Menu
blogid : 3502 postid : 1180

बोलो बाबा वेलेन्टाइन जी की जय

अंगार
अंगार
  • 84 Posts
  • 1564 Comments

(करीब दो साल पहले इस लेख को लिखा था, लेकिन जैसे शराब पुरानी होने के साथ टेस्ट में बेहतर होती चली जाती है, वैसे ही इस लेख का टेस्ट भी शायद लोगों को पसंद आये| वैसे भी प्यार कभी पुराना नहीं होता| जैसे कि पुरानी किताबें जितनी भी बार पढो, ज्ञान भी बढ़ता ही चला जाता है, वैसे ही प्यार जितना करो, अनुभव भी बढ़ता ही चला जाता है| इन दो वर्षों में वेलेंटाइन देव के कई नए प्रेम भक्त पैदा हो गए होंगे, तो शायद ये लेख उनके कुछ काम आये|

पिछले ही दिनों फेसबुक पर वेलेंटाइन के किसी घोर विरोधी की एक पोस्ट पढ़ी कि अंग्रेज हर डे मनाते हैं पर सिस्टर डे क्यों नहीं मनाते? इस प्रकार की नकारात्मक मानसिकता वाले लोग ही प्यार के असली दुश्मन होते हैं| जब तक अंग्रेजों ने भारतीयों को कई तरीकों से प्यार करना नहीं सिखाया था तब तक हम इस ईश्वरीय सुख को समझ ही नहीं पाए थे| अब ये बात और है कि बिना प्यार के भी हमारी आबादी सवा अरब से ऊपर हो चली है| खैर छोडिए, इस प्यार के मौसम में सिर्फ प्यार की ही बात करें और चारों और प्यार ही प्यार फैलाएं|)

अभी परसों सुबह की ही बात है, बड़े अरमानों के साथ अपनी छोटी सी क्यारी में गया क्योंकि गुलाब के पौधे में १०-१२ सुन्दर कलियाँ खिलने को बेकरार हुए जा रही थी. लेकिन गुलाब के पौधे पर नजर पड़ते ही मैं सन्न रह गया क्योंकि एक भी कली मौजूद नहीं थी. थोड़ी देर में ही जब गली के छोकडों को गुलाब की कलियाँ लेकर कन्याओं के पीछे फिरते देखा तो पता चला कि आज तो रोज डे है. अब समस्या ये थी कि आज का टाइम कैसे पास करूँ क्योंकि मेरे जैसे खडूस को तो कोई रोज देने वाला था नहीं और किसी को रोज देकर मैंने पिटना था क्या? बुजुर्गों का कहना है कि बेटा इज्जत कमाने में वर्षों लग जाते हैं और गंवाने में एक पल भी नहीं लगता. अब बड़ी मुश्किल से तो थोड़ी बहुत इज्जत कमाई है, तो प्रोफ़ेसर मटुकनाथ बन कर उसे नीलाम करने की हिम्मत नहीं है भाई इस बंदे में| तो मैंने सोचा कि क्यों ना घर का टांड जिसमे कि काफी कबाड़ इकठ्ठा हो गया था, उसकी साफ़-सफाई कर अपने अंदर के आशिक को कबाड में किल कर दिया जाय और अपनी इज्जत कायम रखी जाय. बजाय इसके कि मजनूँ बनकर कपडे फटवाऊँ, क्यों ना कपडे थोडा गंदे ही कर लूं, बाकी निरमा निबट लेगा.

सफाई करते-करते अचानक मेरे हाथ अपनी वो प्रथम दुर्लभ रचना लग गई जिससे कि एक महान लेखक के  कैरियर की शुरुआत हुई थी. यही वो रचना थी जिसने कि बहुत से लोगों का व्यावसायिक कैरियर भले ही ठप्प कर दिया पर आशिकी के फील्ड में उनका नाम बहुत बदनाम हुआ. पर ये महान आशिक हमेशा इस सिद्धांत पर चलते रहे कि ‘बदनाम होंगे तो क्या नाम न होगा?’ इसी सिद्धांत पर चलते हुए आज के जमाने में मुन्नी बदनाम होकर भी अपने पति का व्यवसाय चमका रही है. तो मेरी इस दुर्लभ कृति का शीर्षक है- ‘प्यार पाने के सिद्ध टोटके’. टोटके शब्द का प्रयोग मैंने बहुत सोच समझ कर किया था क्योंकि मुझे इस बात का अहसास था कि भविष्य में कभी ना कभी ये टोटका शब्द पापुलर जरूर होगा और मेरे लेखकीय कैरियर को नई ऊँचाइयों पर ले जायेगा. हालांकि ये मुझ जैसे महान लेखक का दुर्भाग्य था कि मेरे टोटके तो मुझे लंगडी मार गए और किसी और के टोटके बाजी मार गए.

तो जी इस महान रचना को मैंने तब लिखा था जब कि मेरे नाम में ‘अंगार’ नहीं जुडा था बल्कि तब मेरे नाम के अंत में ‘प्रेमी’ हुआ करता था. मुझे पता था कि मेरे दिमाग की हार्ड डिस्क एक ना एक दिन करप्ट जरूर होगी और करप्ट दिमाग के बैड-सेक्टर से पांडुलिपि की रिकवरी मुश्किल हो जायेगी इसलिए मैंने इस पांडुलिपि को तुरंत प्रकाशित करवा लिया था. मेरी इस किताब की एकमात्र प्रति ‘प्रेम चंद प्रेम प्रकाश एंड संस’ द्वारा प्रकाशित हुई थी. हुई थी से मतलब इस पुस्तक के प्रकाशन के बाद उनकी दुकान ही बंद हो गई थी. वैसे भी इस प्यार-प्रेम के चक्कर में मैंने लोगों की दुकान बंद होते हुए ही देखी है, खुलते हुए कभी नहीं देखी क्योंकि जिसे ये प्रेम रोग हो गया, उसकी दुकान गई भाड़ में और काम गया तेल लेने. ये दुर्लभ किताब, दुर्लभ इसलिए कि इसकी एकमात्र प्रति सिर्फ मेरे ही पास है, प्रकाशित हो पाई, क्योंकि प्रेम चंद और प्रेम प्रकाश, दोनों सगे भाई मेरे स्कूली मित्र थे, इसलिए उन्होंने मेरी इस कृति को अपने डाट-मैट्रिक्स प्रिंटर पर प्रकशित कर दिया था. इसके एवज में मैंने इस किताब के टोटके आजमाने का मौका भी सबसे पहले उन दोनों महान प्रकाशकों को ही दिया जिन्हें आजमाकर उनकी स्कूल में कई बार पिटाई हुई और अंततः उनके पिता प्यार चंद को उनको को-एजुकेशन से निकालकर नो-एजुकेशन में डालना पडा. लेकिन दोनों पट्ठे थे धुन के पक्के, स्कूल में पिटे, बाजार में पिटे, शादियों में पिटे पर मजनूँ, फरहाद और रांझे की परंपरा कायम रखी. आजकल दोनों भाई रूइं धुनने का काम करते हैं और अपनी धुनाई की भड़ास रूइं को पीट-पीट कर निकालते हैं. वेलेन्टाइन डे के दिन जहाँ भी भीड़ हो आप समझ जाना कि वहां यही दोनों भाई पिट रहे होंगे.

मेरा एक और जिगरी दोस्त प्रेम लाल वल्द प्यारे लाल जो कि बहुत की मेधावी और होनहार था और आई. आई. टी कर रहा था, इसी कृति को कुछ दिन के लिए मांग कर ले गया और दो दिन बाद ही कालेज से बाहर निकाल दिया गया क्योंकि उसने इसी किताब के टोटके आजमाकर प्रिंसिपल की ही लड़की सेट कर दी थी. वो मेधावी बालक उन पढ़ाई के दिनों में प्यार में यूं रुसवैय्या ना हुआ होता तो यकीन मानिए, इस देश को एक और विश्वसरैया भले न सही पर एक महान इंजीनियर अवश्य ही मिलता. वो महान इंटेलीजेंट आशिक आजकल  रेलवे स्टेशन पर निम्न कोटि का साहित्य बेचता है और स्टेशन पर आने वाली नवयौवनाओं पर विशेष प्यार भरी नजर रखता है|

मेरी इस दुर्लभ रचना ने कितने आशिकों को देवदास बनाया है, मैं अच्छी तरह से जानता हूँ. यहाँ पर सभी मजनुओं का वर्णन करना तो संभव नहीं है पर इन महान आशिकों की कहानी मैंने आपके सामने रख दी है जिससे की आप मेरी इस दुर्लभ किताब का महात्म्य समझ जाएँ. परीक्षा के मॉडल पेपर भले ही फेल हो जाएँ, पर मेरी किताब के टोटके कभी फ्लॉप नहीं हुए. भले ही इन टोटकों को आजमाकर वो पिटे, रुसवा हुए, उनकी दूकान बंद हो गई, पर इस प्यार की दुश्मन दुनिया में प्यार का झंडा बुलंद रखने की वजह से आशिक समाज के बीच उनका नाम हमेशा अमर रहेगा.

इस किताब के अंत में लिखी हुई दो दुर्लभ पंक्तियां आपके पेशे-नजर हैं, कृपया दाद वाली दाद दीजियेगा, खाज वाली नहीं-

“कौन बेवकूफ कहता है,

कि इश्क ने निकम्मा कर दिया,

हम आदमी कब थे भला काम के ?”

अर्थात हम जन्मजात निकम्मों की वजह से आप इश्क की पवित्रता पर शक ना करें. अगर किसी प्रेमी, आशिक, आवारा…….पागल, मजनूँ, दीवाना………को १४ फरवरी के दिन इस किताब के टोटके आजमा कर शरीर सुजाना हो और वेलेंटाईन किंग बनना हो तो ये महान परोपकारी बंदा सदैव आपकी सेवा में हाजिर है.

तो बोलो बाबा वेलेन्टाइन जी की……….जय.

– आप सभी को प्यार के इस मौसम में वैलेंटाइन दिवस के लिए हार्दिक शुभकामनाएं|

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh