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ग़ज़ल : ग़ज़ल के वास्ते मैं फिर नई पोशाक लाया हूँ

Saarthi Baidyanath
Saarthi Baidyanath
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हुआ है आज क्या घर में हर इक सामान बिखरा है
उधर ख़ुश्बू पड़ी है और इधर गुलदान बिखरा है
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मुहब्बत क्या है ये जाना मगर जाना ये मरकर ही
लिपटकर वो कफ़न से किस तरह बेजान बिखरा है
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यहीं मैं दफ़्न हूँ आ और उठाकर देख ले मिट्टी
मेरी पहचान बिखरी है मेरा अरमान बिखरा है
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मुझे रुस्वाइयों का ग़म नहीं ग़म है तो ये ग़म है
लबों पर बेज़ुबानों के तेरा एहसान बिखरा है
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ग़ज़ल के वास्ते मैं फिर नई पोशाक लाया हूँ
अलग है बात पुर्ज़ों में मेरा दीवान बिखरा है

#saarthibaidyanath

 

 

 

नोट : उपरोक्त विचारों के लिए लेखक स्वयं उत्तरदायी हैं।

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