Menu
blogid : 16830 postid : 699713

कदाचित “आप” भी रहे न आप

आत्ममंथन
आत्ममंथन
  • 67 Posts
  • 35 Comments

न आग हैं तेरे कलेज़े में जिसके तपस में बन गए थे भाँप

न ओ ठंडक ही रहा तेरे सोंच में जिससे सब गए थे काप

सफाई करने के नाम पर समेटने को लेकर आये झाड़ू छाप

वही तानाशाह फिरसे, कदाचित “आप” भी रहे न आप

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh