Menu

कार्य और कारण

संसार के रंगमंच पर हर व्यक्ति को एक निश्चित भूमिका मिली हुई है.परन्तु अपनी भूमिका से संतुस्ट लोग बहुत कम मिलेंगें.ज्यादातर लोग अपनी भूमिका से निराश और असंतुस्ट रहते हैं.वे अपने को दुखी महसूस करतें है और दूसरों को सुखी इसलिए दूसरों से इर्ष्या करतें हैं.इर्श्याबस दूसरों को नुक्सान पहुँचाने की कोशिश भी करतें हैं.हमें जो संसार के रंगमंच पर अभिनय करने के लिए भूमिका मिली है उसका आधार क्या है?यह एक विशेष प्रश्न है जिसका उत्तर भी आसन नहीं है.संतों के अनुसार हमें जो भूमिका मिली है उसका कारण या आधार कई जन्मों के हमारे कर्म हैं और दूसरे सृष्टी के कारण संस्कार हैं जिसके आधार पर बृहद नाटक चल रहा है.सृष्टि समाप्त होने पर भी कारण संस्कार नस्ट नहीं होते हैं जैसे ट्रेन चली जाती है परन्तु पटरी मौजूद रहती है फिर उसी पटरी पर ट्रेन आती है.संसार में हमारे आने के कारण कभी नस्ट नहीं होंगें क्योंकि उसी कारण संस्कार के आधार पर फिर हमारा आगमन होगा.साधू संतों को मुक्ति या मोक्ष एक सृष्टी भर के लिए मिलता है.फिर सृष्टी होगी तो फिर उनका आगमन होगा.कार्य और कारण सृष्टी में हमेशा चलता रहता है.नए कर्म करने का या मोक्ष के लिए प्रयास करने का कुछ अधिकार भी मनुष्य को है जैसे की हम खड़े होकर एक पैर ऊपर उठा सकते हैं मगर दोनों पैर स]एक साथ ऊपर नहीं उठा सकते हैं.अत:मनुष्य को नए कर्म करने का लिमिटेड अधिकार मिला हुआ है.मानस में खा गया है-होइहें सोई जो राम रची राखा,जो जस करहीं सो तस फल चाखा.और मानस में ही ये भी कहा गया है की-करम प्रधान विश्व करी राखा,को करी तर्क बढावे साखा.अत:कारण के आधार पर कार्य होता है और हर कार्य के पीछे कोई न कोई कारण होता है.हरी ॐ तत्सत.(संत राजेंद्र ऋषि प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ ग्राम-घमहापुर पोस्ट-कन्द्वा जिला-वाराणसी पिन-२२११०६.)