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अफसोस है

मन के शब्द
मन के शब्द
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अफसोस है
ईमान भी बाजार मे बिकता यहां अफसोस है ,
बदनाम भी मासूम अब दिखता यहां अफसोस है ।
भूख से व्याकुल परिंदा लौट कर घर आ गया ,
एक भी दाना नहीं दिखता यहां अफसोस है ।
अश्क का सैलाब है गहरे समंदर सा ,
कोई भी मांझी नहीं दिखता यहां अफसोस है ।
जिस्म को उसने सजाकर रख दिया बाजार मे ,
खरीदार कोई भी नहीं दिखता यहां अफसोस है ।
बात मंदिर मस्जिदों मे धर्म की जब भी उठी ,
पाक दामन न कोई दिखता यहां अफसोस है ।
बाजुओं की दम से “प्रखर” बुत बना डाले बहुत ,
एक भी हमराह न दिखता यहां अफसोस है ।।
***

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