अंगार
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ऐसी जमकर खेलो होली
कि मन का मैल धुल जाय
तेल लगाना कभी मत भूलो
कि खुजली ना हो जाय
कि खुजली ना हो जाय
रंग लगाओ ऐसे अच्छे-अच्छे
खुजली का डर भूल के
खेलें सब बूढ़े-बच्चे
खेलें सब बूढ़े-बच्चे
चहुँ और उल्लास छा जाय
होली की इस मस्ती में
सब दुःख-दर्द भूल जायं
सब दुःख-दर्द भूल जायं
तो बांटों खुशिया सबको
धेला खर्च ना होता इसमें
तो फिर डर किसका तुमको
इस होली में दोस्तों
फाड़ दो पोटली सबकी
क्या जाने कब आ जाय
ऊपर जाने की बारी किसकी
कह ‘राजेन्द्र’ कविराय
साथ कोई कुछ न ले जा पाता
कपड़ा-लत्ता तक दोस्तों
यहीं छूट है जाता|
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