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मोको कहां ढूढे रे बन्दे, मैं तो तेरे पास में

अंगार
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आज महाशिवरात्रि का पर्व है| किसी के लिए आस्था और भक्ति तो किसी के लिए मेले के नाम पर मौज-मस्ती, किसी के लिए बिजनेस तो किसी के लिए भोले के नाम पर अंटा गफील करने का दिन है| हिंदुओं के यही तो एकमात्र भगवान हैं जो भक्तों को किसी भी प्रकार के प्रतिबन्ध में नहीं रखते| भगवान खुद भी भांग और धतूरे का शौक रखते हैं तो भक्त तो आखिर भक्त ही हैं| मुझे कई भक्तों ने उन्हें स्वयं भगवान के प्रसाद के सेवन से हुई दिव्य एवं रोमांचक अनुभूति के बारे में बताया है कि कैसे वे भांग का सेवन कर तीन-तीन दिन तक इहलोक से परलोक तक की सैर करते रहे| और तो और, बदलते समय के साथ-साथ भगवान भोलेनाथ के प्रसाद में पिज्जा, बर्गर, इडली, डोसा, पॉपकॉर्न, कुल्फी,गाजर का हलवा, गोल-गप्पे, छोले भठूरे, कुलचे छोले,दूध-जलेबी जैसे स्वादिष्ट व्यंजन भी शामिल हो गए हैं| यानि की फुल फ्लैक्सीबिलीटी, कोई रिस्ट्रिक्शन नहीं| बच्चों से लेकर बूढों तक सब के लिए मनमाफिक प्रसाद| भगवान भोलेनाथ हैं ही ऐसे भोले, भक्तों को कष्ट में देख ही नहीं चाहते और वर तो बिना सोचे-समझे यूं ही दे देते हैं भले ही बाद में खुद ही भस्मासुर से जान बचाने की लिए सर पर पैर रखकर भागना पड़े|

 

महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर भगवान भोलेनाथ के मंदिरों में अपार भीड़ उमड़ती है| हर कोई इस पावन पर्व पर भगवान की बस एक झलक पाकर अपने तमाम जीवन के इनवैलिड कर्मों अर्थात पापों को वैलिड कर लेना चाहता है| खासतौर पर स्त्रियाँ तो शिवलिंग पर इस तरह से कब्ज़ा कर लेना चाहती हैं कि मानो दुनिया में उनके सिवा भोले का कोई भक्त ही न हो| यकीन मानिए कि यदि हर स्त्री को भोले की पूजा करने का पर्याप्त अवसर दिया जाय तो एक दिन का यह पर्व कई सदियों  तक चल सकता है|

 

भगवान के भक्त भी तीन प्रकार के होते हैं| पहले प्रकार के भक्त वो होते हैं जो ईमानदारी से भगवान के दर्शन और भजन करने की चाहत में जीवन बिता देते हैं पर कभी भी उनके मन की ये हसरत पूरी नहीं हो पाती| घंटों लाइन में लगे रहने के बाद जैसे ही इन भक्तों का भगवान के दर्शन करने का नंबर आता है, मंदिर के कर्मचारी या भीड़ तुरंत धक्का देकर बाहर कर देते हैं| तमाम कष्ट सहकर, लाइन में घंटो-२ खड़े रहकर भी कई बार तो ढूंढ भी नहीं पाते कि भगवान हैं कहाँ और इतनी देर में उनका नंबर खत्म हो जाता है| मुझे भगवान के ऐसे ही एक भक्त का अनुभव सुनने को मिला| भोलेनाथ के ये भक्त शिवरात्री के दिन अँधेरे में ही तीन बजे जाकर लाइन में लग गए कि जल्दी दर्शन-पूजा कर आयेंगे| चार घंटे लाइन में खड़े रहने के बाद यानि कि सात बजे भक्त का नंबर आया| भक्त ने भगवान के आगे हाथ जोड़ कर आँखें बंद की ही थीं कि पीछे से भीड़ के रेले ने एक धक्का मारा और भक्त जी एक्जिट द्वार से बाहर हो गए| चार घंटे की अथक मेहनत चार सेकण्ड में समाप्त हो गई| इस प्रकार के भक्त जिंदगी भर भगवान के दर्शन करने को तरसते ही रहते हैं और सदैव दुखी रहते हैं| कभी-कभार तरस खाकर भगवान कृपादृष्टि डाल देते हैं तो इस प्रकार के भक्त भगदड़ का शिकार होकर भगवान को प्यारे भी हो जाते हैं|

 

दूसरे प्रकार के भक्त अनुभवी, व्यवहारिक एवं चालाक प्रवृत्ति के होते हैं| ये ईमानदार भक्तों की भाँती इंटरेन्स द्वार की ओर लाइनों में खड़े रहने की बजाय एक्जिट द्वार से घुसकर भगवान के दर्शन करने में यकीन रखते हैं और सदैव सफल होते हैं| मुझे कितने ही ऐसे भक्त मिले हैं जिन्होंने अत्यंत गर्व से अपनी इस चालाकी और व्यवहारिकता का बखान कर भगवान के दर्शन पाने का अचूक नुस्खा बताया है| ये मंदिर के कर्मचारियों की सुविधा का ख़याल रखते हैं कर्मचारी इन भक्तों की भक्ति भावना को समझते हैं| भगवान भी इस प्रकार के भक्तों को पर्याप्त दर्शन देते हैं और उन पर अपनी कृपादृष्टि भी बनाए रखते हैं| मंदिर कितना भी बड़ा क्यों न हो, भगवान कितने बड़े क्यों न हों, इन चालाक भक्तों को दर्शन दिए बिना बच नहीं सकते| इस प्रकार के भक्त जीवन भर प्रसन्न और सुखी रहते हैं|

 

तीसरे प्रकार के भक्त सुख-दुःख की भावना से कहीं ऊंचे उठ चुके होते हैं| ये न तो ईमानदार होते हैं और न ही चालाक| इन्हें भगवान के दर्शन हों या न हों, इन्हें फर्क नहीं पड़ता, बस भगवान का प्रसाद मिल जाय| इस प्रकार के भक्त भगवान भोलेनाथ के प्रसाद का सेवन कर अत्यंत आध्यात्मिक सुख स्वयं ही प्राप्त कर लेते हैं| बल्कि मैं तो कहूँगा ऐसे भक्तों को तो भगवान खुद दर्शन देने आते हैं और उन्हें दो-तीन दिनों तक अपने साथ ही रखकर स्वर्ग की सैर करा लाते हैं| इस प्रकार के भक्त मंदिर जाते भले अपने खर्चे से हों पर घर किसी और के ही खर्चे से आते हैं| भगवान स्वयं अपने दूतों को आदेश देते हैं कि उनके इन परम भक्तों को ससम्मान एहतियात से घर पहुंचा दिया जाय|

 

इंसान की फितरत बिलकुल कस्तूरी मृग की भाँती है कि वह ईश्वर को बाहर खोजता है जब कि वह स्वयं उसके भीतर ही निवास करता है| यदि आपने अपने भीतर के भगवान को नहीं पाया तो आपको बाहर कभी भी भगवान नहीं मिल सकते| लाखों-करोड़ों का काला धन कुछ खास मंदिरों में गुप्तदान के रूप में चढ़ाकर भगवान का आशीर्वाद पाने की इच्छा रखने वाले लोग अपने द्वार पर खड़े भिखारी को दुत्कार कर भगा देते हैं| ईश्वर तो सर्वजगत, सब प्राणियों में व्याप्त है, किन्ही खास मंदिरों में नहीं| कबीर दास जी ने कहा भी है-

 

मोको कहां ढूढे रे बन्दे
मैं तो तेरे पास में

ना तीर्थ मे ना मूर्त में
ना एकान्त निवास में
ना मंदिर में ना मस्जिद में
ना काबे कैलास में

 

मैं तो तेरे पास में बन्दे
मैं तो तेरे पास में

 

ना मैं जप में ना मैं तप में
ना मैं बरत उपास में
ना मैं किर्या कर्म में रहता
नहिं जोग सन्यास में
नहिं प्राण में नहिं पिंड में
ना ब्रह्याण्ड आकाश में
ना मैं प्रकति प्रवार गुफा में
नहिं स्वांसों की स्वांस में

 

खोजि होए तुरत मिल जाउं
इक पल की तलाश में
कहत कबीर सुनो भई साधो
मैं तो हूँ विश्वास में|

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