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राजू सबकी लेगा

अंगार
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पिछले दिनों असीम त्रिवेदी की गिरफ्तारी सरकार के गले में खाने के उस कौर की तरह जा फंसी जो न निगलते ही बना न उगलते ही| पहली बार ये मजेदार बात देखने में आई कि किसी बन्दे को क़ानून जेल से धक्का दे कर बाहर निकाल रहा था और कैदी है कि बाहर निकलने को तैयार ही नहीं था| असीम के कसाब वाले एवं राष्ट्रीय प्रतीक वाले कार्टूनों का अवलोकन करने के बाद मुझे तो कुछ भी समझ नहीं आया| ऐसा इसलिए कह रहा हूँ कि मुझे जेल नहीं जाना है| वैसे ही सरकार आजकल सोशियल नेट्वर्किंग पर नजर रखे हुए है| अभी कुछ दिन पहले ही राजस्थान के एक फेस्बुकिया पत्रकार पर महज इसलिए एफआईआर ठोक दी गई कि उसने महात्मा गांधी के पहले से ही मौजूद एक कार्टून पर कोई कमेन्ट कर दिया था| और तो और पुलिस उसकी मोटरसाइकिल भी घर से उठा ले गई| उस पत्रकार के कर्मों का खामियाजा बेचारी बेजुबान मोटरसाइकिल को भी उठाना पडा| इसीलिए बेहतर तो यही है कि उस गजल का अनुसरण किया जाय कि- ‘जो लोग जानबूझकर नादान बन गए, मेरा ख़याल है कि वो इंसान बन गए’| इसलिए मैं असीम त्रिवेदी के देश द्रोह के बारे में तटस्थ रहूँगा लेकिन उनके बारे में जरूर कुछ कहना चाहूंगा जो मेरी नजर में असीम से भी बड़े गुनहगार हैं और हमारे सांस्कृतिक मूल्यों की इस प्रकार धीरे-२ रेड मार रहे हैं कि किसी को इसका अहसास भी नहीं हो पा रहा है| इन पर आजतक कोई मामला भी नहीं बना और शायद बनेगा भी नहीं|


आज न जाने क्यों सबकी लेने का मन कर रहा है| चौंकिए मत, जब बिट्टू सब की ले सकता है तो राजू में क्या बुराई है? कुछ दिन पहले तक अखबार के फुल पेज पर एड के साथ और फिल्म के पोस्टर पर बिट्टू छाती ठोक कर सबकी लेने का दावा करता था| आजकल रोज ही स्प्राईट के एड में भी नायक अपने प्रतिस्पर्धी लाईनमार की लेने के बारे में कहता है कि – ‘इसको कैसे झेलूं मैं, इसकी कैसे ले लूं मैं?’ फिर वो स्प्राईट पीकर उसकी ले लेता है| मतलब, लेना एक स्टेटस सिम्बल बन गया है इसीलिए आज हर कोई एक-दूसरे की लेने को तैयार बैठा है| इन सबकी देखा-देखी मुझे भी सबकी लेने का मन कर रहा है| लेकिन लेना क्या है, ये मुझे नहीं पता| लेकिन जब सब ले रहे हैं तो कोई काम की चीज ही होगी|

पिछले दिनों हमारे देश का एक स्वयंभू बुद्धिजीवी तबका पाकिस्तानी कलाकारों के भारत में अपनी कला के प्रदर्शन करने के पक्ष में एक सुर से राग अलापे हुए था| मेंहदी हसन और गुलाम अली जैसे कलाकार कितने ही सालों से भारत में इज्जत पाते रहे हैं सबको पता है| लेकिन पिछले कुछ समय से कला के नाम पर कुछ भोंडे पाकिस्तानी कलाकार भारत में अपनी भोंडी कला का प्रदर्शन करते रहे हैं और हमारा देश उसे हंस-२ कर आत्मसात करता रहा है| शकील नाम का एक भोंडा पाकिस्तानी कलाकार कॉमेडी के नाम पर औरतों की खुले आम इज्जत उतारता रहा है लेकिन किसी को कोई फर्क नहीं पडा| ज़रा इसके ख़ास जुमलों पर ध्यान दीजिये- बदजात औरत, बेशर्म औरत, बेहया औरत, कमीनी औरत, कुलटा, रांड ….आदि-२| अपने लगभग हर कार्यक्रम में शकील इन जुमलों का इस्तेमाल करता है और प्रोग्राम की एंकर लडकी की इज्जत उतार कर ही वो हंसाने की कोशिश करता है, इसके अलावा उसमें कॉमेडी नाम की कोई कला नहीं है| अफ़सोस होता है कि पता नहीं पैसे या कैरियर, किसकी वजह से वह लडकी और जज की कुर्सी पर बैठी एक औरत अत्यंत बेहूदा तरीके से ठहाके लगाकर इस कुकृत्य में शामिल होती है| इस प्रोग्राम के अन्य कलाकार भी एंकर के अंग-प्रदर्शन पर बेहूदे कमेन्ट कर हंसाने की कोशिश करते हैं और एंकर पूरे प्रोग्राम के दौरान खिलखिलाती रहती है| इसी बेहूदगी को हंस कर स्वीकार करना ही आजकल कॉन्फिडेंस कहा जाता है| इन कलाकारों के कुछ ट्रेडमार्क जुमले हैं-….तेरी माँ का साकी नाका, तेरे शरीर में इतने छेद कर दूंगा कि असली नहीं दूंढ़ पायेगा, भूतनी के, साले, हरामी, कुत्ते, कमीने, नामर्द, …….शायद ही कोई गाली या भद्दे शब्द होंगे जो कि इन कार्यक्रमों में इस्तेमाल न होते हो|

अन्ना हजारे या बाबा रामदेव के बारे में कुछ भी कहना बड़ा संवेदनशील होता है क्योंकि दोनों के ही लाखों समर्थक हैं| लेकिन मैं एक बुढऊ को जानता हूँ जो पता नहीं कब क्या कह दें या कर दें| अरविन्द केजरीवाल की कई सालों की मेहनत का ये कबाड़ा करने पर तुले हैं| मेहनत थी अरविन्द की और हो गया अन्ना-अन्ना| पहले इन्होने जोश में आकर मंच से एलान कर दिया कि राजनैतिक पार्टी बनायेंगे पर बाद में साफ़ मुकर गए| अब केजरीवाल को सलाह दे रहे हैं कि कपिल सिब्बल के खिलाफ चुनाव लडें| ये साठ के बाद की उम्र कमबख्त होती ही ऐसी है| दद्दा लौट जाओ रालेगण सिद्धि और भगवान् का भजन करो| इसी साठ के बाद की उम्र में लता मंगेशकर ने बताया कि मोहम्मद रफ़ी ने रॉयल्टी को लेकर हुए विवाद के बाद उनसे लिखित में माफी माँगी थी| इसलिए इस उम्र का कोई भरोसा नहीं करना चाहिए, इंसान कुछ भी कह या कर सकता है|

किरण बेदी ने भी घूंघट ओढ़कर और नाचकर जनता का खूब मनोरंजन किया पर पीछे-२ अपने काम भी अच्छी तरह से करती रहीं फिर चाहे वो हवाई यात्राओं का एडजस्टमेंट हो या फिर प्रभाव का इस्तेमाल कर बच्चों की पढ़ाई हो| ऊपर से तुर्रा ये कि चंदे के हिसाब में अनियमितता को लेकर केजरीवाल पर आरोप भी लगा दिए| एक सही दिशा की और जाते आन्दोलन का इन लोगों ने कबाड़ा कर दिया|

बाबा और अन्ना का रिश्ता सहवाग और धोनी जैसा है लेकिन दोनों में सहवाग कौन है और धोनी कौन समझ नहीं आता| दोनों ही एक-दूसरे को अपनी टीम में नहीं रखना चाहते क्योंकि दोनों को एक-दूसरे से महफ़िल लूट ले जाने का ख़तरा नजर आता है| बाबा ने पिछले दिनों फिर से सरकार को अपनी योगविद्या के दर्शन कराये जब वे कई घंटे तक एक बस की खिड़की से बार-२ मुंडी अन्दर बाहर करते रहे| बिना योग के यह करना एक आम आदमी के बस की बात नहीं है| और धन्य हो टीवी चैनलों का कि वो घंटों तक उसी बस पर फोकस किये अपना गला फाड़ते रहे| इसी तरह के मीडिया की मेहरबानी से आज लोग भले ही भगत सिंह को न जानते हों पर शर्लिन चोपड़ा और पूनम पांडे को भली भाँती जानते हैं|

पिछले दिनों भगत सिंह का जन्मदिन आकर चला गया पर लोगों को फेसबुक, ट्विट्टर से फुर्सत ही नहीं मिली कि उन्हें याद करते| पिछले दिनों ही कुछ टीवी चैनल करीना कपूर का जन्मदिन सेलीब्रेट कर रहे थे जो कि कई सालों से विभिन्न लोगों के साथ लिव-इन रिलेशनशिप का अनुभव लेने के बाद अब करीना कपूर खान हो जायंगी| इनकी महानता से पूरा देश प्रभावित है| इनका हर ठुमका करोड़ों का होता है| वैसे भी बॉलीवुड में अत्यंत आधुनिक एवं विचारशील महिलाएं रहती हैं| जहां हमारे देश की संस्कृति है कि शादी के बाद प्यार, वहीं ये पश्चिमी सभ्यता के अनुसार पहले प्यार फिर शादी में यकीन रखती हैं| अनुभव पर इनका विशेष ध्यान रहता है इसीलिये ये तलाक करवा कर या तलाकशुदा से शादी करने में यकीन रखती हैं| इसी लिए दोनों कपूर बहने भी इसी सिद्धांत पर चली हैं| अगर आज राज कपूर ज़िंदा होते तो इनसे यही कहते कि मैंने बहुतों की ली पर तुमने मेरी ले ली|

उफ्फ, ये लेना भी कोई आसान काम नहीं है| लाइन में बहुत लोग हैं पर इतना स्टेमिना नहीं है| इसके लिए कुछ दिन आराम के बाद नए जोश से आने की जरूरत है| अब स्प्राईट की अहमियत समझ आ रही है| जाते-२ एक नवनिर्मित शेर अर्ज है-

‘ये लेना नहीं आसां, बस इतना समझ लीजे,

देने वाले नहीं थकेंगे, लेने वाले ने थक जाना है’

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