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हॉलीवुड के एक निर्देशक ने एक बार कहा था कि लोग कहते हैं कि हॉलीवुड फिल्मों में बहुत नग्नता और सैक्स होता है लेकिन भारतीय फिल्मों में जिस तरह से नग्नता और सैक्स पेश किया जाता है, वो कहीं ज्यादा खतरनाक है और अपराध को जन्म देता है| हॉलीवुड फिल्मों में नग्नता और सैक्स को स्पष्टतया दिखाया जाता है जब कि भारतीय सिनेमा में नग्नता और सैक्स आधे-अधूरे तरीके से इस तरह दिखाया जाता है कि कहीं ज्यादा उत्तेजना और जिज्ञासा का माहौल बनाता है और अपरिपक्व और अनुभवहीन मस्तिष्कों में आपराधिक भावनाओं को जन्म देता है|
लेकिन मुझे पूरा यकीन है कि जिस तरह से हम भारतीय इस क्षेत्र में तेजी से विकास कर रहे हैं, हम जल्दी ही हॉलीवुड की बराबरी कर लेंगे और समाज में अपराध का स्तर भी गिर जाएगा| अब हमारी नायिकाएं इतनी बेहया और तन दिखाने में इतनी दरियादिल हो चुकीं है कि बस पैसा देकर इनसे कुछ भी करवा लो| कभी दादा कोंडके के द्विअर्थी संवादों से सनसनी मचाने वाला भारतीय सिनेमा अब इतना विकसित हो चुका है कि सीधे स्पष्ट और अर्थपूर्ण संवादों का प्रयोग करता है| अब नायिका का कॉन्फिडेंस लेवल इतना हाई हो चुका है कि अगर उसे फिल्म में भद्दी गाली देनी है तो साफ-२ गाली ही देगी, किसी की फाडनी होगी तो बेहिचक फाडेगी, एक बार में समझ नहीं आयेगा तो दुबारा फाडेगी| बॉलीवुड के निर्देशकों को पता है कि समाज की आत्मा मर चुकी है और लोग फटी में फिल्म देखेंगे ही देखेंगे|
कल ही एक कवि-सम्मलेन में एक कवि कह रहे थे कि हमारी भारतीय संस्कृति विश्व में सर्वश्रेष्ठ है और इसका कारण है भारतीय स्त्री का महान आचरण| वीर रस के कवि राज तिवारी ने अपनी कविता में भारतीय स्त्रियों की महिमा का वर्णन कुछ इस प्रकार किया- बच्चा-२ राम यहाँ का, बेटी जनक दुलारी है………रणचंडी बनकर उतरी थी, अरि का दिल दहलाती थी, लक्ष्मीबाई दोनों हाथों से तलवार चलाती थी….
अब हमारी भारतीय नायिकाएं अपने फूहड़ देह प्रदर्शन, भद्दी गालियों-संवादों, सैक्स और नग्नता का जीवंत प्रदर्शन कर लोगों का दिल दहलाने लगी हैं| गलती से कहीं इन आदरणीय कवियों को अगर रानी मुखर्जी या विद्या बालान जैसी प्रतिभावान नायिकाओं का जीवंत अभिनय प्रदर्शन देखने को मिल जाय तो शायद वे कोई और व्यवसाय ढूँढने लगें|
स्कूल के दिनो में, जब कि सिर्फ दूरदर्शन ही मनोरंजन का साधन था, हर रविवार को हिन्दी फिल्म का प्रसारण किया जाता था| तब उस समय जब कि लोग दूरदर्शन पर कृषि दर्शन तक देखना नहीं चूकते थे तो हिन्दी फिल्म तो पूरे एक सप्ताह के धैर्य और तपस्या का फल होती थी और इसे छोड़ने का तो कोई सवाल ही नहीं होता था| ऐसे जमाने में भी जब कि सारे शहर के लोग हिन्दी फिल्म देखने में लीन होते थे और गलियाँ सुनसान हो जाया करती थीं, मेरा एक मित्र उस नायाब मनोरंजन को छोड़कर सुनसान गलियों में अकेला घूमा करता था|
एक बार जब मैंने उससे इसका कारण पूछा तो उसका जवाब बड़ा दिलचस्प था| उसने बताया कि उसके पिता फिल्म के समाप्त होते ही उससे पूछते थे कि बताओ इस फिल्म से हमें क्या शिक्षा मिलती है? ठीक वैसे ही जैसे कि पंचतंत्र की हर कहानी के अंत में उससे मिलने वाली शिक्षा लिखी होती है| इस कठिन प्रश्न का जवाब देने से बचने का उसने ये आसान तरीका निकाला कि फिल्म देखी ही न जाय| न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी| तब मुझे उस मित्र की बात सुनकर हंसी आती थे, पर अब अहसास होता है कि उसका तरीका बड़ा ही प्रभावशाली था|
जब से ‘डर्टी पिक्चर’ फिल्म देखी है, मैं खुद से ही ये सवाल पूछ रहा हूँ कि इस फिल्म का मकसद क्या है? एक सी ग्रेड की फिल्मों की अभिनेत्री, जों कि अब इस दुनिया में नहीं है, उसको फिर से नंगा करके निर्माता, लेखक, निर्देशक और नायिका ने किस प्रतिभा का प्रदर्शन किया है? सिल्क स्मिता ने उस समय किन हालातों में इस प्रकार के रोल किये ये तो उन्हें ही पता रहा होगा| फिल्म के अनुसार सिल्क ने पैसे के अभाव में इस प्रकार के समझौते किये तो ‘डर्टी पिक्चर’ के निर्माता, लेखक, निर्देशक और कलाकार किन हालातों की वजह से इस घटिया स्तर पर उतरे? क्या से सिर्फ पैसे की हवस नहीं है कि इस तरह की घटिया और फूहड़ फिल्म बनाई गई और लोगों की भावनाओं का शोषण करके करोड़ों का बिजनेस कर लिया गया? सुना है कि इस फिल्म को देखने में सबसे बड़ा वर्ग स्कूली छात्रों और युवाओं का था| तो आप इस देश की युवा पीढ़ी को क्या शिक्षा दे रहे हो, सैक्स और नंगेपन की| भारतीय नारी का सिर्फ यही रूप बचा है फिल्म बनाने के लिए और युवाओं को दिखाने के लिए?
विद्या बालान नाम की कथित रूप से अत्यंत प्रतिभाशाली अभिनेत्री ३२ वर्ष की उम्र में कपडे उतारकर वो सब कर रही है जों कि एक कम उम्र की अपरिपक्व अभिनेत्री फिल्म इंडस्ट्री में अपने पैर जमाने और पैसा कमाने के लिए करती है| इस रोल से उन्होंने क्या पाने की कोशिश की है, भगवान जाने| मेरी नजर में तो विद्या बालान और सिल्क स्मिता में कोई अंतर नहीं है| दोनों ने ही सिर्फ पैसे के लिए ही इस प्रकार के फूहड़ रोल किये| अंतर बस ये है कि सिल्क ने ऐसे रोल सिर्फ पैसे के लिए किये जबकि विद्या बालान ने पैसा कमाने के साथ-२ लोगों को ये भी दिखाने की कोशिश की है कि इस बहन जी छाप हीरोइन में जवानी और हुस्न कूट-२ कर भले न भरा हो पर वो उछाल खूब मार रहा है| फिल्म के निर्देशक ने विद्या के जमकर किये अंग प्रदर्शन, अभद्र और भद्दे संवादों की मदद से अपरिपक्व लोगों की भावनाओं का फायदा उठाकर करोड़ों बटोरे हैं|
‘द डर्टी पिक्चर’ फिल्म की समीक्षा में फिल्म और विद्या बालान की तारीफ़ पढकर खुद को फिल्म देखने से रोक नहीं पाया| लेकिन फिल्म देखकर मैं असमंजस में हूँ कि क्या फिल्म समीक्षक बेवकूफ है या मुझे इस बात की गलतफहमी हो गई है कि मैं ज्यादा समझदार हूँ| जिन फिल्म समीक्षकों ने इस फिल्म की और विद्या बालान के अभिनय की तारीफ़ की है, मैं उनसे कहना चाहता हूँ कि इस फिल्म से जुड़े सभी लोगों निर्माता, लेखक, निर्देशक और कलाकार, सभी ने फूहड़ नग्नता और सैक्स परोसकर समाज में गंदगी बढ़ाने में बढ़-चढ कर कार्य किया है और खेद प्रकट करना चाहता हूँ कि इस सामाजिक पतन में सहयोग से मैं सहमत नहीं हूँ|
सम्पूर्ण विश्व में भारतीय स्त्री की की छवि अत्यंत पुनीत और महान है और विद्या बालान ने उस छवि को चोट पहुचाने की कोशिश की है| विद्या बालान और उनके जैसी अन्य अभिनेत्रियां मेरी नजर में डर्टी वूमैन हैं|
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