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कहा जाता है कि भगवान दत्तात्रेय महाराज के अनेकों गुरु थे. माता, पिता, भाई, बहन, मित्र, आम जनता से लेकर पशु, पक्षी और यहाँ तक की धरती व् आसमान, आग, हवा, पानी सबको उन्होंने अपना गुरु माना. जिससे भी उनको कोई न कोई ज्ञान मिला. संसार के जड़ पदार्थों और चेतन प्राणियों की गतिविधियों को देखकर हर एक से उन्हें कुछ न कुछ सीखने को मिला, उसी ज्ञान के आलोक में उनकी भगवद भक्ति चरम शिखर पर पहुंची और भगवान के दशन हुए, उसके बाद तो वो स्वयम भगवद स्वरुप हो गये. भगवान दत्तात्रेय ने अपने दिव्य जीवन दर्शन से यह सिद्ध किया कि व्यक्ति अपने माता-पिता, भाई-बहन, मित्र, शिक्षा देने वाले गुरुजनों और यहाँ तक कि किसी अनजान व्यक्ति से भी जीवन में कभी न कभी और कुछ न कुछ जरुर सीखता है. उपयुक्त समय पर हमें जो सही सलाह दे, हम जब दुविधा में फंसे हों तब हमें जो सही मार्गदर्शन दे, वही सच्चा गुरु है. हर आदमी अपने जीवन में सबसे ज्यादा अपनी स्वयम की गलतियों से सबक सीखता है, इसीलिए संत मार्ग में कहा गया है-
आपही गुरु आपही चेला,
आपही रचे जगत का मेला.
आपही ढूंढे राह अकेला,
आपही काटे सबै झमेला.
जीवन पथ पर चलते हुए किसी दूसरे का अनुभव हमें शिक्षा दे सकता है, परन्तु हमारा अपना निजी अनुभव ही हमारा कल्याण करेगा. महात्मा बुद्ध ने बहुत सही कहा था- अप्प दीपो भव: अर्थात अपना दीपक स्वयम बनो. अपने अनुभव से काम लो. भक्तों का इतिहास यदि हम पढ़ें तो यह पता चलता है की बहुत से भक्त ऐसे हुए हैं जो बिना गुरु के भगवान का दर्शन किये. उन्हें दर्शन देने के बाद भगवान ने उनको उस समय के सच्चे गुरु के पास भेजा. बिना गुरु के भी घर बैठे भगवान की भक्ति करके भगवान का दर्शन किया जा सकता है. गुरु का काम केवल मन की सफाई करना है, ताकि साफ़ मन में भगवान की छवि दिखाई दे सके. व्यक्ति ज्ञान के द्वारा अपनी दृढ इच्छाशक्ति का प्रयोग करके घर बैठे हुए भी अपने गंदे मन की सफाई कर सकता है. यदि कोई सच्चे संत मिल जाएँ तो उनके निर्देशन में भी स्वयम ही भजन साधन करके यह कार्य करना पड़ता है. करोडो शिष्यों के ह्रदय में बसने वाले गुरु आसाराम बापू की गिरफ्तारी ने पूरे देश का माहौल ख़राब कर दिया है. घर-घर में लोग संतों को कोस रहें है. जो किसी संत के पास जाते थे, वो चुप हैं और मन में भयभीत व् सशंकित हैं. जो किसी संत के पास नहीं जाते थे, उन्हें संतों को जी भरके गाली देने का मौका मिल गया है. हिन्दू धर्म की बहुत बड़ी क्षति हो रही है. अब तो जो सच्चे संत हैं, उन पर भी लोग भरोसा नहीं करेंगें. जो लोग संत प्रेमी हैं और इस समय दुखी हैं, सदमे में हैं, उनसे मै बस यही कहूँगा की वो भगवान की भक्ति जारी रक्खें और अपने दुखी मन को समझाएं कि-
गुरु की करनी गुरु भरेगा,
चेले की करनी चेला,
उड़ जायेगा हंस अकेला.
आज भारतवर्ष में ऊपर से लेकर नीचे तक सब झूठ, फरेब और भ्रस्टाचार के दल-दल में आकंठ डूबे हुए हैं, तभी तो देश की सामाजिक, राजनीतिक व् आर्थिक हर तरफ से दुर्दशा हो रही है.देश तभी सुधरेगा, जब देश का हर व्यक्ति स्वयम को शिक्षा देकर अपने को सुधारेगा. आज जरुरत इस बात की है कि देश का हर व्यक्ति स्वयम का गुरु बने और स्वयम को ही सबसे पहले शिक्षित करे. (सद्गुरु राजेंद्र ऋषिजी प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम ग्राम-घमहापुर पोस्ट-कन्द्वा जिला-वाराणसी पिन-२२११०६)
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