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टूटे मर्यादा तो टूटे
रूठे अपनो तो रूठे
बिन सत्ता के सब है झूठे
ऐसे में सत्ता हाथ से कैसे छूटे
पतली गली से होकर
सत्ता के गलियारी में पहुँचना आसान नहीं
भइया, सत्ता के गिरफ्त में सब
अपितु सत्ता के खातिर इतना घमासान नहि
सत्ता कोइ कामधेनु गाय नहि
फिर भी बंधे है इन्हिके खुंटे
ऐसे में सत्ता हाथ से कैसे छूटे………………………
मंदिर हो या मस्जिद
भरे पडे है सत्ता के चाहनेवालो से
अल्ला हो या राम
उनको भी बाँट रहे है अपने सवालो से
फिसल रहे है मुददा हाथोँ से
अबकी बार तूँ – तूँ , मैं -मैं के ही बूत्ते
ऐसे में सत्ता हाथ से कैसे छूटे………………………
बनारस में जमबाड़े है दिग्गज का
जनता को गर्मी में पिला रहे बिन दही के लस्सी
कोई बाहुंबली तो कोइ सपने का सौदागर
फांसने की करली तैयारी बस ज़नता ठामे रस्सी
सावधान, कोइ फिरसे आपको न लूते
ऐसे में सत्ता हाथ से कैसे छूटे………………………
सत्ता से है सबको प्यार
सत्ता के दंगल में सब है, बुर्जग हो या बच्चे
दागी से परहेज़ नहि
चुनावो में तो दागी ही लगते है अच्छे
खुदके हड्डी में जोर नहि, तो चल पड़े है बैसाखी के बूत्ते
ऐसे में सत्ता हाथ से कैसे छूटे………………………
बेचारे जनता करे तो क्या करे,
चुनना ही पड़ेगा अन्यथा कोइ विकल्प नहि
NOTA तो सिर्फ़ सांत्वना है
फिर करें क्या जिनका खुद ही कोइ सँकल्प नहि
मंहगाई, भ्रष्टाचार, गरीबी हो या बेरोजगारी
इनके उपर गाली- गलोज पड़े है भारी
जनता तो तमाशबीन बनी है
नेताजी पी रहे खुदही आम्ल के घुटें
ऐसे में सत्ता हाथ से कैसे छूटे………………………
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