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कहते हैं कि यदि मनुष्य चाहे तो अपनी इच्छा शक्ति से कुछ भी कर सकता है और ऐसा ही किया है मणिपुर की 44 वर्षीय मानवाधिकार कार्यकर्ता इरोम चानू शर्मिला ने जिनको आयरन लेडी के नाम से भी जाना जाता है उन्हों ने पूर्वोत्तर राज्यों में सशस्त्र बल विशेष शक्तियां अधिनियम 1958 को हटाने के लिए भूख हड़ताल वर्ष 2000 में 28 साल की उम्र में भूख हड़ताल पर बैठीं थीं। और आखिर कार उन्होंने मंगलवार को 16 साल से जारी अपना अनशन तोड़ दिया।
इरोम ने अपनी भूख हड़ताल तब की थी जब 2 नवम्बर के दिन मणिपुर की राजधानीइंफालकेमालोममें असम राइफल्स के जवानों के हाथों 10 बेगुनाह लोग मारे गए थे। उन्होंने 4 नवम्बर 2000 को अपना अनशन शुरू किया था, इस उम्मीद के साथ कि 1958 से अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मणिपुर, असम, नगालैंड, मिजोरम और त्रिपुरा में और 1990 से जम्मू-कश्मीर में लागू आर्म्ड फोर्स स्पेशल पावर एक्ट (एएफएसपीए) को हटवाने में वह महात्मा गांधी के नक्शेकदम पर चल कर कामयाब होंगी।पूर्वोत्तर राज्यों के विभिन्न हिस्सों में लागू इस कानून के तहत सुरक्षा बलों को किसी को भी देखते ही गोली मारने या बिना वारंट के गिरफ्तार करने का अधिकार है। (यह पैराग्राफ विकिपीडियाद्वारा लिया गया है )
आयरन लेडी ने जो कर के दिखाया है वो इतना आसान नहीं है जितना सुनने में लगता है यह अब तक की सबसे लंबी भूख हड़ताल है। साल 2000 से, जब से वह भूख हड़ताल पर बैठी थीं, तब से ही उन्होंने अपने बालों में कभी कंघी नहीं की, और न ही कभी ब्रश किया। वह अपने दांतों को रोई से साफ कर लेती थीं। इन 16 वषों के दौरान न तो उन्होंने कुछ खाया और न ही पिया। और तो और वे 16 वर्षों से अपनी माँ से भी नहीं मिलीं हैं क्यूंकि उन्होंने कसम खाई थी की जब तक पूर्वोत्तर राज्यों से आर्म्ड फोर्स स्पेशल पावर एक्ट नही हटवा लेती वो न कुछ खाएगी और न अपनी माँ से मिलेंगी।
मैं इरोम शर्मिला को ज्यादा नहीं जनता पर जबसे इनकी कहानी पढ़ी और टी वी पर सुनी है मेरे दिल में उनके लिए इज्ज़त वो सम्मान ने जन्म ले लिया है एवं उनके बारे में और अधिक जानने की उत्सकता पैदा हो गई है। क्यंकि ऐसी बहादुर महिलाये बहुत कम होती हैं। उन्होंने पुरे संसार को सीख दी है कि अपने देश – प्रदेश के हितों अधिकारों को मनवाने के लिए हिंसा करने की आवश्कता नहीं होती हैं वल्कि अपनी मांगों को मनवाने के लिए अहिंसा ही सब से अच्छा और बड़ा हत्यार है।
कई लोग मानवाधिकार कार्यकर्ता इरोम चानू शर्मिला को ग़लत और मुर्ख समझ रहे होंगे या समझते होंगे कि इतने सालों तक भूख हड़ताल इतना बलिदान,सघर्ष का फायदा क्या हुआ ? तो मेरे हिसाब से ऐसे लोगों की सोच कही न कही ग़लत है, वो इस कारण से कि उन्होंने अपनी लंबी भूख हड़ताल बलिदान,सघर्ष के माध्यम से सन 2000 से अब तक जितनी भी राज्य सरकारे और केन्द्रीय सरकारे आई उनपर प्रश्न चिन्ह अवश्य लगा दिया है कि उनके नजदीक मानव जाति कि कितनी किमत है ?
सत्य यह है कि इरोम की लंबी भूख हड़ताल के पीछे कही न कही राज्य सरकारे और केन्द्रीय सरकारों की अनदेखी करना भी है मुझ को नहीं मालूम के एएफएसपीए कानून को लगाने और न हटाने के लिए भारतीय संविधान में किया नियम हैं और क्या फायदे और नुकसान हैं पर शर्मिला की लंबी भूख हड़ताल और बलिदान को देखकर यह अवश्य समझ में आया कि उन्होंने मानवाधिकारों के लिए न्याय की लड़ाई लड़ी है जिसको मैं सलाम करता हूँ और इसके लिए पुरे भारत को भी सलाम करना चाहिये।
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