मैं घर में रहूं या दफ्तर में, सफर में रहूं या अपने दोस्तों और अपने परिवार के बीच….लेकिन एक सवाल हर वक्त मेरा पीछा करता रहता है; कि आखिर क्यों बार-बार, हर बार उसे ही तकलीफ झेलनी पड़ती है छोड़ दिए जाने की। क्यों एक लड़की, एक बीवी और एक बेटी को ही सताता है छोड़ दिए जाने का डर। क्यों बार-बार वो ही याचना करती है प्रेम और सुरक्षा की, क्यों उसे ही होती है हर एहसास को समेट कर रखने की लालसा।
मांगती हूं ईश्वर से हर स्त्री के लिए वो शक्ति, जो उसने पुरुषों को पुरुषत्व स्वरूप दी है। कि जो छोड़ जाए कोई तो संभाल सकें अपने टूटते दिल को। जो चला जाए कोई तो शोक ना मनाएं, कोई और राह तलाशें, आगे बढ़ें। किसी के भी बिना बिंदास जिएं। धोखा देकर भी गजब का स्वाभिमान बनाए रखने का हुनर भी हो और प्रतिशोध लेने की अपार क्षमता भी।
क्योंकि आज के दौर में असली-नकली नोटों की तरह ही असली-नकली पुरुषों में भेद कर पाना भी बड़ा मुश्किल हो चला है। मेरे सामने गुजरे सालों में तमाम ऐसी लड़कियां मिलीं जिन्हें जिंदा बुत कहा जा सकता है, उन्हें कोई बीमारी नहीं थी, बस कोई छोड़ गया था। और क्योंकि वो स्त्रियां थीं इसलिए दुख के उस दलदल से बाहर ही नहीं निकल पाईं। प्यार और समर्पण के पुराने वादे और यादों के मकड़जाल में उलझकर रह गईं और उन्हें छोड़कर जाने वाले पुरुषों को रत्ती भर भी फर्क नहीं पड़ा। कभी नहीं…और ना ही पड़ेगा कभी, क्योंकि वो पुरुष हैं।
शायद उनकी परवरिश ही कुछ ऐसी होती है, संवेदनशीलता कमजोरी की निशानी मानी जाती है, ‘मर्द को दर्द नहीं होता’ जैसे वक्तव्यों को चरितार्थ करते -करते सचमुच वाजिब दर्द से भी उबर जाते हैं पुरुष। लेकिन जिन्हें वो छोड़ देते हैं उन्हें दर्द होता है क्योंकि वो स्त्री हैं।
हर पुरुष ऐसा नहीं होता, लेकिन जो कुछ पुरुष ऐसे होते हैं उनकी वजह से पूरे पुरुष वर्ग को सवालों का सामना करना पड़ता है।
खबरों के बीच रहने का खामियाजा है कि हर रोज तमाम ऐसी खबरों को देखना और सहना पड़ता है जिनसे किसी का भी मन व्याकुल हो जाए। कभी कोई लड़का एकतरफा प्यार में एक लड़की को बीच सड़क पर चाकू से 32 बार गोंद देता है, तो कभी कोई लड़की को आग लगाकर उसकी अधजली लाश मायके पहुंचा देता है। कोई छोटी-छोटी बच्चियों की जिंदगी बर्बाद कर देता है तो कोई केवल मना करने पर लड़की पर तेजाब फेंक देता है। इन सभी घटनाओं पर गौर करें तो सज़ा केवल स्त्रियों को मिलती है….जबकि स्त्रियां पुरुषों के साथ ऐसा कुछ नहीं करतीं। इसलिए नहीं कि वो कमजोर हैं, बल्कि इसलिए कि उनमें पुरुषों जैसी भूख, क्रूरता, असंवेदनशीलता और दरिंदगी नहीं है।
स्त्रियां मन से मज़बूत होती हैं और पुरुष सबसे पहले मन पर ही आघात करता है….फिर स्त्री निरीह हो जाती है। चाहकर भी कुछ नहीं कर पाती अपनी पुरानी स्थिति में लौटने के लिए। जाने कब से ये होता रहा है। वो बिना लड़े ही हार मानती रही है, लेकिन समाज में बदलाव के लिए स्त्रियों में बदलाव ज़रूरी है, क्योंकि वो कुछ पुरुष कभी नहीं बदलेंगे।
तो उठो …जागो….अपने स्त्रीत्व को समझो….अपनी शक्ति पर आघात मत सहो, किसी को दिल के इतने करीब ना लाओ कि उसके जाने से असहनीय दर्द हो। पुरुषों से कुछ सीखो, पुरुषों को पुरुषों की ही विद्या से जीतो। किसी के आगे हाथ ना फैलाओ, किसी को जाने से ना रोको, खुद को पहचानो, अपना दिल अपने ही सीने में धड़कने दो फिर सारा जहां तुम्हारा होगा।
रुचि शुक्ला (A PROUD LADY)
मैं घर में रहूं या दफ्तर में, सफर में रहूं या अपने दोस्तों और अपने परिवार के बीच….लेकिन एक सवाल हर वक्त मेरा पीछा करता रहता है; कि आखिर क्यों बार-बार, हर बार उसे ही तकलीफ झेलनी पड़ती है छोड़ दिए जाने की। क्यों एक लड़की, एक बीवी और एक बेटी को ही सताता है छोड़ दिए जाने का डर। क्यों बार-बार वो ही याचना करती है प्रेम और सुरक्षा की, क्यों उसे ही होती है हर एहसास को समेट कर रखने की लालसा।
मांगती हूं ईश्वर से हर स्त्री के लिए वो शक्ति, जो उसने पुरुषों को पुरुषत्व स्वरूप दी है। कि जो छोड़ जाए कोई तो संभाल सकें अपने टूटते दिल को। जो चला जाए कोई तो शोक ना मनाएं, कोई और राह तलाशें, आगे बढ़ें। किसी के भी बिना बिंदास जिएं। धोखा देकर भी गजब का स्वाभिमान बनाए रखने का हुनर भी हो और प्रतिशोध लेने की अपार क्षमता भी।
क्योंकि आज के दौर में असली-नकली नोटों की तरह ही असली-नकली पुरुषों में भेद कर पाना भी बड़ा मुश्किल हो चला है। मेरे सामने गुजरे सालों में तमाम ऐसी लड़कियां मिलीं जिन्हें जिंदा बुत कहा जा सकता है, उन्हें कोई बीमारी नहीं थी, बस कोई छोड़ गया था। और क्योंकि वो स्त्रियां थीं इसलिए दुख के उस दलदल से बाहर ही नहीं निकल पाईं। प्यार और समर्पण के पुराने वादे और यादों के मकड़जाल में उलझकर रह गईं और उन्हें छोड़कर जाने वाले पुरुषों को रत्ती भर भी फर्क नहीं पड़ा। कभी नहीं…और ना ही पड़ेगा कभी, क्योंकि वो पुरुष हैं।
शायद उनकी परवरिश ही कुछ ऐसी होती है, संवेदनशीलता कमजोरी की निशानी मानी जाती है, ‘मर्द को दर्द नहीं होता’ जैसे वक्तव्यों को चरितार्थ करते -करते सचमुच वाजिब दर्द से भी उबर जाते हैं पुरुष। लेकिन जिन्हें वो छोड़ देते हैं उन्हें दर्द होता है क्योंकि वो स्त्री हैं।
हर पुरुष ऐसा नहीं होता, लेकिन जो कुछ पुरुष ऐसे होते हैं उनकी वजह से पूरे पुरुष वर्ग को सवालों का सामना करना पड़ता है।
खबरों के बीच रहने का खामियाजा है कि हर रोज तमाम ऐसी खबरों को देखना और सहना पड़ता है जिनसे किसी का भी मन व्याकुल हो जाए। कभी कोई लड़का एकतरफा प्यार में एक लड़की को बीच सड़क पर चाकू से 32 बार गोंद देता है, तो कभी कोई लड़की को आग लगाकर उसकी अधजली लाश मायके पहुंचा देता है। कोई छोटी-छोटी बच्चियों की जिंदगी बर्बाद कर देता है तो कोई केवल मना करने पर लड़की पर तेजाब फेंक देता है। इन सभी घटनाओं पर गौर करें तो सज़ा केवल स्त्रियों को मिलती है….जबकि स्त्रियां पुरुषों के साथ ऐसा कुछ नहीं करतीं। इसलिए नहीं कि वो कमजोर हैं, बल्कि इसलिए कि उनमें पुरुषों जैसी भूख, क्रूरता, असंवेदनशीलता और दरिंदगी नहीं है।
स्त्रियां मन से मज़बूत होती हैं और पुरुष सबसे पहले मन पर ही आघात करता है….फिर स्त्री निरीह हो जाती है। चाहकर भी कुछ नहीं कर पाती अपनी पुरानी स्थिति में लौटने के लिए। जाने कब से ये होता रहा है। वो बिना लड़े ही हार मानती रही है, लेकिन समाज में बदलाव के लिए स्त्रियों में बदलाव ज़रूरी है, क्योंकि वो कुछ पुरुष कभी नहीं बदलेंगे।
तो उठो …जागो….अपने स्त्रीत्व को समझो….अपनी शक्ति पर आघात मत सहो, किसी को दिल के इतने करीब ना लाओ कि उसके जाने से असहनीय दर्द हो। पुरुषों से कुछ सीखो, पुरुषों को पुरुषों की ही विद्या से जीतो। किसी के आगे हाथ ना फैलाओ, किसी को जाने से ना रोको, खुद को पहचानो, अपना दिल अपने ही सीने में धड़कने दो फिर सारा जहां तुम्हारा होगा।
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