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ग़ज़ल : तमन्ना जाग उठती है तेरे कूचे में आने से

Saarthi Baidyanath
Saarthi Baidyanath
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तमन्ना जाग उठती है तेरे कूचे में आने से
तेरे चिलमन हटाने से ज़रा सा मुस्कुराने से
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अजब ही दौर था ज़ालिम ग़ज़ल की नब्ज़ चलती थी
मेरी पलकें उठाने से तेरी पलकें झुकाने से
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कहीं जाओ मगर अच्छे मकां मिलते कहाँ हैं अब
हमारे दिल में आ जाओ ये बेहतर हर ठिकाने से
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पतंगों सा गिरा कटकर तेरी छत पर अरे क़ातिल
कि बाहों में उठाले तू इसी झूठे बहाने से
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हमारे नाम से साक़ी सभी को मय पिला देना
सितारे रतजगों के हैं थके-हारे ज़माने से

#saarthibaidyanath

 

 

 

 

नोट : यह लेखक के निजी विचार हैं और इसके लिए वह स्वयं उत्तरदायी हैं।

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