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“कौन कहता है आसमान में छेद नहीं हो सकता,
एक पत्थर तबीयत से उछालो तो यारों”
ये जुमला सभी ने सुना है और समय-२ पर इसका उद्धरण भी देते है पर क्या आज तक किसी ने आसमान में छेद किया ? पता नहीं, पर हाँ आज एक शख्स ऐसा है इस दुनिया में जो इस बात को कह सकता है, और वो शख्स है- ‘ऑस्कर लियोनार्ड कार्ल पिस्टोरियस’ जिसने दोनों पैरों से विकलांग होने के बावजूद नकली पैरों से वो कर दिखाया जो शायद किसी ने सपने में भी नहीं सोचा होगा| पिस्टोरियस ने दक्षिण कोरिया में चल रही विश्व एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में ४०० मीटर की दौड में सामान्य एथलीटों के साथ दौड़ने के लिए न केवल क्वालीफाई किया बल्कि रविवार को इसके सेमीफाइनल में पहुँच कर इतिहास भी रच दिया, हालांकि सोमवार को वे फाइनल में जगह बनाने से चूक गए|
जोहानिसबर्ग, दक्षिण अफ्रीका में 22 नवम्बर 1986 को पैदा हुए पिस्टोरियस केवल 11 माह के थे जब उनके दोनों पैर घुटनों के नीचे से काटने पड़े थे। पिस्टोरियस के पैरों में पैदाइशी समस्या थी और डाक्टरों ने साफ कहा था कि वो कभी चल नहीं पाएंगे| उनके पैर मुड़े हुए थे और कुछ हड्डियां भी नहीं थीं| कुछ समय तक पैरों को प्लास्टर में रखा गया ताकि वो सीधी हो जाएं लेकिन 11 महीने के बाद पैरों को काट दिया गया| पिस्टोरिसय कृत्रिम पैरों से चलना बहुत जल्दी सीख गए थे और बचपन से ही रोलर स्केट्स, साइकिल चलाना और पेड़ों पर भी चढ़ जाना सीख लिया| स्कूली दिनों में रग्बी, पोलो और टेनिस खेलने वाले ऑस्कर बार-२ गिरे और बार-२ संभले पर उन्होंने हौसला कभी नहीं छोड़ा| यहाँ तक कि सन 2004 में घुटनों में गम्भीर चोट लगने के बाद उन्हें फिर से सर्जरी तक करवानी पड़ी। लेकिन जज्बे और जुनून के दूसरे नाम पिस्टोरियस ने अपनी विकलांगता को कभी अपने पर हावी नहीं होने दिया और कृत्रिम कार्बन फाइबर ब्लेड रूपी पैरों की मदद से अंतर्राष्ट्रीय खेलों की दुनिया में उतर पड़े| कार्बन फ़ाइबर से तैयार यह कृत्रिम पैर पिस्टोरियत को इतना भाया कि ट्रैक पर दौड़ता देख लोग उन्हें ‘ब्लेड रनर’ कहने लगे|
सन 2004 में ही पिस्टोरियस ने एथेंस में समर पैराओलम्पिक्स में 100 मीटर की एक पैर के सहारे दौड़ने की स्पर्धा T-44 में तीसरा स्थान हासिल किया और 200 मीटर की स्पर्धा में तो शुरुआती दौर में असफल होने के बावजूद उन्होंने फाइनल के लिए क्वोलीफाई किया और 21.97 सेकंड के विश्व रिकार्ड के साथ यह स्पर्धा जीती| राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तमाम रिकार्ड हासिल करने वाले पिस्टोरियस को जुलाई 2005 में इंटरनेशनल एसोसिएसन ऑफ एथलेटिक्स फेडरेशंस (आईएएएफ) ने फिनलैंड के हेलसिंकी में आयोजित आईएएएफ ग्रां पी में 400 मीटर की स्पर्धा के लिए आमंत्रित किया, लेकिन स्कूली पढ़ाई के कारण वह इसमें शामिल नहीं हो सके। इसके बाद 13 जुलाई 2007 को पिस्टोरियस को रोम में गोल्डन गाला में भाग लेने का मौका मिला और 400 मीटर की दौड़ 46.90 सेकेंड में पूरा कर उन्होंने दूसरा स्थान हासिल किया। इसके बाद उन्होंने कई स्पर्धाओं में शानदार प्रदर्शन किया। उनका लक्ष्य वर्ष 2008 में बीजिंग ओलम्पिक में अपनी जगह पक्की करना था लेकिन दक्षिण अफ्रीका ओलम्पिक समिति से उनका चयन नहीं किया।
इनकी अविश्वसनीय सफलता से हैरान कुछ लोगों ने इनके कृत्रिम पैर को लेकर सवाल उठाए और कहा कि कृत्रिम पांव के अपेक्षाकृत लम्बे होने के कारण उनको आम धावकों की तुलना में निश्चित दूरी तय करने में कम समय लगता है। यह भी कहा गया कि उनके पैर कृत्रिम होने के कारण उनमें दर्द या थकान नहीं होता और सामान्य एथलीटों के मुकाबले उनकी ऊर्जा बचती है जिससे वह अपेक्षाकृत तेज दौड़ सकते हैं। हालांकि पिस्टोरियस के कोच ने इन सभी तर्को को खारिज करते हुए कहा कि पिस्टोरियस के सामने सामान्य धावकों की तुलना में अलग तरह की परेशानियां पैदा होती हैं। हवा के प्रभाव में आने से कृत्रिम पैर मुड़ जाते हैं और पिस्टोरियस को दौड़ शुरू करने में काफी ऊर्जा की जरूरत पड़ती है।
जर्मनी की स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी के डॉक्टर वोल्फगैंग पोट्टहैस्ट के अनुसार पिस्टोरियस को रेस के आखिरी चरणों में ब्लेड का फायदा मिलता है| उनके अनुसार कृत्रिम ब्लेड वो भी दोनों पैरों में, इसका काम सामान्य पैरों से अलग होता है, रेस के एक समय जिसके आकड़े निकल सकते हैं उस स्थिति में पिस्टोरियस को फ़ायदा होगा लेकिन शुरुआती दौर में दिक्कत होती है| वहीं यूनिवर्सिटी ऑफ मियामी में प्रोस्थेटिक्स पढ़ाने वाले डॉक्टर बॉब गेली के अनुसार 400 मीटर की दौड़ हो या कोई भी दौड़, जब शुरुआत होती है तो एथलीट अपनी पिंडलियों और पिछले हिस्से का इस्तेमाल करता जो पिस्टोरियस नहीं कर सकते| इसके अलावा जब सर्कल में मुड़ते हैं तब भी पिस्टोरियस को दिक्कत होती है|
इन विवादों के बीच 26 मार्च 2007 में आईएएएफ ने स्पर्धा के नियमों में संशोधन करते हुए पांव में ऐसे किसी भी उपकरण को लगाने पर प्रतिबंध लगा दिया जिससे उछाल या गति मिलती हो। हालांकि ऐसा कहा गया कि पिस्टोरियस को ध्यान में रखकर इन प्रतिबंधों को नहीं लगाया है, लेकिन इन संशोधनों से पिस्टोरियस के लिए सामान्य वर्ग की स्पर्धा में भाग लेना असम्भव हो गया। यद्यपि, पिस्टोरियस के दावों को ध्यान में रखते हुए आईएएएफ ने तमाम तरह के शोध करवाए और 14 जनवरी 2008 के अपने आदेश में आईएएएफ के नियमों के अनुसार आयोजित होने वाली स्पर्धा के लिए उन्हें अयोग्य करार दिया।
लेकिन पिस्टोरियस ने हार नहीं मानी और लड़ते रहे। आखिरकार स्विट्जरलैंड स्थित ‘खेल मध्यस्थता अदालत’ ने 16 मई 2008 को पिस्टोरियस के पक्ष में फैसला दिया और कहा कि ऐसे साक्ष्य नहीं है जिससे यह पता चले कि पिस्टोरियस के कृत्रित पैर से उनको भागने में सहायता मिलती हो। अदालत ने यह भी कहा कि आईएएएफ ने प्रतिबंध लगाने से पहले कृत्रित पैर होने के कारण पिस्टोरियस के सामने आने वाली परेशानियों पर ध्यान नहीं दिया। इस तरह पिस्टोरियस एक और बाधा को पार करते हुए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सामान्य वर्ग की स्पर्धा में भाग लेने में सक्षम हो गए, लेकिन शानदार प्रदर्शन करने के बावजूद वह वर्ष 2008 में बीजिंग ओलम्पिक के सामान्य वर्ग के लिए क्वोलीफाई नहीं कर सके थे। जीवन में तमाम मुश्किलें झेलने और कभी हार नहीं मानने वाले पिस्टोरियस ने इसके बावजूद फिर कोशिश की और 19 जुलाई 2011 को इटली के लिंगनैनो में 400 मीटर की दौड़ 45.07 सेकंड में पूरा कर लंदन ओलम्पिक में भाग लेने का असंभव लगने वाला लक्ष्य पाकर ही दम लिया ।
तीन साल पहले तक दक्षिण अफ़्रीका के ऑस्कर पिस्टोरियस ने ट्रैक तक नहीं देखा था लेकिन आज वह एथलीटों की दुनिया की सनसनी हैं और उनके रिकॉर्ड पर नजर डालें तो विश्व कई देशों के राष्ट्रीय चैंपियन तक शर्मसार हो जाएँ| ‘विकलांग वर्ग’ में उनके नाम 100 मीटर, 200 मीटर और 400 मीटर के विश्व रिकॉर्ड दर्ज हैं|
* चार सौ मीटर दौड़ में पिस्टोरियस का विश्व रिकॉर्ड 46.56 सेकेंड का है और वो 2004 में एथेंस ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने वाले एथलीट (44.0 सेकेंड) से बहुत पीछे नहीं हैं|
* 200 मीटर दौड़ पिस्टोरियस ने 21.58 सेकेंड में पूरी की है, जबकि 2004 ओलंपिक में स्वर्ण पदक 19.79 सेकेंड का समय निकालने वाले एथलीट की झोली में गया था|
* सौ मीटर फर्राटा में पिस्टोरियस का रिकॉर्ड 10.91 सेकेंड का है और 2004 का ओलंपिक रिकॉर्ड है 9.85 सेकेंड|
अगर उनके कोच एमपी लोव कहते हैं, “पिस्टोरियस जन्मजात चैंपियन हैं.” तो ये बात कहीं से भी गलत नहीं है |
“ब्लेड रनर” ऑस्कर पिस्टोरियस के हौसले, जज्बे और जूनून को सलाम|
नोट- आंकड़े और कुछ अन्य जानकारी विकिपीडिया और बीबीसी की साइट्स से ली गई हैं|
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