Ruchi Shukla
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एक धुंधला साया यादों का…
मेरा पीछा सा करता है…
वो बिना बुलाए मेहमां सा…
जब जी चाहे आ जाता है…
सारे ग़म सहकर, चुपरहकर
हंसते-खिलते जीना चाहूं…
तो वो उदण्ड शिशु जैसे…
मेरे जख्मों से खेलता है…
एक धुंधला साया यादों का…
मेरा पीछा सा करता है…
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