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नई दिल्ली में बुधवार दो नवम्बर को पत्रकारिता के क्षेत्र में दिया जाने वाला प्रतिष्ठित रामनाथ गोयनका पुरस्कार मुख्य अतिथि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हाथों वितरित हुआ. उन्होंने पुरस्कार पाने वालों को बधाई दी. इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, ‘लोगों के पास अब बहुत सारी खबरें आती हैं. इस संदर्भ में विश्वसनीयता बनाए रखना एक बड़ा मुद्दा है और इस समय की सबसे बड़ी मांग है.’ इस बात में कोई सन्देह नहीं कि आज के तकनीकी युग में मीडिया प्रतिष्ठानों के लिए अपनी विश्वसनीयता बनाए रखना सबसे बड़ी चुनौती है और यह जरुरी भी है. सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा गठित एक अंतर-मंत्रालय समिति ने पठानकोट वायुसेना अड्डे पर इस साल जनवरी में हुए आतंकी हमले की लाइव कवरेज के दौरान संवेदनशील जानकारियां देने के आरोप में एनडीटीवी इंडिया न्यूज चैनल पर कार्रवाई करने की सिफारिश की है. सरकार का तर्क है कि ये अहम जानकारियां चरमपंथियों के हाथ में भी आ सकती थी जिससे लोगों की जान ख़तरे में पड़ सकती थी.
भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने एनडीटीवी इंडिया न्यूज चैनल को आदेश दिया गया है कि वह एक दिन के लिए प्रसारण रोके. यदि प्रधानमंत्री ने हस्तक्षेप नहीं किया तो संभवतः ऐसा 9 नवंबर को हो. कुछ पत्रकार और नेता इसे स्वतंत्र मीडिया पर होने वाला मोदी सरकार का शक्ति प्रदर्शन बता रहे हैं तो कुछ इसे मीडिया की हत्या करना बता रहे हैं, किन्तु ये सच कोई लोंगो को नहीं बता रहा है कि अपने मीडिया प्रेम के चलते ही मोदी सरकार ने एनडीटीवी की सज़ा तीस दिनों से कम करके एक दिन कर दी है. जबकि इस मामले में उपयुक्त सजा तो यही है कि राष्ट्रीय सुरक्षा से खिलवाड़ करने वाले गैर जिम्मेदार न्यूज चैनलों को हमेशा के लिए प्रतिबन्धित कर दिया जाये. रामनाथ गोयनका पुरस्कार वितरण समारोह में प्रधानमंत्री मोदी ने कुछ गलत नहीं कहा कि भारत में जहां मीडिया के पास हर चीज और हर किसी के ऊपर टिप्पणी करने की पूरी स्वतंत्रता है, वहीं उसे खुद के ऊपर होने वाली दूसरों की आलोचना पसंद नहीं आती है.
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ अखबार द्वारा आयोजित रामनाथ गोयनका एक्सीलेंस इन जर्नलिज्म अवार्डस समारोह के अंत में प्रधानमंत्री मोदी का आभार व्यक्त करते हुए इंडियन एक्सप्रेस के संपादक राजकमल झा ने अच्छी पत्रकारिता की चर्चा करते हुए कहा, “हम उम्मीद करते हैं कि अच्छी पत्रकारिता उस काम से तय की जाएगी जिसे आज शाम सम्मानित किया जा रहा है, जिसे रिपोर्टर्स ने किया है, जिसे संपादकों ने किया है. अच्छी पत्रकारिता ‘सेल्फी पत्रकार’ नहीं तय करेंगे जो आजकल कुछ ज़्यादा ही दिखते हैं और जो अपने विचारों और चेहरे से स्वयं ही अभिभूत रहते हैं और कैमरे का मुंह हमेशा अपनी तरफ रखते हैं. उनके लिए सिर्फ एक ही चीज़ मायने रखती है, उनकी आवाज़ और उनका चेहरा. इसके अलावा सब कुछ पृष्ठभूमि में है, जैसे कोई बेमतलब का शोर. इस सेल्फी पत्रकारिता में अगर आपके पास तथ्य नहीं हैं तो कोई बात नहीं, फ्रेम में बस झंडा रखिये और उसके पीछे छुप जाइये.”
उन्होंने प्रधानमंत्री को संबोधित करते हुए कहा, ‘शुक्रिया सर कि आपने विश्वसनीयता की बात कही. ये बहुत ज़रूरी बात है जो हम पत्रकार आपके भाषण से सीख सकते हैं. आपने पत्रकारों के बारे में कुछ अच्छी-अच्छी बातें कहीं जिससे हम थोड़े नर्वस भी हैं. आपको ये विकिपीडिया पर नहीं मिलेगा, लेकिन मैं इंडियन एक्सप्रेस के संपादक की हैसियत से कह सकता हूँ कि रामनाथ गोयनका ने एक रिपोर्टर को नौकरी से निकाल दिया था, जब उनसे एक राज्य के मुख्यमंत्री ने कहा था कि आपका रिपोर्टर बड़ा अच्छा काम कर रहा है.’ इंडियन एक्सप्रेस के संपादक राजकमल झा ने कहा कि सरकार की तरफ से की गई आलोचना हमारे लिए इज़्ज़त की बात है. हम जब भी किसी पत्रकार की तारीफ यानि आलोचना सुनें तो हमें फिल्मों में स्मोकिंग सीन्स की तर्ज पर एक पट्टी चला देनी चाहिए कि सरकार की तरफ आई आलोचना पत्रकारिता के लिए शानदार खबर है. मुझे लगता है कि ये पत्रकारिता के लिए बहुत बहुत जरूरी है.
उन्होंने कहा कि ‘इस साल हमारे पास इस पुरस्कार के लिए 562 आवेदन आए. ये बीते ग्यारह सालों के इतिहास में सबसे ज़्यादा आवेदन हैं. ये उन लोगों को जवाब है जिन्हें लगता है कि अच्छी पत्रकारिता मर रही है और पत्रकारों को सरकार ने खरीद लिया है. अच्छी पत्रकारिता मर नहीं रही, ये बेहतर और बड़ी हो रही है. हां, बस इतना है कि बुरी पत्रकारिता ज़्यादा शोर मचा रही है जो पाँच साल पहले नहीं मचाती थी.’ इस वर्ष का रामनाथ गोयनका पुरस्कार वितरण समारोह कई मायनों में महत्वपूर्ण और अविस्मरणीय रहा. सबसे पहले तो गोयनका पुरस्कारों की घोषणा के साथ ही जब इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुख्य अतिथि के रूप में शामिल होने की बात सामने आई तो बहुतों को अचरज हुआ, क्योंकि मोदी को अपने हाथों से कुछ ऐसे पत्रकारों को भी पुरस्कार देना था, जो उनकी सरकार के खिलाफ रिपोर्टिंग किये थे. प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ़ करनी होगी कि उन्होंने इसे सहजता से लिया और बेझिझक कार्यक्रम में शामिल हुए.
इंडियन एक्सप्रेस समूह के संस्थापक रामनाथ गोयनका की स्मृति में प्रतिवर्ष आयोजित किये जाने जाने वाले पुरस्कार समारोह की अध्यक्षता प्रधानमंत्री, उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति या देश के मुख्य न्यायाधीश करते हैं. अतः पीएम मोदी को मुख्य अतिथि के रूप में आमन्त्रित करना स्वाभाविक बात थी. इस कार्यक्रम की दूसरी विशेषता प्रधानमंत्री मोदी की मीडिया प्रतिष्ठानों से अपनी विश्वसनीयता बनाए रखने की अपील है. तीसरी विशेषता पुरस्कार वितरण समारोह के अंत में इंडियन एक्सप्रेस के संपादक राजकमल झा का ‘अच्छी पत्रकारिता’ के ऊपर दिया गया संक्षिप्त भाषण है, जो इन दिनों सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है. सोशल मीडिया पर इंडियन एक्सप्रेस के संपादक राजकमल झा का संक्षिप्त भाषण पूरे समारोह की सबसे बड़ी विशेषता और देश के पत्रकारों के लिए पत्रकारिता का एक बहुत बड़ा सबक भी बन गया है.
इस समारोह की चौथी विशेषता टाइम्स ऑफ इंडिया के पत्रकार और मशहूर लेखक अक्षय मुकुल का पत्रकारिता के क्षेत्र में दिया जाने वाला प्रतिष्ठित रामनाथ गोयनका पुरस्कार प्रधानमंत्री के हाथों लेने से इनकार करना है. उन्हें पुरस्कार प्रदान करने वाली शख्सियत से परहेज था, जो देश का प्रधानमंत्री है. उन्हें मोदी से परहेज था, कोई बात नहीं, किन्तु प्रधानमंत्री पद की गरिमा का ख्याल रखते हुए समारोह में शामिल होना चाहिए था. अक्षय मुकुल को रामनाथ गोयनका पुरस्कार उनकी पुस्तक “गीता प्रेस एंड द मेकिंग ऑफ हिंदू इंडिया” के लिए दिया गया था. अक्षय मुकुल ने इस पुरस्कार वितरण समारोह का बहिष्कार किया था, क्योंकि वो खुद को नरेंद्र मोदी के साथ एक फ्रेम में नहीं देख सकते थे. आखिर उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से ही सही किन्तु पुरस्कार पीएम मोदी से ही तो लिया. उनकी तरफ से हार्पर कॉलिन्स इंडिया के पब्लिशर और प्रधान संपादक कृशन चोपड़ा ने पुरस्कार ग्रहण किया.
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