर चुने गए उनका आभारी हूँ. किन्तु शहर की जनता अपने शहर को अपना नहीं समझ रही है. उस शहर का अपना कौन होगा ? कोन उसके स्मार्ट की रक्षा करेगा? यदि मुझे गंदगी करने की आदत है वह मै कही भी करूँगा. पान और तम्बाकू अपने शौक के लिए खाता हूँ किन्तु इसकी पीक सड़क पर ही थुकुंगा. सिंगापुर में इस देश के सारे नियमो का पालन इसीलिए करते है कि मेरे ऐसा नहीं करने पर मुझे भारी जुर्माना देना पड़ेगा. इसीलिए सिंगापूर के सभी नियमो का पालन यहाँ के नागरिक करते है, किन्तु भोपाल में कुछ भी करो चलता है इसीलिए जिसकी जो मर्जी आये कर रहा है. ट्रेफिक पुलिस किसी व्यक्ति को रोंग साईट जाने से रोकता है तब यह नागरिक अपने आकाओ को फ़ोन कर ट्रेफिक के पोलिस को डाट पडवा देता है, दोबारा ऐसा नहीं करने को कहता है. देश के कर्णधार ही ऐसा करेंगे तब कब तक शहर की स्मार्टनेस बनी रहेगी ? भोपाल के मेयर ने अतिक्रमण हटाने की कार्यवाही शुरू की राजनेताओ ने क्या हल्ला मचाया हम सबने देखा है. यह मुहीम विरोध के चलते वापिस लेनी पड़ी. भोपाल में थोड़ी बहुत खूबसूरती जो दिख रही है वह गौर साहब के अतिक्रमण हटाओ मुहीम के कारण है. मेरे विचार से स्मार्ट सिटी के वजूद को बचाने के लिए जनता को स्मार्ट बनाना जरुरी है. जनता की गलती पर भारी जुर्माने से दण्डित करने की व्यवस्था आज प्रासंगिक है. राजनैतिक हस्तक्षेप से शहर को बचाने की जरुरत है. लोकतंत्र में जनता के लिए इतने कड़े कानून बनाने पर सरकार शायद ही अपनी सहमती दे. किन्तु यह सच है कि बीमारी ज्यादा बढ़ जाए तब कडवी दवा पिलाना उसे जिन्दा रखने के लिए जरुरी है. यदि स्मार्ट सिटी के वजूद को जिन्दा रखना है तब ऐसी दवा पिलानी ही होगी साथ ही नगर निगम के कर्मचारियों को भी कर्तव्य विमुख होने से बचाना पड़ेगा, उन्हें आधुनिकतम प्रशिक्षण देना होगा और उनकी किसी भी गलती के क्षमादान जैसे दान को कही दफनाना होगा. स्मार्ट सिटी की संकल्पना इतनी सरल नहीं है जितनी नागरिक समझ रहे है. स्मार्ट सिटी में हर प्रदान की गयी सुविधा के लिए टेक्स भी देना होगा. इन सब कारणों से पता नहीं मुझे क्यों ये बाते सभव होगी लग नहीं रहा है इसीलिए स्मार्ट सिटी के वजूद किसे बचेगा चिंतित हूँ.
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