कुछ मेरे भी मन की बातें ....
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महफूज़ अपने मुल्क़ की सरहद तो होनी चाहिये
हाँ, सब्र भी रखने की कोई हद तो होनी चाहिये
कोई ना हुई जंग ही पर सैनिक हुए शहीद
दुश्मन कबूले हार अब वो ज़द तो होनी चाहिये
कब तक चलेगा दौर निंदा भर्त्सना का बोलिये
अब बंद सब व्यापार औ ख़ुशामद तो होनी चाहिये
सचिन कुमार @ स्वर
डिस्क्लेमर : उपरोक्त विचारों के लिए लेखक स्वयं उत्तरदायी हैं। जागरण जंक्शन किसी भी दावे या आंकड़े का समर्थन नहीं करता है।
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