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अदिति-बाइसवीं सदी के नारी की महत्वकांक्षा भरी उड़ान

सद्गुरुजी
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अदिति-बाइसवीं सदी के नारी की महत्वकांक्षा भरी उड़ान
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अंतरिक्ष के आखिरी छोर पर
खड़ी एक स्त्री
पक्षियों को पंख
पेट को अन्न आँखों को दृश्य
कवियों को बिम्ब देती है
मैं उस स्त्री का ऋणी हूँ
संसार की समस्त स्त्री जाति को सम्मान देने के लिए ये पंक्तिया किसी कवि ने कही है,परन्तु हमारे समाज में आज भी स्त्री की वास्तविक स्थिति बहुत दयनीय और चिंताजनक है,अधिकतर स्त्रियां दर्द सहते-सहते एक दिन उस दर्द के साथ ही मिट जाती हैं,परन्तु कुछ स्त्रियां ऐसी भी हैं,जो दर्द सहकर मिटती नहीं हैं,बल्कि चंडी का रूप धारण कर दर्द देने वाले को ही मिटा डालती हैं.मैं ऐसी ही एक साहसी लड़की अदिति की आपबीती आपसे साँझा कर रहा हूँ,जिसे मैंने बाइसवीं सदी की नारी कहा है.

कल शाम को चार बजे मैं आश्रम के कमरे में आया तो अदिति (परिवर्तित नाम) को कालेज की सफ़ेद ड्रेस में देखकर मैं हैरान रह गया.उसके साथ सफ़ेद रंग की सलवार कमीज पहनी और गले सफ़ेद दुपट्टा ली हुई उसकी सहेली श्वेता (परिवर्तित नाम) भी थी.अपने आसन पर बैठते हुए मैंने पूछा-अरे अदिति तुम..कब आई ससुराल से..
अदिति पूरी श्रद्धा के साथ अभिवादन कर सिर उठाई और मुस्कुराते हुए एक छोटा सा मिठाई का डिब्बा स्टूल पर रख बोली-दो दिन पहले आई हूँ गुरुजी..आते ही सबसे पहले मैं आपसे मिलना चाह रही थी..आपको मिठाई खिलाना चाह रही थी..आपकी बात सच साबित हुई..मुझे मेरे मनपसंद कालेज में एडमिशन मिल गया..मेरी एक बहुत बड़ी इच्छा पूरी हो गई..अब मैं इंग्लिश विषय से बीए आनर्स करुँगी..और फिर सिविल सर्विसेस की परीक्षा दूंगी..आईएएस अधिकारी बनना मेरे जीवन का सपना है..वो कुछ रूककर आगे बोली-घर में कोई भी आपके यहाँ साथ आने को तैयार नहीं था..इसीलिए आज मैं कालेज से सीधे आपके पास आ रही हूँ..
तुम्हारी ससुराल में कौन गया था लेने तुम्हे..तुम्हारे भैया या पिताजी ..-मैं उसे देखते हुए पूछा.
दोनों मेरी बात सुनकर हंसने लगीं.मुझे खराब लगा तो मैंने डांटा उन्हें-जो मैंने पूछा है उसका जबाब दो..मैं कोई चुटकुले नहीं सुना रहा हूँ..
मेरी डांट सुनकर दोनों खामोश हो गईंं.अदिति सिर झुकाकर गंभीर और धीमे स्वर में बोली-गुरु जी..ससुराल से मैं अकेली आई थी..मुझे लेने के लिए मायके से कोई नहीं गया था..
वो क्यों नहीं गए थे..-मैं आश्चर्य से पूछा.
अदिति मेरी ओर देखते हुए बोली-मेरे पति आनंद (परिवर्तित नाम) और मेरे पिताजी में झगड़ा हो गया है..
अभी तेरी शादी को पंद्रह दिन हुए है..और झगड़ा भी शुरू हो गया..वो क्यों..-मैं पूछा.
अदिति बोली-गुरुजी..मैं अठारह साल की उम्र में अभी शादी करना नहीं चाहती थी..परन्तु घर की ख़राब आर्थिक स्थिति तथा शुगर व हार्ट के मरीज अपने पिताजी की बिगड़ती हुई तबियत को ध्यान में रखते हुए शादी करने के लिए तैयार हुई थी..संयोग से घर और वर दोनों ही बहुत अच्छा मिला था..और दहेज़ के नाम पर कोई मांग भी नहीं थी..सगाई के समय ही मैंने अपने पिताजी और आनंद के सामने ये शर्त रखी थी कि शादी के बाद भी मेरी पढ़ाई जारी रहेगी..दोनों ने ही इस बात पर सबके सामने हामी भरी थी..परन्तु शादी के बाद आनंद अपनी बात से मुकर गया..विवाहिता के रूप में उसके घर जाने के अगले दिन ही वो अपनी दादी के सामने कहने लगा कि मेरे लिए मेरी दादी ही माता पिता और भगवान हैं..अब तुम इनकी सेवा में लग जाओ..और आगे पढ़ने की बात अपने दिमाग से बाहर निकाल दो..
मुझे आनंद की बात इतनी बुरी लगी थी कि उसकी वृद्ध दादी के सामने ही मैंने कह दिया था कि-मैं आगे जरूर पढूंगी..
नहीं..तुम अब आगे नहीं पढ़ोगी..नौकर और नौकरानियों की मदद से तुम अब घर गृहस्थी सम्भालोगी..और दादी की सेवा करोगी..-आनंद ने दादी के सामने अपना आदेश सुना दिया था.
मैंने भी तुरंत क्रोधित होकर प्रतिवाद किया था-मैं आगे जरूर पढूंगी..और आप मुझे रोक नहीं सकते..आपने सबके सामने मुझे आगे पढ़ाने का वचन दिया था..अब अपने दिए हुए वचन से मुकर रहे हैं..
आनंद गुस्से के मारे तिलमिलाते हुए चुप हो गया था.उसकी दादी मुझे समझाईं थीं-बेटी..तू आगे पढ़ने की जिद न कर..और जरा सोच कि तेरे भाग्य कितने अच्छे हैं..जो एक गरीब घर से विदा हो के इस महल में आ गई है..अब तू इस घर की मालकिन है..सबकुछ तेरा ही तो है..
मैं चुप हो गई थी.परन्तु दादी की बात भी मुझे अच्छी नहीं लगी थी.मुझे दादी की सेवा करना..सजना-संवरना..कीमती गहने और साड़िया पहनना..नौकर नौकरानियों को आदेश देना..और पति के शारीरिक सुख के साथ साथ उस आलीशान घर का हर सुख बेकार लग रहा था..मेरा ध्यान तो बस आगे पढ़ने पर था..मैं चाहती थी कि आनंद मुझे विदा करे और में अपना कालेज ज्वाइन करूँ..इसी बात को लेकर आनंद से रोज कलह होती थी..वो मुझे अनपढ़ और गंवार लड़की समझकर एसी लगे बेडरूम के भीतर कभी प्यार से तो कभी जोर जबरदस्ती से शारीरिक प्रेम का लालच देकर मुझे घर-गृहस्थी के बंधन में बांधना चाहता था..वो चाहता था कि मैं गर्भवती हो जाऊं..और बच्चे पैदा करने और उन्हें पालने में ही इतना बीजी हो जाऊं..कि आगे पढ़ने की बात सोच भी न सकूँ..मैं उसकी इस शातिर चाल में फंसी नहीं..और उसकी बात न मानने पर छुड़ौती वाली धमकियों से कभी मैं डरी भी नहीं..
एक दिन तो इसने अपने पति को लात भी मारी थी..-श्वेता हँसते हुए बोली.
ये तो बहुत ख़राब बात सुन रहा हूँ..तुमने ऐसा क्यों किया..-मैं नाराज होते हुए बोला.
अदिति ये सुन मुस्कुराई,फिर गंभीर होते हुए बोली-गुरुदेव..पहले मेरी बात सुन लीजिये..फिर यदि मेरी गलती हुई तो मुझपर नाराज होइएगा..मेरी तरफ देखते हुए वो आगे बोली-मेरे पति आनंद के सुन्दर चेहरे के भीतर छिपी क्रूर व राक्षसी प्रवृति एक दिन मेरे सामने आ गई..वो मुझसे अप्राकृतिक सम्बन्ध बनाना चाहता था..एक रात को जब उसने अपनी मर्दानगी दिखाते हुए ये बात मुसझे कही थी..तो गुस्से में आकर मैंने उसे जोर से एक लात दे मारी थी..वो बिस्तर से छिटककर फर्श पर जा गिरा था..वो कराहने लगा था..उसे काफी चोट आई थी..मुझसे अप्राकृतिक सम्बन्ध बनाने का भूत उतर चूका था..वो देर तक कराहते हुए नीचे फर्श पर ही सो गया था..उस दिन से मेरी उसकी बातचीत तक बंद हो गई थी..
आज के युग में भी मनुष्य के पाशविकता की कोई हद नहीं..तुम्हारा वजूद मिटाने के लिए ही वो ये सब पाशविक तरीके आजमाना चाहता था..ताकि तुम इस तरह के पाशविक भोग-विलास में डूबकर आगे पढ़ने की बात भूल जाओ..-मैं गहरी साँस खींचते हुए बोला.
पर तुम अकेले ही उस घर से क्यों चली आई..ये तुम्हारी मर्यादा के अनुकूल नहीं है..-कुछ देर बाद मैंने पूछा.
आप ठीक कह रहे है गुरुदेव..परन्तु मैं अकेले ही ससुराल से क्यों चली आई..अब मैं आपको बताती हूँ..मैंने अपने पिताजी से फोन पर कई दिन कहा कि मेरे कालेज खुल गए हैं..अब मुझे विदा कराकर ले चलिए..परन्तु वो एक ही बात रटते रहे कि अपने पति को इस बात के लिए मनाओ..मेरी उससे इस विषय पर तीखी बहस हो चुकी है..वो तुम्हे आगे पढ़ाने और विदा करने के लिए तैयार नहीं है..अब मैं उससे बात नहीं करूँगा..मैंने दादी से बात की..वो भी मेरे पति की भाषा बोलने लगीं-अब आगे तुम नहीं पढ़ोगी..और अभी तुम्हारी विदाई भी नहीं होगी..ये मेरी सहेली श्वेता बार बार फोन करके बता रही थी कि अदिति जल्दी आओ..क्लासेस शुरू हो चुकी हैं..आनंद से मेरी बातचीत बंद थी..फिर भी मैंने सोचा कि एक बार इस विषय में उससे प्यार से बात करूँ..मैं खूब सजसंवर कर तैयार हुई..उसकी पसंद की ग्रीन कलर वाली साड़ी पहनी..गहने पहने और फैक्ट्री से उसके लौटने का इंतजार करने लगी..वो शाम को फैक्ट्री से लौटा तो उसके हाथ में एक जीवित मुर्गी थी..कुछ देर बाद वो मुर्गी लेकर मेरे सामने बैठ गया..उसने घर नौकर और नौकरानियों को बुला लिया..और मुर्गी उन्हें दिखाते हुए बोला कि-अरे देखो तो सबलोग..ये मुर्गी पढ़ने के लिए स्कूल जाना चाहती थी..पर मैं इसे अपने घर ले आया..अब स्कूल के बजाय देखो ये कहाँ जाती है..ये कहकर वो मुझे दिखा दिखाकर मुर्गी के पंख नोंच के फेंकने लगा..मानो मेरे पढ़ने के अरमान भरे पंख को नोंच के फेंक रहा हो..कुछ ही देर में लहूलुहान होकर दर्द से छटपटाती मुर्गी को देख मेरा खून खोल उठा..मैं उसके पास गई और चिल्लाकर बोली-तुम आदमी नहीं राक्षस हो..तुम मुझे डरा धमकाकर मेरी पढ़ाई बंद कराना चाहते हो..मुर्गी के पंख नोचकर सोचते हो कि जीवन में मुछ बनने के मेरे अरमान भरे पंखों को नोंच फेंकोगे..मैं कोई मुर्गी नहीं हूँ..मैं अदिति हूँ..तुम कान खोलकर सुन लो..मैं आगे पढूंगी और जीवन में कुछ बनूगीं भी..तुम मुझे रोक नहीं पाओगे..
मेरी बात सुनकर आनंद लहूलुहान तड़फती हुई मुर्गी रसोइये को दे उठ खड़ा हुआ..और मुझे पकड़कर अपने कमरे में ले जाने लगा..मैं उसका हाथ झटककर बोली-छोडो मुझे..मुझे तुम्हारे साथ नहीं रहना है..मैं अपने पिताजी के घर जा रही हूँ..ये सुनकर आनंद गुस्से में आ मेरे गाल पर चांटा जड़ दिया..मैं भी गुस्से से विफरती हुई उसके गाल पर खिंच के एक तमांचा दे मारी..और उसी समय उसका घर छोड़ दिया..मैं अकेले ही अपने पिताजी के घर आ गई..मेरे मायके में सब हैरान परेशान हैं..सबलोग आपसे भी नाराज हैं..उन्हें लगता है कि मैंने आपको फोन किया होगा..और मुझे ये सब करने की सलाह आपने दी होगी..
सारी बात सुनकर मैं कुछ देर के लिए खामोश हो गया.मुझे समझ में ही नहीं आ रहा था कि अदिति ने जो कुछ भी किया है,उसके लिए उसे बधाई दूँ या फिर डांटू.डांटने के लिए मुझे उसकी कोई गलती महसूस नहीं हुई.उसे बघाई देने के लिए पर्याप्त कारण थे.मैं मिठाई का डिब्बा खोलकर उसमे से बर्फी का एक टुकड़ा उठाया और अदिति को देते हुए बोला-मैं तुम्हारे साहस की दाद देता हूँ..प्राचीन भारतीय नारी की तरह तुमने अपने अस्तित्व को मिटाया नहीं बल्कि आधुनिकता से भी आगे बढ़कर आने वाली बाइसवीं सदी की नारी का परिचय कराया है..ये कहकर बर्फी का एक टुकड़ा मैंने श्वेता को भी दिया.
मुझे आपसे यही उम्मीद थी..मैं जानती थी कि आप मेरा दर्द समझेंगे..दो साल पहले जब पिताजी मेरी पढ़ाई बंद कराना चाहते थे..तब आपने ही उन्हें समझा बुझाकर मेरी पढ़ाई जारी रखने में मदद की थी..मैं आपका वो उपकार जीवन भर नहीं भूल सकती हूँ..आपको याद करते ही मेरा मन साहस से भर जाता है..और मुझे हर समय ये लगता है कि आप मेरे साथ हैं..आगे वो कुछ न बोलकर अपनी आँखे पोंछने लगी.
ठीक है..अब तुम जाओ..अपनी पढ़ाई की और अपने जीवन में कुछ बनने की अपनी महत्वकांक्षी उड़ान भरना जारी रखो..मैं तुम्हारे पिताजी और तुम्हारे पति से इस बारे में बात करूँगा..-मैं कुछ सोचते हुए बोला.
दोनों अभिवादन कर उठ खड़ी हुई और कमरे से बाहर की और चल पड़ीं.तभी मेरे मन में एक भाव उठा और मैं अपने आसन से उठ खड़ा हुआ.सदियों से पराधीन और पीड़ित भारतीय नारी के इस आधुनिक और स्वतंत्र होते स्वरूप को देखकर मैं प्रसन्न था.आने वाले बाइसवीं सदी की नारी निश्चय ही पूरी तरह से स्वतंत्र होगी और उसकी महत्वकांक्षाओं के पंख भी असीमित होंगे.आज उसके पंख कतरने वाले आने वाले कल को उसे खुले आसमान में उड़ता हुआ देखेंगे.!! जयहिन्द !! !! वन्देमातरम !!
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संस्मरण,आलेख और प्रस्तुति=सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कन्द्वा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६.
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