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क्रिकेट जुए व धन की बहती हुई नदी: राष्ट्रीय सुरक्षा खतरे में पर पाकिस्तान से खेल जारी

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
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आईसीसी द्वारा आयोजित की जाने वाली चैंपियंस ट्रॉफी प्रतियोगिता को क्रिकेट का मिनी वर्ल्ड कप भी कहा जाता है. ये एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट के प्रारूप के तहत खेली जाने वाली क्रिकेट प्रतियोगिता है. साल 1998 में चैंपियंस ट्रॉफी की शुरुआत हुई थी. अमूमन दो वर्ष के बाद यह प्रतियोगिता आयोजित की जाती है, लेकिन कई बार ये प्रतियोगिता तीन या चार वर्ष के लम्बे अंतराल के बाद आयोजित की गई. पिछली बार चैंपियंस ट्रॉफी इंग्लैंड में साल 2013 को खेली गई थी, जिसके फाइनल मैच में भारत ने श्रीलंका को 5 रन से हराकर ट्रॉफी अपने नाम की थी. अब साल 2017 में आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी इंग्लैंड और वेल्स में आयोजित की जा रही है, जिसकी शुरुआत एक जून से होगी. यह प्रतियोगिता 18 जून तक चलेगी. इस प्रतियोगिता में भारत का शामिल होना मुश्किल लग रहा था, क्योंकि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) की खेलने के बदले में मिलने वाली रकम को लेकर आईसीसी के साथ निरंतर असहमति बनी हुई थी. मजेदार बात देखिये की इस टूर्नामेंट में भाग लेने के लिए 15 सदस्यीय टीम की घोषणा 25 अप्रैल 2017 को या उससे पहले करना आवश्यक था.

लेकिन क्रिकेट जगत में सबसे धनी क्रिकेट बोर्ड बीसीसीआई की हनक देखिये कि उसने 27 अप्रैल 2017 को पैसे को लेकर आईसीसी से हुए समझौते के बाद टीम की घोषणा करने की कवायद शुरू की, लेकिन वो अभी भी असमंजस में थी कि खेले या न खेलें. बीसीसीआई ने 7 मई, 2017 को एक विशेष आम बैठक भी की, जिसमे यह विचार किया कि उनके द्वारा चैंपियंस ट्रॉफी न खेलने पर आईसीसी कौन सी कार्रवाई करेगा. अन्तोगत्वा इस बैठक में उसने निर्णय लिया कि भारत टूर्नामेंट में भाग लेगा. टीम के खिलाड़ियों के नाम की घोषणा उसने 8 मई 2017 को की. इस पूरे प्रकरण में बीसीसीआई के व्यवहार पर यदि आप गौर करें तो यही पाएंगे कि वो पैसा कमाने की एक इंडस्ट्री भर बन के रह गई है, जिस पर भारत सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है. क्रिकेट पैसा कमाने और जुआ खेलने का सबसे बड़ा अड्डा बन चुका है. कुछ साल पहले बीसीसीआई के एक सदस्य ने तो यहाँ तक कहा था कि खिलाड़ी बीसीसीआई के अधीन हैं, इंडिया के नहीं. यह ठीक है कि बीसीसीआई एक स्वायत्तशासी संस्था है, लेकिन वो देश से जुडी हुई है, स्वतंत्र नहीं है. केंद्र सरकार और माननीय सुप्रीम कोर्ट उसमे दखलंदाजी कर सकती हैं.

कुछ समय पहले सुप्रीम कोर्ट की दखलंदाजी से ही उसमे बहुत बड़े पैमाने पर व्याप्त भ्रष्टाचार उजागर हुआ. बीसीसीआई पैसे कमाने के लिए उस पाकिस्तान से भी खेलने को तैयार है, जिसकी सीमा पर प्रत्यक्ष रूप से चल रही नापाक हरकतों और कश्मीर में अप्रत्यक्ष रूप से जारी आतंकी गतिविधियों के कारण दोनों देशों के बीच न सिर्फ बहुत ज्यादा तनाव है, बल्कि हर तरह की कूटनीतिक बातचीत भी बंद है. चैंपियंस ट्रॉफी 2017 में भारत का पहला मुकाबला 4 जून को अपने प्रबल शत्रु पाकिस्तान से ही है. अधिकतर भारतीयों की यही राय है कि भारत को पाकिस्तान के खिलाफ क्रिकेट नहीं खेलना चाहिए, क्योंकि वो सीमा पर हमारे सैनिकों को मार रहा है और कश्मीर में आतंकवादियों को हथियार और धन देकर उनका भरपूर सहयोग कर रहा है. जबकि कुछ लोग कह रहे हैं कि भारत को चैंपियंस ट्रॉफी में खेलना चाहिए. बीसीसीआई सहित कुछ और लोग यह तर्क दे रहे हैं कि आईसीसी इवेंट होने के कारण चैंपियंस ट्रॉफी में पाकिस्तान के खिलाफ न खेलने से डिफेंडिंग चैंपियंस भारत के लिए बहुत सी दिक्कतें पैदा हो जाएंगी.

आश्चर्य की बात है कि बीसीसीआई ने पैसे को लेकर कई बैठकें की, लेकिन पाकिस्तान की सीमा पर जारी नापाक हरकतों और देश की राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर कोई मीटिंग नहीं की. बल्कि इसके ठीक उलट बीसीसीआई के एक सदस्य ने एक टीवी न्यूज चैनल पर कहा कि पहले और दूसरे खेल पाकिस्तान से खेले जाने बंद हों, उससे सभी तरह के संबंध तोड़े जाएँ, फिर हम पाकिस्तान से क्रिकेट खेलना बंद कर देंगे. एक नई खबर यह है कि अपनी आर्थिकतंगी दूर करने के लिए पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड (पीसीबी) और राष्ट्रीय सुरक्षा की कीमत पर अपनी अमीरी बढ़ाने के लिए भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के अधिकारी दुबई में मिलने की योजना बना रहे थे. इस बात की भनक लगते ही केंद्रीय खेल मंत्री विजय गोयल ने कहा कि जब तक सीमा पार से आतंकवाद बंद नहीं होगा, तब तक पाकिस्तान के साथ क्रिकेट सीरीज संभव नहीं है. इस मामले में देंखे अब आगे क्या होता है. मेरे विचार से तो मोदी सरकार को चैंपियंस ट्रॉफी में 4 जून को पाकिस्तान से खेलने की मनाही करनी चाहिए थी. उस पर वो अभी तक न जाने क्यों चुप है? दरअसल सच्चाई यह है कि आज के समय में क्रिकेट जुए और धन की एक ऐसी बहती हुई नदी है, जिसमे क्या सत्तापक्ष और क्या विपक्ष, सब के इस खेल से जुड़े हुए बड़े-बड़े मालदार और रसूखदार नेता मुल्क की राष्ट्रीय सुरक्षा को दरकिनार करके भी गोते मारने को व्याकुल रहते हैं.

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