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नई दुनिया है, नया दौर है,
नई है उमंग.
कुछ थे पहले के तरीके,
तो कुछ हैं आज के रंग ढंग.
रोशनी आके अंधेरों से जो टकराई है,
काले धन को भी बदलना पड़ा है अपना रंग.
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने लोकसभा में साल 2017-18 के लिए केंद्रीय बजट प्रस्तुत करते हुए ये कुछ शेर सुनाए, जिसके आशय भी गहरे थे. कहा गया है कि समझने वाले समझ गए जो ना समझें वो अनाड़ी हैं. अरुण जेटली ने बड़ी चतुराई से पहले की कुछ योजनाओं, जैसे मनरेगा और आधार कार्ड को न सिर्फ अपनाया बल्कि उसकी तारीफ़ करते हुए उसे मजबूती भी प्रदान की. इसके साथ ही उन्होंने कई नई योजनाओं की भी घोषणा की. टेक्स से बचने और कालेधन को लेकर ‘तू डाल डाल तो मैं पात पात’ वाली चालबाजी पर भी उन्होंने रौशनी डाली. वित्त मंत्री ने कहा कि हमारे देश में टैक्स टू जीडीपी अनुपात बहुत कम है. वो प्रत्यक्ष कर की सही तस्वीर पेश नहीं करता है. भारत में 4.5 करोड़ सैलरी पाने वाले हैं, लेकिन टैक्स देने वाले महज एक करोड़ के आस-पास ही हैं. इसी तरह से 13 लाख कंपनियां रजिस्टर्ड हैं, लेकिन रिटर्न केवल 5.7 लाख के लगभग कंपनियों ने ही दाखिल किया है.
बहुत से सक्षम और अमीर लोग टैक्स देने से हिचकते हैं या यों कहिये कि टेक्स देना ही नहीं चाहते हैं. वित्त मंत्री ने कहा कि देश में टैक्स का मौजूदा आलम ये है कि सिर्फ 24 लाख लोग साल भर में 10 लाख रुपये से अधिक की आय होने की घोषणा करते हैं. 99 लाख लोगों ने अपनी वार्षिक आय को 2.5 लाख रुपये से कम घोषित किया है. जबकि देश में बहुत से लोंगों की सम्पन्नता इतनी है कि बीते साल बिजनेस और टूरिज्म के लिए 2 करोड़ लोगों ने विदेश यात्रा की. देश में टैक्स की चोरी करना एक आम धारणा बन चुकी है. जिसका बोझ इमानदार टैक्सपेयर को उठाना पड़ता है. वित्त मंत्री की बात सही है, क्योंकि इस बार मध्यम वर्ग को टेक्स में जो छूट दी गई है उसका बोझ टेक्स चोरों की बजाय पचास लाख व उससे ऊपर की आमदनी पाने वाले लोंगों पर ही सरचार्ज के रूप में डाल दिया गया है. यदि ईमानदारी से गौर किया जाए तो यह किसी भी दृष्टि से न्यायसंगत प्रतीत नहीं होता है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस साल के आम बजट की तारीफ करते हुए इसे भविष्य (Future) का बजट करार दिया है, उन्होंने ‘Future’ शब्द की अपने ही अंदाज में एक अनूठी व्याख्या भी की है. f: यानी फार्मर (किसान): इस बजट में किसानों के लिए बहुत सारी सुविधाएं देने के साथ ही किसानों की आय को 2022 तक दोगुना करने का भी प्रस्ताव है. U: अंडर प्रिविलेज (अभावग्रस्त): यानी इस बजट में दलित, पीड़ित, शोषित, वंचित और महिलाओं के लिए बहुत सी राहत भरी घोषणाएं की गई हैं. T: ट्रांसपेरेंसी (पारदर्शिता): राजनेताओं से लेकर आम जनता तक का कितना पैसा कहां से आएगा और कहां जाएगा, यह बजट में स्पष्ट है. U: अर्बन विकास (शहरी विकास): शहरों को अत्याधुनिक बनाना और वहां की मूलभूत सविधाओं का विकास करना. R: रूरल (ग्रामीण विकास): गाँवों में बसने वाले लोंगों का जीवनस्तर ऊंचा उठाना. E: एम्प्लॉयमेंट (रोजगार): इस बजट में यूथ के लिए रोजगार और स्किल डेवलपमेंट पर पूरा ध्यान दिया गया है. बजट की यही खासियतें उसे फ्यूचर का बजट बनाती हैं.
इन सब अच्छी बातों के अलावा बजट में सरकार ने तीन लाख से ज्यादा के नकदी लेनदेन पर और एक व्यक्ति के द्वारा 2000 रुपये से अधिक बतौर कैश के रूप में राजनीतिक चंदा देने पर रोक लगा दी है. सरकार ने चन्दा लेने के बहाने काले धन को सफ़ेद कर रहे राजनीतिक दलों पर अच्छी नकेल कसी है. देश की आम जनता बहुत दिनों से ऐसी मांग कर रही थी. तीन लाख से ज्यादा के नकदी लेनदेन पर रोक के पीछे मोदी सरकार की मंशा यही है कि लोग नकदीरहित लेनदेन करना सींखे, जिसे सरकार ज्यादा सुरक्षित और पारदर्शी समझती है. दरअसल सरकार की निगाह टेक्स चोरों पर है. एक सर्वे के मुताबिक, देश में करीब 90 फीसदी लेनदेन नकद होते हैं. सरकार चाहती है कि लोग अधिक से अधिक कैशलेस यानि डिजिटल लेनदेन करें, ताकि उनका लेनदेन उजागर हो और वो टेक्स के दायरे में आ जाएँ. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में बार बार नकदीरहित लेनदेन देश के लोंगों से अपनाने को कहते हैं.
मोदी सरकार ने ई-बैंकिंग, डेबिट-क्रेडिट कार्ड, कार्ड स्वाइप या पॉइंट ऑफ सेल (पीओएस) मशीन और डिजिटल वॉलेट की जानकारी देने के लिए विशाल सोशल मीडिया कैंपेंन चलाया हुआ है. किन्तु देशवासियों के लिए इसे अपनाना सरल कार्य नहीं है, क्योंकि देश की 73 फीसदी आबादी के पास इंटरनेट सुविधा ही नहीं है. स्मार्टफोन केवल 29 फीसदी लोंगों के पास है. हमारे देश में मोबाइल इंटरनेट की स्पीड बहुत धीमी है. हमारे देश से ज्यादा तो चीन, श्रीलंका और बांग्लादेश में इंटरनेट की स्पीड है. जाहिर सी बात है कि कैशलेस या कहिये डिजिटल लेनदेन की हमारी मूलभूत तैयारी ही अभी आधी अधूरी है. भारत में नकदी लेनदेन अभी दस-बीस सालों तक जारी रहेगा. इस पर फिलहाल न कोई रोकटोक अभी है और न ही भविष्य में बहुत जल्द लग सकती है. सरकार ने नकदी लेनदेन की तीन लाख की जो सीमा अभी तय की है, वो आम आदमी के लिए एक बड़ी रकम है. देश में फिलहाल अभी तो डिजिटल लेनदेन शुरूआती या शौकिया दौर में ही है.
बजट पर विपक्षी दलों की प्रतिक्रियाएं देंखे तो वो समझदारी की बजाए खीझभरी ज्यादा नजर आती हैं. कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के अनुसार, “जेटली जी ने अच्छा भाषण दिया, शेरो-शायरी की, लेकिन उसका आधार कुछ नहीं.” अर्थात उनकी समझ में कुछ नहीं आया. वामपंथी पार्टियों ने बजट को चालबाजी करार देते हुए यह आरोप भी लगाया कि मोदी सरकार ने पांच राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखकर बजट प्रस्ताव तैयार किए. बजट में उन पांच राज्यों का कोई जिक्र ही नहीं है यानि कि चुनावी आचार संहिता का पालन किया गया है. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री एवं तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी ने बजट को अनुपयोगी और आधारहीन कहा, जो उनकी नाराजगी दर्शाता है. केंद्रीय मंत्री एम वेंकैया नायडू ने बजट की तारीफ़ करते हुए कहा कि बजट से आम लोग खुश होंगे, लेकिन कुछ राजनीतिक पार्टियां गरीब हो जाएंगी. इसलिए हमारे विरोधी कह रहे हैं कि बजट गरीब विरोधी है.’’
अपनी समीक्षा के अंत में बस यही कहूंगा कि मित्रों, राजनीतिक दुनिया के भी दो रंग और दो रास्ते हैं. मशहूर गीतकार आनंद बख़्शी साहब ने हिंदी फिल्म ‘दो रास्ते’ के लिए लिखे एक गीत में क्या खूब कहा है-
एक है ऐसे लोग जो
औरो की खातिर जीते है..
दूसरे वो जो अपनी खातिर
अपनो का खून भी पीते है..
कोई फूल खिलाये
कोई कांटे बिखराए..
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आलेख और प्रस्तुति= सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी, प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम, ग्राम- घमहापुर, पोस्ट- कन्द्वा, जिला- वाराणसी. पिन- 221106
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