Menu
blogid : 19970 postid : 1179657

मनसा वाचा कर्मणा

मन के शब्द
मन के शब्द
  • 55 Posts
  • 11 Comments

मनसा वाचा कर्मणा
संस्कृत की यह सूक्ति अपने में कर्म के उत्पत्ति की सारी अवधारणायें (concepts) छुपाये हुए है । इस कर्मभूमि में घटित होने वाली सारी क्रियाओं का सम्पादन इसी सूत्र से होता है । किसी भी कार्य की रूपरेखा या किसी भी तरह का लक्ष्य निर्धारण कैसे होता है और निर्धारण के बाद कैसे पूरा होता है , मनसा वाचा कर्मणा के सिद्धांत से देख सकते हैं ।
हम किसी भी काम को करने के पहिले उसके बारे में सोचते हैं । माना विद्यार्थी को परीक्षा में अच्छे अंक लाना है , तो सर्व प्रथम उसे अपने मन में निश्चय करना होगा कि उसे अमुक परीक्षा मे अच्छे अंक लाना है । जब तक विद्यार्थी अच्छे अंक लाने हेतु मन नहीं बनायेगा या यह विचार नहीं लायेगा कि उसे परीक्षा मे अच्छे अंक लाना है , तब तक वह उतनी लगनशीलता से अध्ययन नहीं करेगा । उसे लक्ष्य प्राप्ति का निर्धारण करना ही होगा ।
अब मन से उसनें अपना लक्ष्य निर्धारित कर लिया है कि उसे परीक्षा में अच्छे अंक लाना है , इसके लिए कुछ न कुछ संसाधन जैसे स्टेशनरी , पाठ्य पुस्तकें , कोचर आदि की आवश्यकता होगी । उसे अपनें अविभावक या माता पिता से अपनी बात कहनी होगी । इस तरह से मन में सोचने के बाद उसे वाणी के द्वारा व्यक्त करना होगा । परीक्षा में अच्छे अंक लाने के लिए अभी तो केवल मन और वचन से प्रयास किया गया है । कर्म शेष है । ऐसा लगता है कि हमारा लक्ष्य दो चरणों में पूरा हो चुका है मन और वचन से । परीक्षा में अच्छे अंक लाने का काम विद्यार्थी द्वारा चालू है । तो क्या हम कह सकते हैं कि विद्यार्थी का दो तिहाई काम समाप्त हो चुका है । यह पूर्णत: गलत है । जब तब तीसरा चरण पूरा नहीं होता है , कार्य फल शून्य रहता है ।
यह बात सत्य है कि कर्म की अवधारणा चिंतन पर टिकी है । जब तक हम किसी काम के बारे मे सोचेंगे ही नही , तो काम क्या करेंगे । उसे कैसे पूरा करेंगे । लेकिन कोई काम केवल चिंतन मात्र से भी तो पूरा नहीं होता है । उसे पूरा करने के लिए मनसा वाचा के बाद कर्मणा आवश्यक है ।
वैज्ञानिक आधार पर कार्य या काम को निम्नांकित तरह से परिभाषासित किया गया है –
काम = बल * चली गयी दूरी
बल के साथ यदि दूरी नहीं तय की गई है तो किया हुआ कार्य शून्य होगा । बल का प्रयोग कितना भी क्यों न हो । इसी तरह हम मनसा , वाचा ( मन और वाणी ) से खूब सोचें किंतु जब तक कर्मणा अर्थात कार्यरूप मे नहीं जाते , हमारा कार्य शून्य ही रहेगा ।
उदाहरण के तौर पर हम यदि किसी दीवाल को खिसकाने के लिए दिन भर उसे ठेलते रहें , बल लगाते हुए खूब पसीने पसीने हो जायें किंतु विज्ञान की भाषा में कुछ भी काम नहीं हुआ क्यों कि चली गई या दीवाल को खिसकाई गई दूरी शून्य है । इसी तरह मनसा वाचा कर्मणा का सिद्धांत है । हमने जीवन में सफल होनें के लिए खूब सोंचा , खूब योजनायें बनायीं किंतु उन योजनाओं के अनुरूप कार्य नहीं किया तो हम जीवन में सफल नहीं हो सकते हैं ।
सफलता के लिए कर्म अनिवार्य है किंतु इसके साथ यह भी सत्य है कि कि विना सोचे समझे कोई भी कार्य सम्भव नही है । कार्य या लक्ष्य प्राप्ति का प्रथम सोपान विचार अर्थात मनसा है जिस पर वाचा अर्थात संसाधनों की जुगत के साथ ही हम लक्ष्य प्राप्ति का अंतिम सोपान कर्मणा चढ़ते हैं ।
****

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh