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ग़ज़ल : दर्दे-दिल दीजिये

Saarthi Baidyanath
Saarthi Baidyanath
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दर्दे-दिल दीजिये या दवा दीजिये
बस ज़रा सा सनम मुस्कुरा दीजिये
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लूट ले जायेगा कोई रहज़न सनम
आप दिल को हमीं में छुपा दीजिये
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आख़िरी साँस भी ले गया डाकिया
पढ़ उसे भी ख़ुशी से जला दीजिये
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लग रहा है थका वक़्त भी घूमकर
पांव उसके दबाकर सुला दीजिये
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दर्द है ज़ख़्म है लाइए इश्क़ को
इक नया आदमी फिर बना दीजिये
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शोर है भीड़ है यूँ जनाज़े के दिन
सारथी इक ग़ज़ल तो सुना दीजिये

#saarthibaidyanath

 

 

 

नोट : यह लेखक के निजी विचार हैं और इसके लिए वह स्वयं उत्तरदायी हैं।

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