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एक सच्ची कहानी। ————–

विचारों का संसार
विचारों का संसार
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एक संस्था जो बिना लाभ हानि के सिद्धांत पर चलती है कई दिनों से उसका अवलोकन कर रहा हूँ। इस संस्था के अध्यक्ष एक नेक दिल सकारात्क सोच रखने वाले ओर बिना किसी स्वार्थ के इस संस्था को चलाने ओर इसका नेतृव्त करने में समय दे रहे है । वे अपने व्यवसाय को एक तरफ रखकर संस्था को को कैसेअग्रसर कैसे किया जाय यही विचार हमेशा उनके मन में रहता है। उनके अधिकार सीमा में उन्होंने एक सचिव की नियुक्ति की है । इसके लिये उन्होंने बहुत मेहनत ओर परिश्रम किया है। उनके द्वारा नियुक्त व्यक्ति हर विधा जानता है। इस संस्था के सविधान में यह शक्ति केवल अध्यक्ष को ही है। वे नियुक्ति दे सकते है। केवल सूचनार्थ कार्यकारणी में उन्हें इसे रखना है। उन्होंने रखा। कार्यकारणी ने यह प्रस्ताव पास किया कि इससे कम वेतन में हमें सचिव मिल सकता है। इन्होने ने कहा आप प्रयास करो ? मुझे कोई आपति नहीं है। वास्तविक यह है कि ये अध्यक्ष अपनी कार्यकारणी के सभी सदस्यों को पुत्रवत स्नेह करते है, यह अलग बात है कि हर सदस्य उनके पैर छूने के बाद ही सभा में समिलित होता हैओर उन…का आशीर्वाद लेता है . यह आशीर्वाद हमेशा उन्ही के गले पड़ता है। जो मन में आये बोलते है। किन्तु भीष्मपितामह इन्हें पुत्रवत होने के कारण सुनते है किन्तु हमेशा यह ख्याल रखते है कि कोई किसी का वस्त्रहरण ना करे। यदि कोई ऐसा कहने का साहस करता है उसी वही टोकते है। किसी को बुरा लगने वाली बात इनकी उपस्थिति में नहीं होती? मैंने इन अध्यक्ष से पूछा ऐसा क्यों हो रहा है , उन्होंने कहा इसका मुझे दुःख है किन्तु जो को कुछ भी हो रहा वह सही नहीं है। मै जिसका अध्यक्ष हूँ वह वेलफेर संस्था है किन्तु पुत्र तुल्य ये सदस्य ऐसा आचरण नहीं कर रहे है। मै इन्हें मित्रवत स्नेह करता हूँ। शास्त्रों की बाते स्वीकार करता हूँ इसलिए अपने दिये वचनों का पालन नहीं कर पाता हूँ, दुर्दशा यही हो रही है सब अपने अहम में डूबे है किसी को संस्था की चिंता नहीं है। यही देश ओर मेरी संस्था का दुर्भाग्य है। ये अध्यक्ष काफी पढ़े लिखे समझदार व्यवहार कुशल ओर बात के धनी है,मैंने इनको नमन किया। राजनीती इनकी संस्था में प्रवेश कर गयी है फिर भी इनका स्नेह इन सदस्यों के प्रति कम नहीं हुआ है। आज भी वे अपने सदस्यों के प्रति कोई गलत बात सहन नहीं करते है। ऐसे समाज दर्शक कम ही मिलते है। ये परोपकारी है इसीलिए इन्हें दुःख हो रहा है। शास्त्रों में के अनुसार परोपकारी के नसीब में दुःख ही है। यही शास्वत तथ्य है। मै इसे महापुरुष को बार बार नमन करता हूँ।

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