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‘धर्मनिरपेक्ष’ राष्‍ट्रपति या दलित बनाम दलित का चुनाव

मेरा भारत महान
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देश के 14वें राष्ट्रपति के लिए एनडीए के रामनाथ कोविंद और विपक्ष की प्रत्याशी मीरा कुमार आमने-सामने हैं। पर सवाल यह उठता है कि सविधान कि धारा 123(3) के तहत यह राष्ट्रपति का चुनाव वैध है या अवैध? क्योंकि जिस प्रकार से सत्ता पक्ष (एनडीए) ने राष्ट्रपति के पद लिए रामनाथ कोविंद को दलित बताकर उम्मीदवार घोषित किया, क्या वह उचित था? और वही ग़लती विपक्षी दलों ने दोहराई। विपक्ष ने अपना प्रत्याशी मीरा कुमार को बनाकर घोषणा की कि ये असल दलित हैं? प्रश्न यह है की आज का चुनाव दलित बनाम दलित है या हम देश के लिए ‘धर्मनिरपेक्ष’ राष्ट्रपति का चुनाव कर रहे हैं? या हमने भेदभाव, धर्म, जाति की राजनीति को बढ़ावा देने की दिशा में कदम रख दिया है?

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जनप्रतिनिधि कानून की धारा 123(3) कहती है कि किसी उम्मीदवार, उसके एजेंट, उम्मीदवार की सहमति से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा या उसके चुनावी एजेंट द्वारा धर्म, नस्ल, जाति, समुदाय या भाषा के आधार पर उसे वोट करने या वोट नहीं करने के लिए अपील करना या किसी उम्मीदवार के निर्वाचन की संभावनाओं को आगे बढ़ाने के लिए या पिफर प्रभावित करने के लिए धार्मिक प्रतीकों या राष्ट्रीय प्रतीकों का इस्तेमाल करना भ्रष्ट तरीका माना जाएगा।

उच्चतम न्यायालय ने इसी वर्ष धारा 123(3) का हवाला देते हुए कहा था कि धर्म, नस्ल, जाति, समुदाय या भाषा के आधार पर वोट मांगा जाना चुनाव कानून प्रावधान के तहत ‘भ्रष्ट तरीका’ है। अब सोचने वाली बात यह है जहां सर्वप्रथम पद राष्ट्रपति की चयन प्रक्रिया जाति-धर्म के आधार पर होगी, तो उस देश में धर्म, नस्ल, जाति, समुदाय या भाषा के आधार पर वोट मांगना कैसे ग़लत माना जायेगा? कहीं न कहीं यह चयन प्रक्रिया छोटे चुनावों में धर्म, नस्ल, जाति, समुदाय को अवश्य ही प्रोत्साहित करेगी।

मेरा मानना है कि उच्चतम न्यायालय एवं चुनाव आयोग को देश के 14वें राष्ट्रपति के लिए होने वाले चुनाव को निरस्त कर देना चाहिये। आवश्यक कार्यवाही करें, अन्यथा आगे से किसी छोटे-बड़े चुनाव में धर्म, जाति के नाम पर वोट मांगने या प्रत्याशी बनाने के लिए किसी पर न्यायिक कार्यवाही न करने की ठान लें। याद रहे हमारे देश में राष्ट्रपति का पद बहुत गरिमा का पद है। इसको भी धर्म-जाति के तराजू में तोलना हमने प्रारम्भ कर दिया है, तो अवश्य ही हमारा देश बदल रहा है।

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