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गुरु हो तो ऐसा

विचारों का संसार
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आज मैंने टीवी में देखा कि हमारे प्रधान मंत्री आज अपने 80 वर्षीय गुरु की तबियत ख़राब होने के कारण अपने गुरु को मिलने सब काम छोडकर ऋषिकेश गए. गुरु ने उनके हाथ पर हाथ रखकर रगड़ते रहे. उन्हें एक माला भी पहिनायी उनके विषय में कुछ नहीं पूछा देश में गरीबो के क्या लिए क्या किया? गरीब बेटो के लिए क्या किया? के विषय में पूछते रहे? उन्होंने गरीबो के लिए उन्होंने क्या किया बताया. वे उससे संतुष्ट भी हुए. गजब के गुरु है जिसे अपने शिष्य के प्रति कम और देश के विषय में ज्यादा चिंता थी. निश्चित रूप से उन्होंने इसके लिए अपने शिष्य को आत्मिक बल दिया होगा? मै उनके गुरु को जानता भी नहीं हूँ. किन्तु उनके बारे में श्रध्दा उत्पन्न हुयी. ऐसे गुरु को साष्टांग दंडवत करता हूँ. ऐसे गुरु और शिष्य को देखकर स्वामी रामदास और शिवाजी की याद अपने आप आगयी. ऐसे गुरु कम ही मिलते है. जिसने अपने शिष्य को देश के लिए दे दिया ? यह आज के तथा कथित गुरुओ के लिए एकसबक है. मै पुन: ऐसे गुरु को नमन करता हूँ. देश को ऐसे गुरुओ की जरुरत है. आज उनको एक अपस्ताल में एक सामान्य व्यक्ति जैसा भर्ती करा दिया गया. शिष्य इतना बड़ा  है  कि आज उनके  आसपास कई डाक्टर  होते. न गुरु  ने कोई पहल की न शिष्य ने. वे इतने महान निकले कि उन्होंने  शायद अपने शिष्य की आग्रह को भी टाल दिया होगा. स्वामी रामदास ने भी अपने शिष्य शिवाजी के  साथ  ऐसे ही दुरी शायद  बना ली थी. वास्तव में इस गुरु को कोटिश नमन करता हूँ. आज इनके कारण ही यह देश उतरोतर अपनी समस्या का हल खोज रहा है और उसको इस शिष्य के माध्यम से सफलता भी मिल रही है . कल्पना कर सकता हूँ कि शिष्य और गुरु में क्या बात  हुयी होगी. वे शिष्य को किसी मुसीबत में नहीं डालना चाहते. ये स्वामी रामदास  जैसे प्रसिद्ध होंगे. मै अपने आपको गौरान्वित महसूस कर रहा हूँ कि इनके आशीर्वाद के कारण मै इनके बारे इतना लिख सका हूँ.

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