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यह देश कभी सोने का चिडिया हुआ करता था ,यद्यपि बिदेशी लुटेरो , मुगलों और अंग्रेजो ने इसे लुटाने में कोई कसार नहीं छोड़ी थी ,लेकिन इसका यह रुतबा आजादी के पहले तक kaayam था . १५ अगस्त १९४७ के बाद के logo ने इसे aisaa लूटा की सोना kya mitti भी नहीं rahane दिया .एक दम कचरा बना दिया .अज गरीब देशो की जब फेहरिस्त निकाली जाती है तो भारत टॉप पर रहता है /इतना पतन तो शायद दुनिया के किसी देश का नहीं हुआ है .और मजा यह है की सारे लुटेरे मेरे आँख के सामे ही बेख़ौफ़ घूम रहे है और हम उन्हें महिमामंडित भी कर रहे है. देश जाती का शिर मौर्य बता रहे है .ज़रा गौर कीजिये अंग्रेज रहे हो चाहे मुग़ल या विश्व विजेता सिकंदर ही क्यों न रहा हो , उन सबो को कितने बिरोधो का सामना करना पडा .और आज !जो हमें लूट रहा है , हम उसी के शान में कशीदा पढ़ रहे है .इससे ज्यादे पतन किसी देश और वहा के रहने वालो का और क्या हो सकता है . मैकाले ने कहा था की भारत के लोग गरीब जरूर है लेकिन स्वाभिमानी भी बहुत है , लिहाजा ऐसा उपाय अपनाना चाहिए जिससे उनका आर्थिक शोषण कम मानसिक शोषण ज्यादे हो .हालाकि अंग्रेज तो पूरी तौर पर ऐसा नहीं कर पाए लेकिन आजादी के बाद लोकतांत्रिक लुटेरो की जो फ़ौज आई वह अंग्रेजो से से कई गुना ज्यादे उनका काम कर गई .जरूरतमंद तो आज भी भूखे पेट सो रहा है ,लेकिन जिनमे बोट बैंक बनने की कला थी वे साड़ी सरकारी सुविधा प् रहे है .अगर यही tarikaa अंग्रेज अपनाए होते , लोगो को जातिगत आरछन, अल्पसंख्यक जैसे खेमो में बाट दिए होते तो वे अभी यहाँ हजारो साल शासन करते !वैसे हमने दुनिया को एक नया परिभाषा दिया है !”गरीब होने के लिए जाती बिशेष होना आवश्यक है “
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