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बेटे ओर बेटिया ——————-

विचारों का संसार
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आज के बेटे ओर बेटिया
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आज कल शिक्षा का अंत होने के बाद पुत्र पुत्रिया नौकरी के कारण बड़े बड़े शहरो में जाते है। अनेक लोग इस बड़े सीमा की भी हद पार कर सात समंदर पार चले जाते है। वहा वे क्या करते है ? क्या नहीं करना चाहिए इसका आंकलन करने वाला कोई नहीं होता। आर्थिक जगत के इस युग में बेटा या बेटी कमा रही है यही संतोष माँ बाप को होता है। इनके माँ बाप के दिये संस्कार कब तक टिके रहते है ? यह सोच क विषय हो सकता है किन्तु इस सोच के प्रति कोई गंभीर नहीं है। स्वत्रंतता मिलने के बाद यह किसे अच्छी नहीं लगती सब इसका उपभोग करना चाहते है। अनेक ऐसा करते भी है। कांजीहाउस से निकलने के बाद जैसा जानवर विचरण करते है वैसे ही इनका आचरण होता है। मनचाहे काम ओर समझोते करते है। यदि धर्म के आधार पर कहा जाए ये सुरक्षित नहीं होते। इस आयु में अपने आपको असुरक्षित करने वाला कब तक अपने पार्टनर को सुरक्षित रख सकता है। अनेको बार मतभेद होते है।  मन भेद होते है। ओर यही एक दूसरे को अलग रखने के लिये प्रर्याप्त कारण हो सकता है। एक दूसरे से नाता तोड़ लेना सहज नहीं है। किन्तु इसके परिणाम बहुत ही कष्टकारी ओर दूर गामी होते है। हमारी जनरेशन ने समलिंगी दोस्त तो सुना है। आज विपरीत लिंगी भी अपने मित्रों के साथ दोस्त जैसा व्यवहार कर रहे है। लाज शर्म तो इतिहास का विषय बन गयी है। ना पिता का डर है ओर नाही माँ की ममता ही इन्हें समझा पाती है। अंत वही होता है जिसका कभी हमने आंकलन भी नहीं किया है। विजातीय विवाह इसीकी परिणिति है। एक दूसरे को पसंद करते है इसीलिए माँ बाप भी इसे कबुल कर लेते है। कुल मिलाकर सामाजिक व्यवस्था डगमगा गयी है। अनजाने डर से माँ बाप परेशान है। कोन कब किसका दोस्त आयेगा इसको समझना टेरीखीर है। WWW.HUMARAMADHYAPRADESH.COM
आज के बेटे ओर बेटिया
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आज कल शिक्षा का अंत होने के बाद पुत्र पुत्रिया नौकरी के कारण बड़े बड़े शहरो में जाते है। अनेक लोग इस बड़े सीमा की भी हद पार कर सात समंदर पार चले जाते है। वहा वे क्या करते है ? क्या नहीं करना चाहिए इसका आंकलन करने वाला कोई नहीं होता। आर्थिक जगत के इस युग में बेटा या बेटी कमा रही है यही संतोष माँ बाप को होता है। इनके माँ बाप के दिये संस्कार कब तक टिके रहते है ? यह सोच क विषय हो सकता है किन्तु इस सोच के प्रति कोई गंभीर नहीं है। स्वत्रंतता मिलने के बाद यह किसे अच्छी नहीं लगती सब इसका उपभोग करना चाहते है। अनेक ऐसा करते भी है। कांजीहाउस से निकलने के बाद जैसा जानवर विचरण करते है वैसे ही इनका आचरण होता है। मनचाहे काम ओर समझोते करते है। यदि धर्म के आधार पर कहा जाए ये सुरक्षित नहीं होते। इस आयु में अपने आपको असुरक्षित करने वाला कब तक अपने पार्टनर को सुरक्षित रख सकता है। अनेको बार मतभेद होते है।  मन भेद होते है। ओर यही एक दूसरे को अलग रखने के लिये प्रर्याप्त कारण हो सकता है। एक दूसरे से नाता तोड़ लेना सहज नहीं है। किन्तु इसके परिणाम बहुत ही कष्टकारी ओर दूर गामी होते है। हमारी जनरेशन ने समलिंगी दोस्त तो सुना है। आज विपरीत लिंगी भी अपने मित्रों के साथ दोस्त जैसा व्यवहार कर रहे है। लाज शर्म तो इतिहास का विषय बन गयी है। ना पिता का डर है ओर नाही माँ की ममता ही इन्हें समझा पाती है। अंत वही होता है जिसका कभी हमने आंकलन भी नहीं किया है। विजातीय विवाह इसीकी परिणिति है। एक दूसरे को पसंद करते है इसीलिए माँ बाप भी इसे कबुल कर लेते है। कुल मिलाकर सामाजिक व्यवस्था डगमगा गयी है। अनजाने डर से माँ बाप परेशान है। कोन कब किसका दोस्त आयेगा इसको समझना टेरीखीर है।

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