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आज हम करोबारी युग में जी रहे है। हर बात में कारोबार दिखता है, लाभ हानि का हिसाब लगाया जाता है, लाभ वाले सौदे पहले करते है, हानि वाले रिश्ते तब अस्तित्व में आते जब वह फायदे में आ आजाते है, ऐसे रिश्तो के लिए कोई किसी का इंतजार नहीं करता, ऐसे रिश्ते अपने कठिन परिश्रम से ही आपको अपने से जुड़ने के लिए कहते है। जो कभी उपेक्षित था आज वह काम का व्यक्ति इसीलिए बन जाता है कि वह लाभदायक है। उपेक्षित व्यक्ति अपनी उपेक्षा को एक ईश्वरीय दंड मानकर उससे मेहनत और सूझ बुझ से लड़कर समाज की मुख्य धारा में अपनी जगह बना लेता है, ऐसा व्यक्ति ही समाज का मार्ग दर्शक बनता है, चूँकि बिना किसी का उपकार लिए अपनी बदोलत सामने आता है इसीकारण यह सर्व मान्य भी हो जाता है, एक लव्य गुरु की प्रतिमा मात्र से अर्जुन के समकक्ष धनुर्धर होकर ऐसा ही उदाहरण प्रस्तुत किया है । बाल्मीकि में कम उपेक्षित नहीं थे, किन्तु रामायण की रचना कर पूजनीय हो गए। इन दोनों के आज का या उस समय का कारोबार महत्व का नहीं था, महत्व पूर्ण उनके लिए उद्देश्य था, केवल उद्देश्य, मात्र उद्देश्य और सर्वो परि उद्देश्य के कारण ही ऐसे व्यक्ति पैदा होते है, यही इतिहास में अपनी जगह बनाकर अपना लोहा मनाते है,
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