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रक्षाबंधन: अपने शुभ संकल्प से कभी भी विचलित मत होना

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
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हमें दूर भले किस्मत कर दे
अपने मन से न जुदा करना
सावन के पावन दिन भैया
बहना को याद किया करना
बहना ने भाई की कलाई से प्यार बाँधा है
प्यार के दो तार से, सँसार बाँधा है
रेशम की डोरी से सँसार बाँधा है
बहना ने भाई की कलाई से…

बचपन में फिल्म ‘रेशम की डोरी’ का ये गीत राखी के त्यौहार पर जब सुनने को मिलता था तो गीत के इस अंतराल पर ध्यान नहीं जाता था, लेकिन आज जब हम सब भाई बहन एक दूसरे से दूर हैं तो गीत की ये पंक्तियाँ बरबस ही ध्यान अपनी तरहफ खिंच लेती हैं और बहुत भावुक कर देती हैं. भाई बहन के रिश्तों का भी एक संसार है, जो एकदम व्यक्तिगत और बहुत संवेदनशील है. बचपन में बहनें जब अपनी पेन्सिल, रबड़ (इरेजर), पेन, कॉमिक्स (चित्रकथा), पत्रिका या फिर कोई कहानी की किताब नहीं देती थीं तो मैं रक्षाबंधन पर राखी नहीं बंधवाने की धमकी उन्हें देता था, लेकिन रक्षाबंधन के दिन पिताजी की डांट सुनकर चुपचाप राखी बँधवा लेता था. हम लोग एक दूसरे से खूब लड़ते झगड़ते थे, लेकिन हममें से कोई भी स्कूल या फिर कहीं और चला जाता था तो खिड़की के पास बैठकर उसके लौटने का इन्तजार करते थे. माँ के पास जाकर उनसे बार बार पूछते थे कि फैलाने अभी तक आई क्यों नहीं या आया क्यों नहीं? बचपन में जब सभी भाई बहन साथ रहते थे तो रक्षाबंधन का त्यौहार रुठने मनाने और मौज मस्ती करने तक ही सीमित था, लेकिन आज जब एक दूसरे से बहुत दूर हैं तो समझ में आता है कि हमने बचपन रूपी एक पूर्णतः बेफिक्री वाला और बेहद सुखद संसार खो दिया. एक ऐसा संसार जो इस जन्म में अब दुबारा लौट के नहीं आने वाला है. बचपन की स्मृतियाँ जाने अनजाने अक्सर मानस पटल पर उभर आती हैं. बहनों को क्या पसंद और क्या नापंसद था, यह भी याद आने लगता है.

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जहिया तू भउजी के डोली ले अइबअ,
दिदिया क नेग से त बचे न पईबअ,
अचरा में भरी भरी लेइब रुपइया,
गहिना लेइब दस बीस हो
रखिया बंधा ल भईया सावन आईल
जिय तू लाख बरिस हो,
तोहरा के लागे भईया हमरी उमिरिया
बहिना त देले आशीष हो..

लता जी का गया हुआ फिल्म ‘लागी नाही छूटे रामा’ का ये गीत मेरी दीदी को बहुत पसंद था. भविष्य में भाई के विवाह और अपनी आने वाली भाभी को लेकर बहनों की अपनी ही सुन्दर कल्पनाएं और सुखद सोच होती है, लेकिन जब हकीकत से सामना होता है तब मन की सारी कल्पनाएं और सोच एक दर्द भरी टीस के रूप में बदल जाती है. बहनों को यही लगता है कि दूसरे घर से एक लड़की आकर कितनी जल्दी उनके भाई और उसकी हर चीज पर अपना कब्जा जमा ली है, जिस पर पहले कभी उनका अधिकार होता था. अब तो बहनों को कुछ भी देना है तो भाई को भाभी से पूछना पड़ता है. बहनों को यही लगता है कि उनकी भाभी ने अपने रूपजाल और प्यार में फंसाकर भाई को उनसे कोसों दूर कर दिया है. अब भाई पहले की तरह न तो उनकी खोज खबर ही लेता है और न ही उनके दुखदर्द में भागीदार बनता है. शादी के बाद वो कितना बदल गया है? बहने हालाँकि इस सच्चाई को भूल जाती हैं कि वो भी किसी दूसरे के घर गई हुई हैं और वही सब कर रही हैं जो उनकी भाभी कर रही है. रक्षाबंधन के दिन मोबाईल पर बहनें बात करती हैं तो उनका दर्द उनकी रुआंसी आवाज में साफ़ झलकता है. भावनात्मक आवेश के कारण उसदिन मैं भी उनसे कुछ ज्यादा बात नहीं कर पाता हूँ और खुद पर नियंत्रण रखने की बहुत कोशिश करने के बावजूद भी उनसे बिछुड़ने का दर्द आँखों में आंसू बनकर बहने लगता है. मेरे लिए रक्षांबंधन का अर्थ बहनों के सुख दुःख में साथ देने का बचपन से ही प्रतिवर्ष लिया जाने वाला एक शुभ संकल्प है.

दुनिया की जितनी बहनें हैं
उन सबकी श्रद्धा है इसमें
है धरम करम भैया का ये
बहना की रक्षा इसमें है
जैसे सुभद्रा और किशन का
जैसे बदरी और पवन का
जैसे धरती और गगन का
ये राखी बंधन है ऐसा…

लता और मुकेश के गाये फिल्म ‘बेईमान’ के इस गीत में राखी का मूल सन्देश छिपा हुआ है. राखी खरीदते हुए, भेजते हुए और भाई की कलाई पर बांधते हुए बहनों की श्रद्धा राखी के धागो में समां जाती है. भाई न सिर्फ बहन के सुखदुख में साथ देने का बल्कि भाई-बहन के पवित्र रिश्ते के बीच बचपन से पनपे अनुपम प्रेम को जीवित रखने का भी संकल्प लेता है. भाई-बहन के प्यार के प्रतीक के रूप में मनाया जाने वाले त्यौहार ‘रक्षाबंधन’ की शुरुआत कब हुई थी यह तो कहना मुश्किल है, लेकिन सबसे पुरानी कथा इन्द्र की है, जिसमे एक पत्नी ने अपने पति को राखी बाँधी थी. राक्षसों से युद्ध में विजयी होने के लिए इन्द्राणी ने गायत्री मंत्र पढ़कर इन्द्र के दाहिने हाथ मे एक डोरा बाँध दिया था. इन्द्र की विजय हुई और रक्षाबन्धन मनाने के त्योहार की शरुआत हुई. एक और कथा है कि दुष्ट शिशुपाल का वध करते समय घायल हो जाने से भगवान कृष्ण के बाएँ हाथ की अँगुली से खून बह रहा था, तब द्रोपदी ने अपनी साड़ी का टुकड़ा चीरकर कृष्ण की अँगुली में बाँधा था और कालांतर में कृष्ण ने भरी सभा में द्रोपदी का चीरहरण होते समय उसकी लाज बचाई थी. मध्यकालीन युग में जब राजपूत व मुस्लिमों के बीच संघर्ष चल रहा था, उस काल में गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने चितौड़ पर आक्रमण कर दिया. चितौड़ की रानी कर्णावती उस समय विधवा थीं, इसीलिए कमजोर समझ कर बहादुर शाह ने हमला कर दिया. चितौड़ की सेना जब युद्ध में पराजित होने लगी तो अपने प्रजा की सुरक्षा का कोई मार्ग न देख रानी कर्णावती ने मदद पाने के लिए सम्राट हुमायूँ को रक्षासूत्र भेंजी, जिसके बारे में कहा गया है.

येन बद्धो बलि: राजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वामभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल॥
भावार्थ- ‘जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बाँधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुझे बाँधता हूँ, तू अपने शुभ संकल्प से कभी भी विचलित मत होना.’

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हुमायूं मुस्लिम होते हुए भी रक्षाबंधन के इस महत्व को अच्छी तरह से जानता था. राखी बाँधने व भेजने के रूप में बहिन की रक्षा करने वाली हिन्दू परम्परा बहुत गहराई से उसके दिल को छू गई थी, इसीलिए चितौड़ की रानी कर्णावती की राखी पाकर वो अपनी मुँहबोली बहिन की रक्षा के लिये तुरंत चल पड़ा था. सम्राट हुमायूँ ने रानी कर्णावती की रक्षा कर उन्हें बहन का दर्जा दिया और इतिहास के पन्नों में अपना नाम अमर कर दिया. रक्षाबंधन से संबंधित एक और ऐतिहासिक घटना है. हमेशा विजयी रहने वाला अलेक्जेंडर भारतीय राजा पुरू से युद्ध में हार की कगार पर पहुंच गया था. अलेक्जेंडर की पत्नी अपने पति को तनाव में देख बहुत विचलित हो उठीं थी. वो भारतीय संस्कृति की उदारता और रक्षाबंधन के त्योहार की महत्ता से भलीभांति परिचित थीं, इसलिए उन्होंने भारतीय राजा पुरू को राखी भेजी. भारतीय राजा पुरू ने अलेक्जेंडर की पत्नी को बहन मान लिया और युद्ध को रोक दिया. रक्षाबंधन भाई बहन के प्यार और एक दूसरे से भावनात्मक जुड़ाव का बहुत महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक पर्व है. अब तो यह पर्व बहुत वृहद् रूप में प्रतिवर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है. आज के समय में हिन्दुस्तानी लोग अपने परिवार के सदस्यों, गुरुओं, नेताओं, सैनिकों से लेकर वृक्षों तक को राखी बाँध रहे हैं. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सहित कई सामाजिक और धार्मिक संस्थाओं के सदस्य एक दूसरे को राखी बांधते हैं. सभी को रक्षाबंधन पर्व की हार्दिक बधाई.

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