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डर लगता है….तुम्हारे होते हुए भी…पता नहीं क्यों …बहुत डर लगता है….
ये सच है कि मैं जब भी मुश्किल में होती हूं…तुम मेरे साथ होेते हो….फिर भी….डर लगता है
आजकल हर बात से डर लगता है….
सब कहते हैं….कि तुम सबसे बड़े हो….पर मेरा डर तुमसे भी बड़ा हो गया है मालिक
मेरे भाई…बहन….मां…बाप….और ना जाने कितने ही रिश्ते हर दिन दांव पर लगे रहते हैं….पता नहीं कल सुबह कौन सी खबर सनसनी फैलाएगी….अब कोई भी बात इतनी बड़ी नहीं लगती….जितना मेरा डर बड़ा है….
कोई स्कूल जाता है….तो भी डर लगता है…..ये डर फेल-पास का नहीं….बच्चा जिंदा लौटेगा की नहीं….इसका डर लगता है…
कोई बच्ची बाहर जाती है….तो डर लगता है….तेजाब तो कोई भी फेंक सकता है ना मालिक….और तुम रोक भी तो नहीं पाते मानव पिशाचों को…..तभी तो कह रही हूं….मेरा डर सबसे बड़ा है
कोई भी सरेराह चाकू से गोंद के फरार हो जाता है…..सज़ा मिले – ना मिले….क्या फर्क पड़ता है….गया हुआ तो कभी लौटता नहीं…..
डर लगता है…कि तुम हो….या तुम्हारे होने की अफवाह उड़ाई गई है…. कहीं शैतान की सरकार तो नहीं बन गई परलोक में…
डर लगता है उस भूख से…..जिसने मानव को दानव बना दिया है….ये कैसी तृष्णा दे दी तुमने पिशाचों को मालिक…..कि उन्हें ना मां दिखती है, ना बहन, ना मासूम बच्चे- बच्चियां…..दिखती है तो बस देह….वो देह जो उनकी अतृप्त हवस को कुछ देर की शांति दे सके….
डर लगता है….क्योंकि राक्षसों का पेट कभी नहीं भरता…..तो क्या वो मासूम किसी की भूख मिटाने के लिए जन्मा था….क्या सचमुच तुम्हें तनिक भी पीड़ा नहीं हुई ये होते देख…..क्या क्षीण हो चुकी है तुम्हारी परमशक्ति….
जानती हूं….कि जीवन औऱ मृत्यु सब पूर्व सुनिश्चित है….लेकिन इतनी बर्बर मृत्युलीला….क्या सचमुच तुमने ही लिखी….
जो मरने के बाद पापियों को सज़ा देने का तुम्हारा विधान है…..सरासर गलत है….
वो खौलते तेल में तलना, वो हजारों सांप औऱ बिच्छुओं के बीच डाल देना, वो बीच से काटना….ये सब मरने के बाद ही क्यों….
क्यों ना इन पापियों को तुरंत ही ऐसी सज़ा मिले….क्या तुम्हें भी डर लगता है…….
अगर सचमुच परिवर्तन संसार का नियम है तो तु्म ही क्यों नहीं बदल लेते अपने पुराने नियम- कानून
या तुम्हें भी ये कलयुगी लीलाएं भाती हैं…..
डर लगता है….तुम्हारे चुप रहने से….
बहुत डर लगता है…..इतना कि ….ये सब लिखते हुए भी हाथ कांप रहे हैं…..
अगर तुम सचमुच बड़े हो….तो मेरे डर को पराजित करो….या शस्त्र रख दो….और एक बार पहले की तरह आकाशवाणी के जरिए बोल दो….कि तुम्हारी सत्ता समाप्त हो गई….अब पिशाचों का संसार बसने वाला है….
डर लगता है….कि कहीं तुम हार ना जाओ….मेरे डर के आगे….
चाहती हूं…कि ऐसा हरगिज ना हो….फिर भी डर लगता है…..
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