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आज 31 अक्टूबर की पूर्वसंध्या पर मैं यह लेख लिख रहा हूँ| कल 31 अक्टूबर है, इंदिरा गांधी की शहादत का दिन| इस दिन को चापलूस कांग्रेसी इंदिरा गांधी की शहादत के लिए याद करते हैं और मैं याद करता हूँ इस दिन को उस मनहूस दिन के लिए जिस दिन मानवता और भाईचारे की ह्त्या की नींव पडी थी| मुझे आज भी याद है की 31 अक्टूबर 1984 की हल्की सर्दियों की दोपहर थी, तब मैं आईडीपीएल इंटर कॉलेज में हाई स्कूल का छात्र था| सभी बच्चे लंच के टाइम पर गुनगुनी धूप में खेल-कूद में मस्त थे कि अचानक से खबर आई की प्रधानमंत्री इंदिरागांधी की ह्त्या हो गई है और स्कूल की छुट्टी हो गई| तब छुट्टी के नाम पर बालमन को खुशी होती थी पर आज उस मनहूस दिन की भयावहता का अहसास होता है|
इसके बाद इस देश में जो शर्मनाक काण्ड हुआ वो भले अब इतिहास हो चुका हो पर मानवता के दामन पर लगे खून के दाग शायद कभी भी धुल नहीं पायेंगे| इंदिरागांधी की ह्त्या के बाद कुछ प्रमुख कांग्रेसी नेताओं के नेतृत्व में सिखों पर जो अत्याचार हुए उसके लिए इतिहास कभी भी कांग्रेसियों को माफ नहीं करेगा| न जाने कितने सिखों की ह्त्या हुई, कितनी ही सिख माँ-बहनों के साथ बदसलूकी और बलात्कार हुए, कितने ही सिख इन दंगों और लूटपाट के चलते बर्बाद हो गए| मुझे आज भी याद है कि तब आईडीपीएल में भव्य गुम्बद वाला गुरुद्वारा हुआ करता था, जिसमें हम अक्सर ही लंगर खाने जाया करते थे| तब ये लंगर सामाजिक मेल-मिलाप, भाई-चारे और आपसी सौहार्द्र की मिसाल पेश करते थे| इंदिरागांधी की ह्त्या के बाद भड़के दंगों में उन्हीं लोगों ने, जो कि इसमें कभी लंगर छका करते थे, इस गुरूद्वारे को इस कदर लूटा और मटियामेट किया कि इसकी नींव तक खोद डाली| अराजक तत्व इस गुरूद्वारे के पेड़ तक काट कर ले गए, मानों मानवता को समूल ही मिटा देना चाहते हों| आईडीपीएल में कार्यरत एक सिख सहकर्मी की उसके ही साथियों ने अत्यंत बर्बरतापूर्वक सरेआम ह्त्या की| पहले पीट-२ कर अधमरा किया फिर पत्थरों से उसका सर कुचला और फिर पेट्रोल छिड़ककर आग लगा दी| ऋषिकेश में सिखों की प्रॉपर्टी को लोगों ने जमकर लूटा| मजबूरी में कई सिखों को औने-पौने में अपनी प्रॉपर्टी बेचनी पडी और अपना काम-धंधा समेट कर भागना पड़ा| जिन लोगों के साथ कल तक उठा-बैठा करते थे, उन्हीं से सिख अपनी जान बचाए फिरते थे| न जाने कितने ही सिखों को अपनी पहचान छुपाने और जान बचाने के लिए अपने केश ही कटवाने पड़े| भाई ही भाई का दुश्मन हो गया था| पूरे देश में असंख्य सिखों की हत्याएं हुई, बलात्कार हुए और मानवता शर्मशार हुई और इस सबका नेत्रित्व कांग्रेस के कुछ प्रमुख नेताओं ने किया जिन्हें बाद सजा के बदले में इनाम स्वरूप मंत्री भी बनाया गया| धिक्कार है उन सिखों को जो आज भी उसी कांग्रेस से जुड़े हैं जिसने उनकी बिरादरी का अपमान करने, उनकी औरतों की बेइज्जती करने और सिख कौम को मिटाने में कोई कसर नहीं छोडी| गुरु गोविन्द सिंह ने कहा था-
‘चिड़ियन ते मैं बाज तुडाऊँ,
सवा लाख से एक लडाऊं,
तब गोविन्द सिंह नाम कहाऊँ’
कहाँ तो एक-२ सिख को सवा-२ लाख कांग्रेसियों से बदला लेना था और कहाँ एक-२ कांग्रेसी के तलवों पर सवा-२ लाख सिख लोट गए| धिक्कार है|
मुझे थोड़ा और पीछे जाना पडेगा| हालांकि ये एक विवादास्पद विषय है और इस पर सच बोलने की कीमत लालकृष्ण आडवानी को भी चुकानी पडी थी, लेकिन सच तो सच ही होता है, दबाने से कभी नहीं दबता| मोहम्मद अली जिन्ना भारतीय स्वाधीनता संग्राम के एक बड़े सिपाही हुआ करते थे और सही मायनों में उनका कद जवाहरलाल नेहरु से भी काफी बड़ा हुआ करता था| अगर सब कुछ सही होता तो शायद जिन्ना इस देश के पहले प्रधानमंत्री होते और इस देश और नेहरु परिवार का इतिहास और वर्तमान, दोनों ही कुछ और ही होते| लेकिन जवाहरलाल नेहरु का लालच और महत्वाकांक्षा इस देश और जिन्ना दोनों पर भारी पडा और महात्मा गांधी जो कि जवाहरलाल नेहरु को अत्यंत प्रिय मानते थे, ने जवाहरलाल नेहरु को प्रधानमंत्री बनाने में सहयोग दिया| एक ही पल में देश के दो टुकड़े हो गए, आजादी के सिपाही जिन्ना देश के दुश्मन बन गए और इस देश का इतिहास ही बदल गया| देश भारत और पाकिस्तान दो विभिन्न सम्प्रदायों के देश में बाँट दिया गया| जमकर नर-संहार हुआ, बलात्कार और हत्याएं हुई, कितने ही घर उजड़े और कितने ही लोग बर्बाद हो गए| एक व्यक्ति की महत्वाकांक्षा और लालच ने इस देश का इतिहास और भविष्य दोनों ही खूनी कर दिया| तब भी जिस कौम ने सबसे ज्यादा इस त्रासदी को झेला उसमें सिख, पंजाबी और सिन्धी ही प्रमुख थे और तब भी इन्हें बर्बाद करने में कांग्रेस,नेहरु और गांधी का ही मुख्य हाथ था|
आज से करीब ठीक दो वर्ष पहले जलियांवाला बाग में दीवारों पर गोलियों के निशान और शहीदी कुआं देखते समय मैंने महसूस करने की कोशिश की कि जलियांवाला काण्ड के समय लोगों पर किस हद तक जुल्म, दमन और अत्याचार हुआ होगा| हैरत की बात है कि सिखों को इस दर्द का अहसास नहीं होता| पूरे देश की तो मैं नहीं कहता किन्तु सिखों के प्रदेश पंजाब में आज अगर एक भी कांग्रेसी है तो ये पंजाब के लिए अत्यंत शर्म की बात है|
मुझे हैरत होती है कि 31 अक्टूबर को देश, और ख़ास तौर पर सिख, इंसानियत के मरण दिवस और शर्मनाक दिवस के रूप में क्यों नहीं याद करते|
अगर मैं इस देश की जनता का आह्वान कर सकने के काबिल होता तो गुरु गोविन्द सिंह जी का यही सन्देश देना चाहता –
‘सूरा सो पहचानिए जो लड़े दीन के हैत,
पुर्जा पुर्जा कट मरेकबहू ना छाडे खेत|’
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