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ग़ज़ल : ज़ख्म ताजा बहुत जरुरी है

Saarthi Baidyanath
Saarthi Baidyanath
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ज़िक्र कुछ यार का किया जाये
ज़िन्दगी आ ज़रा जिया जाये
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हो चुकी हो अगर सज़ा पूरी
दर्दे -दिल को रिहा किया जाये
………………………………………
चाँद छूने के ही बराबर है
मखमली हाथ छू लिया जाये
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ज़ख़्म ताज़ा बहुत जरुरी है
चल कहीं दिल लगा लिया जाये
………………………………………
हसरतें ईद की अधूरी हैं
ख़ामुशी से जता दिया जाये
………………………………………
गुफ़्तगू धड़कनों की जारी है
यार बाती बुझा दिया जाये

#saarthibaidyanath

 

 

 

नोट : यह लेखक के निजी विचार हैं और इसके लिए वह स्वयं उत्तरदायी हैं।

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