Ruchi Shukla
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कोई समझे कि न समझे ये मोहब्बत की जबां…
मेरा दिल खूब समझता है मोहब्बत की जबां…
बड़े करीब से महसूस किया है उसको…
बड़ी ही क़ारसाज़ है ये मोहब्बत की जबां…
बारहा इश्क के जज़्बात मचल उठते हैं….
वस्ल की रात सी बेकल है मोहब्बत की जबां…
जिंदगी जब लगे मायूस…बेमुरव्वत सी….
उसकी बस एक दवा है…ये मोहब्बत की जबां…
कोई पत्थर की बुत कहे या कहे रब उसको….
इश्कवालों का ख़ुदा है ये मोहब्बत की जबां…
जिसका दिल ही नहीं धड़का कभी किसी के लिए
उसके पल्ले कहां पड़ती है मोहब्बत की जबां…
कोई समझे कि न समझे ये मोहब्बत की जबां…
मेरा दिल खूब समझता है मोहब्बत की जबां…
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