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तेरी तरह झूठा तेरा प्यार निकला-सोम साहब जी की प्रेम कहानी

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
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तेरी तरह झूठा तेरा प्यार निकला-सोम साहब जी की प्रेम कहानी
दे गयी धोखा हमें नीली नीली ऑंखें,
नीली नीली ऑंखें
सूनी है दिल की महफ़िल,
भीगी भीगी ऑंखें,
ओ भीगी भीगी ऑंखें
ओए हमने ऐतबार किया,
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उल्फत का इकरार किया
हाय रे हमने ये क्या किया,
हाय क्या किया
एक बेवफा से प्यार किया,
उसे नजर को चार किया
हाय रे हमने ये क्या किया,
हाय क्या किया……

फिल्म “आवारा” का ये दर्दभरा गीत सुनकर मैं कुछ असहज सा महसूस करने लगा. मैंने टेप रिकार्डर का बटन दबा उसे स्विच ऑफ कर दिया. कमरे में अजीब सी ग़मग़ीन खामोशी छाई हुई थी. सोम साहब (परिवर्तित नाम) को गुजरे लगभग दो साल हो चुके हैं, लेकिन उनके साथ काम करने वाला कोई भी कर्मचारी उन्हें अभी तक भूला नहीं है. उनका मानवता व शालीनता से परिपूर्ण बात-व्यवहार और हर कार्य में कुशल नेतृत्व आज भी सबको याद है. उनका व्यक्तिगत जीवन बेहद दुखमय और तनावपूर्ण होते हुए भी गहरे प्रेम और अनूठे त्याग की एक ऐसी प्रेम कहानी गढ़ चुका है, जिसे आजीवन उनके मातहत कर्मचारी याद रखेंगे.
यथार्थमय जीवन से जुड़ीं बहुत सी प्रेम कहानियां मैंने देखी व सुनी हैं तथा कइयों में एक गुरु के रूप में समझाने-बुझाने और सही मार्गदर्शन देने की एक अहम भूमिका भी निभाई है. सोम साहब के लिए मै कुछ कर तो नहीं सका, लेकिन आज से दो वर्ष पहले उनके जीवन की त्यागमय व अनूठी प्रेम कहानी को सुनकर बेहद प्रभावित हुआ था. मैं उनके बारे में ही सोच रहा था, तभी मेरे लिए चाय बना रहे पांडे जी बोले- सोम साहब को यही सब उदासी भरे गीत पसंद थे. जब भी उनके घर पर जाता था, उन्हें ऐसे ही गीत सुनते हुए पाता था. मैंने एक बार उनसे हंसी में कहा कि साहब.. ये सब क्या रोने धोने वाले फ़ालतू गीत सुनते रहते हैं. ये टेप रिकार्डर मुझे दे दीजिये.
इसे लेकर तुम क्या करोगे पंडित?- साहब ने पूछा था.
हनुमान चालीसा सुनूंगा.. भजन सुनूंगा.. -यही मैंने कहा था. सोम साहब उसदिन अच्छे मूड में थे. वो ये गोल्डन कलर वाला पुराने मॉडल का टेप रिकार्डर मुझे सौपते हुए बोले थे- ठीक है पंडित.. ले जाओ.. मैं अपने लिए आज एक नया टेप रिकार्डर मंगा लूंगा..
बहुत बहुत धन्यवाद साहब. आपकी दी हुई ये निशानी हमेशा मेरे पास रहेगी.. -टेप रिकार्डर पाकर ख़ुशी से चहकते हुए मैं बोला था- साहब.. टेप रिकार्डर दिए हैं तो कुछ कैसेट भी दे दीजिये.. आपके यहाँ तो सैकड़ो कैसेटें रैक में रखीं हुई हैं..
इनमे से तुम्हारे काम की कोई नहीं पंडित.. फिर भी देख लो.. यदि पसंद आये तो एक दो कैसेट ले लो.. -सोम साहब इतना कहकर अपने कमरे से बाहर निकल गए थे. कुछ देर बाद वापस आये तो दो कैसेट उन्हें दिखाते हुए मैं बोला- साहब.. सब तो फ़िल्मी गीतों के कैसेट हैं.. न हनुमान चालीसा.. न दुर्गापाठ और न ही भजन-सतसंग का कोई कैसेट है..
पंडित.. मन शांत हो और ह्रदय में किसी के प्रति प्रेम का भाव हो तो कुछ भी सुनो.. सब भजन ही है.. खैर.. जाने दो.. तुम ये सब नहीं समझोगे.. तुम बाजार से अपनी पसंद के कैसेट ले लेना.. तुम्हारा काम हो गया न.. अब तुम जाओ.. -सोम साहब उस समय बस यही बोले थे.. मेरी तो आज तक समझ में नहीं आया कि उनके कहने का मतलब क्या था.. -ये कहकर पांडे जी मेरी ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखने लगे.
जीवन में किसी से बहुत गहराई से प्रेम किये हैं.. -मैंने पूछा.
हां.. हाँ.. क्यों नहीं.. सबसे प्रेम किये हैं.. गुरु से.. भगवान से और उस पत्नी से भी जो अब इस दुनिया में नहीं है.. -चाय छानते हुए पांडे जी बोले.
प्रेम के सागर में बहुत गहराई तक जाकर जो गोते लगाता है.. उसका अनंत जीवन त्याग.. सेवा.. बलिदान और आत्मोसर्ग की एक अविस्मरणीय मिसाल बन जाता है और उसकी जीवन नौका बड़ी सरलता व सहजता से भवसागर पार कर जाती है.. -मैंने उन्हें समझाया.
बात आपकी भी मेरे पल्ले नहीं पड़ी.. -पांडे जी ये कहते हुए मुझे चाय का कप थमा दिए और थोड़ी दूर पर स्थित पीढ़े पर बैठकर हंसने लगे.
लालच, स्वार्थ, सामंती प्रवृत्ति और अहंकार जबतक मन पर हावी है.. तबतक सच्चा प्रेम भी समझ में नहीं आएगा.. चाहे वो सांसारिक हो या आध्यात्मिक.. -कुछ पल रूककर मैंने आगे कहा- इस विषय पर कुछ देर बाद हम चर्चा करेंगे.. पहले सोम साहब की प्रेम कहानी सुनाइये..
पांडे जी गंभीर होते हुए बोले- अधिकतर स्त्रियां ममता, प्रेम और वफादारी से परिपूर्ण होतीं हैं.. परन्तु कुछ स्त्रियां स्त्री जाति के नाम पर कलंक भी होती हैं.. जो अपने पति को प्रेम और वफादारी के बदले में धोखा और बर्बादी देती हैं.. मैं अपने विभाग के एक साहब के जीवन में घटी एक सच्ची घटना आपको सुनाने जा रहा हूँ.. वो साहब तो अब इस दुनिया में नहीं हैं.. लेकिन उनकी प्रेम कहानी आज भी हमारे दिलों में जीवित है..
अतीत में गोते लगाते हुए पांडे जी बोले- बाईस साल पहले की ये घटना है.. उस समय सोम साहब जूनियर इंजीनियर थे.. उनकी नई-नई शादी हुई थी.. उनकी पत्नी बहुत सुन्दर और पढ़ीलिखी थी.. एक बहुत अच्छा मकान किराये पर लेकर वो लोग उसमे रहते थे.. साहब सुबह आफिस आते तो फिर देर रात को ही घर लौटते थे.. मैं प्रतिदिन उनके लिए दोपहर का खाना लेने के लिए उनके घर जाता था.. रोज एक दूधवाले को मैं उनके घर में बैठे हुए देखता था.. जो पलंग पर आराम से बैठकर उनकी पत्नी से हंसी मजाक करते हुए अक्सर दिख जाता था.. कई बार ये सब अपनी आँखों से देखने पर मैं सोचने लगा कि साहब से ये बात कहूँ कि न कहूँ..
दो महीने बाद एक दिन मैंने डरते-डरते साहब से कहा- साहब.. मैं जब भी खाना लेने के लिए आपके घर पर जाता हूँ.. वहां पर आपके यहाँ दूध देने को अक्सर आपके पलंग पर आराम से बैठकर आपकी पत्नी से हंसी मजाक करते हुए देखता हूँ.. साहब..आप इस ओर ध्यान दीजिये.. आपके आफिस आने के बाद आपके घर पर जरूर कुछ न कुछ बहुत ही गलत कार्य हो रहा है..
साहब ने मुझे घूर कर देखते हुए कहा- ठीक है पंडित.. मैं अपनी पत्नी से आज बात करूँगा.. तुम जाओ.. और हाँ किसी से तुम इस बात की चर्चा मत करना..
साहब रात को घर गए और इस बारे में अपनी पत्नी से बात किये.. वो सच को छिपाते हुए अपने सुन्दर रूप और नाज नखरों का ऐसा बाण चलाई कि अगले दिन साहब ने मुझे अपने आफिस में बुलाया और मुझे थप्पड़ मारते हुए कहा- पंडित.. तुम झूठ बोलते हो.. मेरी पत्नी मेरी कसम खाके कह रही थी कि दूधवाले से हँसी-मजाक करने की बात एकदम झूठी है.. उलटे वो तुमपर इल्जाम लगा रही थी कि तुम उसे घूरते हो.. बुरी निगाह से उसे देखते हो.. आज से तुम खाना लेने नहीं जाओगे.. मैं किसी और को भेजूंगा.. आज से तुम चालीस किलोमीटर दूर वर्क साईट पर अपनी साईकिल से प्रतिदिन आओ जाओगे.. यही तुम्हारी सजा है.. चलो अब जाओ वर्क साईट पर.. मुझे यहां पर दिखाई मत देना..
पाण्डे जी एक गहरी साँस खीचते हुए आगे बोले- गुरुदेव.. मैं प्रतिदिन साईकिल से चालीस किलोमीटर दूर वर्कसाइट पर आते जाते हुए सोचता था कि हे प्रभु.. ये कैसा न्याय है.. झूठे का बोलबाला और सच्चे का मुंह काला है.. कभी कभी मैं रो देता था..
भगवान सब देखते हैं.. उनके घर में देर है.. पर अंधेर नहीं.. अन्तोगत्वा ये कहावत सत्य साबित हुई. एकदिन सोम साहब को आफिस के काम से दो दिन के लिए शहर से बाहर जाना था.. वो अपनी पत्नी को बताकर सुबह घर से निकल पड़े.. स्टेशन पर पहुंचकर उनका बाहर जाने का कार्यक्रम केंसिल हो गया.. वो अपने घर पहुंचे.. दोपहर का समय था.. घर के बाहर दूधवाले की साईकिल खड़ी थी.. साहब दरवाजा खटखटाने की बजाये खिड़की से झांके तो अंदर का दृश्य देखकर सन्न रह गए.. उनकी पत्नी आपत्तिजनक स्थिति में एक व्यक्ति के साथ पलंग पर लेटी थी.. दोनों हंसहंसकर बातें और अश्लील हरकतें कर रहे थे.. पत्नी की ये बेवफाई देख साहब का खून खोलने लगा.. किसी तरह से अपने ऊपर नियंत्रण कर उन्होंने दरवाजा खटखटाया.. कुछ देर बाद उनकी पत्नी ने दरवाजा खोला..
वो घबराते हुए पूछने लगी- आप बाहर नहीं गए..
साहब कुछ नहीं बोले.. वो घर के अंदर जा दरवाजा भिड़ा दिए.. हाथ में पकड़ा सूटकेस उन्होंने मेज पर रख दिया.. और फिर जाकर गोदरेज की आलमारी खोल अपना लाइसेंसी रिवॉल्वर निकाल लिया.. रिवॉल्वर अपनी सुन्दर पत्नी के माथे सटाते हुए पूछा-बोल.. मेरे प्यार में क्या कमी थी कि तुझे किसी दूसरे मर्द की जरुरत पड़ गई..
आप ये क्या कह रहे हैं.. ये सब झूठ है.. क्या आप को मुझपर विश्वास नहीं है.. -उनकी पत्नी डर के मारे घिघियाते हुए बोली.
आज मैंने अपनी आँखों से तुझे किसी पराये मर्द की बाँहों में पड़े देखा है.. तुझपर अब भी मैं विश्वास करूँ.. -साहब ने चीखते हुए कहा.
यहांपर कोई नहीं है.. आप मुझपर झूठा शक कर रहे हैं.. -उनकी पत्नी साहब से लिपटते हुए बोली.
साहब उसे अपने से दूर धकेल चारपाई के नीचे झुके और वहांपर छिपकर बैठे दूधवाले का हाथ पकड़ उसे चारपाई से बाहर खिंचते हुए बोले- अबे.. तू इसका आशिक है और मर्द का बच्चा है तो चारपाई के नीचे छिपकर क्यों बैठा है.. चल बाहर निकल..
दूधवाला नौजवान हाथ जोड़कर खड़ा हो गया. वो डर के मारे थर थर कांप रहा था.साहब ने दोनों को एक साथ खड़ा कर कहा- अब तुम दोनों सच सच बोलना.. नहीं तो मैं तुम दोनों को गोली मार दूंगा..
उन्होंने दोनों को घूरते हुए पूछा- तुम दोनों एक दूसरे को चाहते हो..
दोनों ने अपनी नजरें और सिर झुकाकर बहुत सहमे हुए और धीमे स्वर में अपने प्रेम प्रपंच को स्वीकार किया. साहब ने कुछ देर सोचा और फिर आलमारी के पास जा तिजोरी खोलते हुए अपनी पत्नी से कहा- तुम अपने कपडे, गहने और जितने रूपये चाहिए, इस आलमारी से निकाल लो.. और सब सामान सूटकेस में भरकर इस दूधवाले के साथ इस घर से बाहर निकल जाओ.. अब मेरे तुम्हारे सारे रिश्ते खत्म..
साहब की पत्नी चुपचाप सिर झुकाकर रोती रही.. और हाथ जोड़कर साहब से माफ़ी मांगती रही..
साहब गुस्से के मारे चिल्लाते हुए बोले- तुम सब सामान लेकर इस व्यक्ति के साथ मेरे घर से बाहर निकल जाओ.. नहीं तो तुमदोनो को गोली मार के मैं अपने आप को भी गोली मार दूंगा..
सोम साहब की पत्नी ने बुरी तरह से डरते और रोते हुए सब सामान सूटकेस में भरा और अपने प्रेमी दूधवाले के साथ घर से बाहर निकल गई.. मंदिर मे शादी कर दूधवाले के घर जाने पर सोम साहब की पत्नी को पता चला कि उसका प्रेमी दूधवाला तो पहले से ही शादीशुदा है और उसके दो बच्चे भी हैं.. सोम साहब की पत्नी ने दूधवाले से अवैध संबंध कायम करके इतना गलत और अनैतिक कार्य किया था कि उसके माता पिता को जब इस बात का पता चला तो वो अपनी बेटी से साफ कह दिए कि हमारे घर के दरवाजे अब तुम्हारी खातिर हमेशा के लिए बंद हो चुके है.. अब तुम उसी दूधवाले के साथ रहो.. और जैसे चाहे वैसे जियो मरो..
कोई और ठिकाना न पा वो दूधवाले की दूसरी पत्नी बनकर रहने लगी.. जबतक उसके पास रूपये और गहने थे.. तबतक उस घर में उसकी खातिर होती रही.. रूपये ख़त्म होने और गहने बिकने के बाद सब गिरगिट की तरह रंग बदलते हुए अपना असली रंग-रूप दिखाने लगे.. उससे गाय भैंस का गोबर फेंकवाने से लेकर खेत तक में काम कराने लगे.. सौतन के रूप आकर छाती पर मूंग दलने के कारण दूधवाले की पहली बीबी तो उससे पहले से ही बहुत खार खाए बैठी थी.. जब घर की मरम्मत कराने, गाय-भैंस खरीदने और बुरी संगत के कारण जुआ खेलने तथा पीने-पिलाने के चक्कर में दूधवाले ने सारे रुपये दो-तीन महीने में ही उड़ा दिए और यहाँ तक कि उसके सभी गहने भी बेच दिए.. तब उसके बाद तो उनके बीच आये दिन लड़ाई-झगड़ा, मारपीट और गाली-गलौज़ सब होने लगा.. कुछ दिन बाद उसे ये सब झेलने की आदत सी हो गई..
दूधवाला पहले से ही पियक्कड़ था.. अब दो बीबियों के प्रेम और उनके बीच होने वाले भीषण लड़ाई-झगडे में फंसकर और ज्यादा पीने लगा.. घर में होने वाली कलह से तंग आकर वो सब कामकाज छोड़ ज्यादातर समय अपने आवारा दोस्तों के साथ नशे में धुत रहकर बिताने लगा.. वो अपनी दोनों बीबियों से आयेदिन मारपीट भी करने लगा.. सोम साहब की पत्नी अपनी गलती पर पछताती और अपने दुर्भाग्य को कोसती हुई सूखने लगी.. अपने अंधकारमय भविष्य को लेकर हरदम चिंतित रहने, बहुत अधिक परिश्रम करने और पौष्टिक भोजन न मिलने के कारण वो अक्सर बीमार रहने लगी.. उसके सीने में दर्द उठने लगा.. रातभर खांसने लगी.. दिनोदिन बढ़ती कमजोरी के कारण उसके शरीर की सुंदरता जाने लगी और उसकी बदकिस्मती देखिये कि उसके गोरे सुन्दर शरीर की सुंदरता पर रातदिन मंडराने वाला उसका प्रेमी भौंरा भी अब उससे दूर भागने लगा.. कुछ समय बाद उसने एक बच्ची को जन्म दिया.. उसे ठीक से पता भी नहीं था कि इस बच्ची का वास्तव में पिता कौन है.. क्योंकि जब उसने सोम साहब का घर छोड़ा तब वह गर्भवती थी..
मैं एक गहरी साँस खींचते हुए बोला- बहुत दुखदाई घटना है.. आपके साहब का क्या हुआ.. फिर शादीविवाह किये की नहीं..
पाण्डे जी बोले- कई साल तक साहब अपनी धोखेबाज पत्नी के गम में घुटते रहे.. अंडा तक नहीं खाने वाले साहब अंडा, मांस, मछली और शराब सब खाने पीने लगे.. एक साल साल बाद सोम साहब अपने घरवालों के बहुत मनाने पर दूसरी शादी किये.. सौभाग्य से उन्हें दूसरी पत्नी बहुत प्रेमी और वफादार मिली.. उसने अपने प्रेम और सेवा से साहब को घुट-घुट के मरने से उबार लिया.. साहब की खाने पीने की सब बुरी आदत भी छूट गई.. भगवान के प्रति उनके मन में फिर से विश्वास और श्रद्धा पैदा हो गई.. प्रतिदिन नियमित रूप से पूजापाठ करने लगे.. दूसरी पत्नी से उनके दो बच्चे हुए.. अब तो दोनों लड़के काफी बड़े हो चुके हैं..
चलो अंत भला तो सब भला.. पहली ओरत चरित्रहीन मिली तो दूसरी चरित्रवान मिली.. अंत में सोम साहब का कल्याण तो हुआ.. -मैं बोला.
पांडे जी बोले- गुरुदेव.. इस प्रेम कहानी का अंत यहीं नहीं हुआ.. सोम साहब ने अपनी गुमराह पहली बीबी और उसकी लड़की का भी कल्याण किया.. बहुत ज्यादा दारु पीने से लीवर ख़राब हुआ और दूधवाला इस दुनिया से चल बसा.. उसके मरते ही उसकी पहली पत्नी शेरनी बन गई.. उसने मोहल्ले वालों और अपने रिश्तेदारों की मदद से असाध्य टीबी रोग से ग्रस्त हो चुकी अपनी सौतन यानी सोम साहब की पहली पत्नी को अवैध, कुलटा और चरित्रहीन बताकर उसकी छह साल की मासूम बच्ची सहित उसे घर से बाहर निकाल दिया..
सोम साहब शहर में तीन मंजिला आलिशान मकान बनवाकर रह रहे थे.. एक दिन दोनों पति-पत्नी गेट के पास स्थित तरह तरह के रंग-बिरंगे फूलों से खिले घर के छोटे से बगीचे को संवारने में लगे थे.. तभी गेट के पास किसी बच्ची के रोने और किसी ओरत के कराहने व खांसने की आवाज सुनाई दी..
कौन है.. कौन है.. -यह कहते हुए सोम साहब की पत्नी ने दरवाजा खोला.. दरवाजा खोलते ही वो गेट की ढाल पर फैला खून देख चीख पड़ीं.. उनकी नजर गेट के पास बैठी मैली-कुचैली फटी हुई साडी ब्लाउज पहनी एक दुबली-पतली बीमार औरत पर पड़ी.. जो खून की उल्टी कर बुरी तरह से खांस रही थी और उसके पास खड़ी होकर फटे-चीथड़े फ्राक में लिपटी एक छह साल की मासूम बच्ची भूख प्यास व्याकुल होकर जोर जोर से रो रही थी.. पत्नी के चीखने की आवाज सुन सोम साहब भागते हुए गेट के पास पहुंचे.. गेट के पास पहुंचकर सोम साहब ने जो कुछ भी देखा, उसे देखकर वो जड़वत से हो गए. उनके मुख से बस इतना ही निकला- तुम.. और इस हाल में..
सोम साहब के इतना कहते ही उनकी पत्नी उस बीमार औरत को पहचान गईं.. वो तुरंत नीचे झुककर उसे उठाते हुए बोलीं- दीदी तुम.. इतनी बुरी हालत में..
सोम साहब चुपचाप खड़े थे.. उनकी पत्नी उन्हें गुस्से से घूरते हुए चिल्लाईं- तुम चुपचाप खड़े तमाशा देख रहे हो.. दीदी खून की उल्टी कर रही हैं.. ये बच्ची भूख प्यास से विलख-विलख कर रो रही है.. पुराने रिश्ते का लिहाज चाहे करो या न करो.. पर एक इंसान होने के नाते क्या तुम्हारे अंदर ज़रा भी इंसानियत शेष नहीं बची है.. पकड़ो इस बच्ची को.. मैं दीदी को पकड़ती हूँ..
आत्मा को झकझोरने वाली फटकार सुनकर सोम साहब पूरी तरह से होश में आ गए.. क्या करें और क्या न करें की दुविधा से बाहर निकल आये.. वो तेजी से आगे बढ़ बच्ची को गोद में उठा लिए.. घर के भीतर ले जाकर दोनों को उन्होंने पहले कुछ खिलाया.. फिर नहला धुलाकर साफ़-सुथरे कपडे पहनाये.. नंगे पैर बहुत दूर तक चलने के कारण दोनों के पैरों में हो गए घावों पर उन्होंने मलहम लगाया.. उसी दिन शाम को सोम साहब ने दोनों को ले जाकर एक अच्छे डॉक्टर को दिखाया.. बच्ची की हालात ज्यादा खराब नहीं थी.. वो केवल कुपोषण की शिकार थी.. किन्तु उनकी पत्नी तपेदिक रोग की असाध्य स्थिति में थीं.. रोग की गंभीरता को देखते हुए उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती कराना पड़ा.. सोम साहब की दोनों पत्नियों का आपसी प्रेम धीरे धीरे दिनोंदिन बढ़ने लगा..
बच्ची सोम साहब के पांच और चार साल के दोनों लड़कों से इस कदर घुल मिल गई कि ये लगता ही नहीं था कि ये एक पिता के बच्चे नहीं हैं.. सोम साहब दूसरी पत्नी के साथ प्रतिदिन हॉस्पिटल जाते थे.. दोनों घंटो उनकी पहली पत्नी के साथ समय बिताते थे.. दोनों में से कोई एक रात को वहां पर रुक जाता था.. सोम साहब का सामना अकेले में जब भी अपनी पहली पत्नी के साथ होता था.. वो शर्म से नजरें झुका लेती थी.. और हाथ जोड़ के बस माफ़ी मांगती रहती थी.. वो बार बार यही कहती थी कि मेरी बच्ची आपकी है.. उसे अपना लोिजिये.. मुझे अपनी कोई चिंता नहीं.. मैं तो बस कुछ दिनों की मेहमान हूँ.. ये सुनकर सोम साहब कभी उसके मुंह पर हाथ रख देते तो कभी अपने आंसू पोंछने लगते थे..
दो महीने बाद डॉकटरों को महसूस हुआ कि उसके रोग में काफी सुधार हो गया है.. उन्होंने जरुरी दवाएं लिखीं.. रोग से संबंधित सभी आवश्यक निर्देश दिए.. और हॉस्पिटल से छुट्टी दे दी.. सोम साहब उसे लेकर घर आ गए.. दिन-प्रतिदिन सबको लगने लगा कि वो ठीक हो रही है.. सोम साहब की दोनों पत्नियां आपस में ऐसे मिल के रहने लगीं, जैसे सगी बहने हों.. तीनो बच्चे भी आपस में हिलमिल गए थे.. सोम साहब का अपनी पहली पत्नी के लिए फिर से प्रेम उमड़ने लगा.. वो इसे दूसरी पत्नी से छिपाते भी नहीं थे.. क्योंकि वो शिक्षित और संस्कारी ही नहीं.. बल्कि विशाल ह्रदय की स्वामिनी भी थी.. उसने पूरे मन से सोम साहब की पहली पत्नी को अपना लिया था.. बल्कि यों कहे कि उसे अपनी बड़ी बहन बना लिया था..
किन्तु होनी को कुछ और ही मंजूर था.. हॉस्पिटल से घर आने के दो माह बाद एक रोज रात के समय खाने की मेज पर सोम साहब अपनी दोनों पत्नियों के संग हंस बोल रहे थे.. उनकी दूसरी पत्नी ने पहली पत्नी की और देखते हुए कहा- अब आप दोनों की शादी मैं फिर से कराऊँगी.. ताकि वर्षों बाद दो बिछुड़े प्रेमियों का फिर से मिलन हो..
ये सुनकर उनकी पहली पत्नी शर्माते हुए मुस्कुराने लगी.. सोम साहब हंसकर बोले- मेरी नौकरी छुड़ाओगी क्या.. मैंने इन्हे तलाक ही कहाँ दिया था.. छोड़ा ही कहाँ था.. जिससे फिर से शादी करने का सवाल पैदा हो.. हिन्दू धर्म में तो विवाह को जन्म-जन्मांतर का संबंध बताया गया है.. कम से कम सात जन्म तो अब कहीं भी अन्यत्र भागने की मनाही है.
तीनों हंसने लगे.. उसी समय अचानक सोम साहब की पहली पत्नी को खांसी आई.. जो बढ़ती चली गई.. दो बार मुंह से खून की उल्टियाँ हुईं.. सीने में भयंकर दर्द होने लगा.. सोम साहब उसे उठाकर उसके कमरे में ले गए.. बिस्तर पर लिटाकर डॉक्टर को बुलाने के लिए चलने लगे तो उनका हाथ उनकी पहली पत्नी ने कसकर पकड़ लिया और कराहते हुए बोली- मुझे माफ़ कर देना.. मैं फिर आपको धोखा दे के जा रही हूँ.. बच्ची का ख्याल रखना.. वो आपकी अपनी बच्ची है..
दीदी तुम घबराना नहीं.. मैं डॉक्टर साहब को फोन कर दी हूँ.. वो आते ही होंगे.. फ़िलहाल तुम ये दवा खा लो.. -ये कहते हुए सोम साहब की दूसरी पत्नी जैसे ही के बिस्तर पास पहुंची वो चीख पड़ी.. दीदी.. सोम साहब की पहली पत्नी शरीर छोड़ चुकी थी.. सोम साहब के लिए ये भारी सदमा था.. वो अपने कमरे में चले गए और कई घंटे तक कमरे से बाहर ही नहीं निकले.. बस चुपचाप कुर्सी पर बैठकर घंटों न जाने क्या क्या सोचते रहे.. शायद फिल्म ‘रात के अँधेरे में’ का ये दर्दभरा गीत एक बार फिर उनका साथी बन गया था..
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अगर बेवफा तुझको पहचान जाते,
खुदा की कसम हम मोहब्बत ना करते
जो मालूम होता ये अंज़ामे उलफत
तो दिल को लगाने की जुररत ना करते.
जिसे फूल समझा वही खार निकला,
तेरी तरह झूठा तेरा प्यार निकला,
जो उठ जाते पहले ही आँखों से पर्दे
भूल से भी हम तो उलफत ना करते.
मेरा दिल था शीशा हुआ चूर ऐसा,
की अब लाख जोड़ो तो जुड़ ना सकेगा,
तू पत्थर का बुत है पता गर होता
तो दिल टूटने की शिकायत ना करते
अगर बेवफा तुझको पहचान जाते……

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(आलेख और प्रस्तुति= सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी, प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम, ग्राम- घमहापुर, पोस्ट- कंदवा, जिला- वाराणसी. पिन- २२११०६)
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