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कुछ साधु संतों के अनैतिक कृत्यों और उन्हें न्यायालय द्वारा समुचित सजा मिलने से पीडितों को निश्चित रुप से इंसाफ मिला है। लेकिन आध्यात्मिक रूप से जो भारी क्षति हुई है, उसके कारण समूचे भारतीय जनमानस के साथ ही पूरे देश भर में फैला साधु समाज भी बहुत आहत है। सबको यही लग रहा है कि यदि अब जल्द ही साधु संतों के लिए कड़ी आचार संहिता नहीं बनाई गई तो भारतीय सभ्यता और संस्कृति की आध्यात्मिक पहचान तथा वर्तमान समय की समूची संतई ही खतरे में पड़ जाएगी।
हमारे समाज का पढालिखा बुद्धिजीवी वर्ग व्यंगय से कह रहा है कि कुछ मठों और आश्रमों में होने वाले अनैतिक कार्यों और ढोंगी साधु-संतों को देखकर लगता ही नहीं है कि हमारे देश में संन्यास की प्राचीन परंपरा कहीं शेष बची है। साधुओं के लिए कही जा रही ये बातें बहुत कड़वी और शर्मनाक हैं, लेकिन आज के दौर में ये ऐसी हकीकत है, जिससे आप मुंह नहीं मोड़ सकते। देश के जागरूक बुद्धिजीवी और पत्रकार काफी हद तक सही बात कह रहे हैं।
भोगवादी तूफान में आज हमारी सभ्यता, संस्कृति और आध्यात्मिक धरोहर सब कुछ बिखर रही है, लेकिन जागरूक भारतीय समाज और सच्चे साधु संत एकजुट होकर अब भी बहुत कुछ बचा सकते हैं। देशभर के साधु-संतों को एक मंच पर आकर चिंतन करना चाहिए। उन संतों को चिन्हित किया जाना चाहिए, जिनके कारण संत परम्परा बर्बाद हो रही है। अमीरों और सत्ताधीशों के साथ साथ साधु संतों में भी अब धन बटोरने की हवस जाग गई है, जिसका असर उनकी नैतिकता पर भी पड़ा है। संत जगत के वरिष्ठ आचार्यों को मिल बैठ कर इसका हल खोजना होगा, जिससे भारतीय परंपराओं और आध्यात्मिक मर्यादाओं का संरक्षण किया जा सके। आज जो हो रहा है, वह निश्चय ही चिंता का विषय है।
भारत के साधु संत अब दुनिया में ईश्वर भक्त, सिद्ध और त्याग की प्रतिमूर्ति के रूप में नहीं, बल्कि धन दौलत व सत्ता सुख के लालची, भोगी और ढोंगी के रूप में पहचाने जाने लगे हैं। सच्चे साधु संत सनातन भारतीय सभ्यता संस्कृति और आध्यात्मिक धरोहर की ऐसी दुर्दशा होते देखसुनकर भी मौन साधे हुए हैं, यही सबसे दुखद बात है। अब उन्हें चेतना चाहिए। यदि सनातन धर्म प्रेमी भारतीय समाज और सच्चे साधु संत अब भी न जागे तो बहुत देर हो जाएगी। हमारी भारतीय सभ्यता व संस्कृति की मूल पहचान संयास और आध्यात्म आज के समय में जारी भोगवादी पाखंडी आंधी में विलुप्त हो जाएगी। भारतीयों के लिए इससे बडी शर्म की बात और क्या होगी।
जयहिंद।
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