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हिंदुओं से जुड़े राजनीतिक दल और हिंदू संगठनो द्वारा हिंदुओं के बीच बहुत ज्यादा एकता होने के आजकल जो ढोल पीटे जा रहें हैं, जमीनी धरातल पर वास्तव में वैसा कुछ है नहीं। हिंदू आज भी संगठित नहीं है। आपस में वैसा सद्भाव और भाईचारा भी नहीं है, जैसा कि मुस्लिम, ईसाई और सिख आदि दूसरे धर्म के अनुयायियों के बीच है।
हिंदुओं में छुआछूत, ऊँचनीच की भावना और जातिगत भेदभाव पहले की ही तरह आज भी है। आप इन सब को परे रख के सोचें तो भी सोशल मीडिया या किसी भी लेखकीय मंच पर हिंदुओं के बीच एकता की जमीनी हकीकत मालूम पड़ जाएगी। किसी से वाद विवाद हुआ नहीं कि अहंकार में आ उनकी भाषा बदल जाएगी। यहां तक कि जी भर के गाली देने के लिए एक दूसरे का मोबाइल नंबर मांगने लगेंगे।
सच तो यह है कि हिंदुओं के बीच आज भी जमीनी स्तर पर सद्भाव, भाईचारा संवेदनशीलता और एक दूसरे की मदद करने की भावना का बहुत अभाव है। हिंदुओं के बीच चुनाव के समय जो एकता दिखाई देती है, उसका पूरा श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जाता है। उनके नाम और काम की बदौलत हिंदू एकजुट हो जाते हैं। हिंदुओं के बर्तमान के लिए तो यह बहुत अच्छा है, किंतु लंबे भविष्य के लिए नहीं।
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