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तेरे मेरे बीच में कैसा है ये बन्धन अन्जाना, मैं ने नहीं जाना, तू ने नहीं जाना, एक डोर खींचे, दूजा दौड़ा चला आए, कच्चे धागे में बंधा चला आए, ऐसे जैसे कोई दीवाना, तेरे मेरे बीच में कैसा है…
दिल्ली की जामा मस्जिद के शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को पत्र लिखा है। यह समाचार जब मैं पढ़ा तो फिल्म ‘एक दूजे के लिए’ में आनंद बख़्शी साहब का लिखा हुआ यह गीत याद आ गया। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से कैसा उनका रिश्ता-नाता है, यह आम हिन्दुस्तानियों के समझ से परे की बात है। साल 2014 में अपने बेटे को नायब इमाम बनाने के कार्यक्रम में उन्होंने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को आने का न्योता भेजा था, जबकि भारतीय प्रधानमंत्री को निमंत्रण न देकर ऐसे उपेक्षित किया था, मानो वे हिन्दुस्तान में नहीं, बल्कि पाकिस्तान में रह रहे हों। आम हिन्दुस्तानियों के समझ से परे ये बात भी है कि आज के आजाद और लोकतांत्रिक दौर में जामा मस्जिद का इमाम आखिर शाही इमाम कैसे बन सकता है? आज हमारे मुल्क में न तो शहंशाह हैं और न ही उनकी शहंशाहियत है। जामा मस्जिद भी देश की दूसरी मस्जिदों की तरह एक मस्जिद भर है।
जामा मस्जिद के इमाम सैयद अहमद बुखारी ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को पत्र लिखकर उनसे अनुरोध किया है कि वे अपने प्रभाव का इस्तेमाल जम्मू-कश्मीर में शांति लाने के लिए करें। उनके अनुसार आज दुनिया का स्वर्ग कश्मीर कत्लगाह बन गया है, इसलिए यहां से जल्द से जल्द हिंसा और खौफ का वातावरण खत्म करने की जरूरत है। बुखारी ने पत्र में शरीफ से कहा है कि वे कश्मीर घाटी के हालात सुधारने के लिए हुर्रियत नेताओं से बातचीत करें और उन्हें समझाएं, ताकि कश्मीर घाटी में अमन कायम हो सके। आश्चर्य की बात है कि भारत सरकार ने आतंकियों व पाकिस्तान के समर्थक तथा अलगाववादी विचारधारा रखने वाले हुर्रियत कांफ्रेंस के संग बातचीत करने से पहले ही साफ़ इनकार किया हुआ है, इस समय कश्मीर में हुर्रियत के चाहने से कुछ नहीं होगा, ये जानते हुए भी नवाज शरीफ को हुर्रियत के नेताओं से बातचीत करने के लिए खत लिखना हास्यास्पद है।
दरअसल, कश्मीर में हुर्रियत की नुमाइंदी दिनोंदिन ख़त्म होती जा रही है। इस समय जम्मू-कश्मीर में आंतकवादी गतिविधियों की बागडोर हिजबुल मुजाहिद्दीन के सरगना सैयद सलाहुद्दीन के हाथों में है, जिसे पाकिस्तान की सरकार ने इस्लामाबाद में रहने की एक ख़ास और सुरक्षित जगह दी हुई है। उसे पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई से पैसा मिलता है। सारी दुनिया जानती है कि कश्मीर घाटी में लड़ाई के लिए पाकिस्तान हिजबुल मुजाहिद्दीन का समर्थन करता है। वर्ष 2012 में सैयद सलाहुद्दीन ने इस बात को न सिर्फ स्वीकार किया था, बल्कि यहां तक कह दिया था कि अगर पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों का समर्थन नहीं किया, तो वो खुद पाकिस्तान पर हमला कर देगा। सैयद सलाहुद्दीन को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने के अमेरिकी सरकार के फैसले के वावजूद भी उस पर कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ा है। कश्मीर घाटी में आज भी उसकी तूती बोलती है और वो नित नए फतवे जारी करता रहता है।
सैयद अहमद बुखारी का नवाज शरीफ को हुर्रियत कांफ्रेंस से बात करने के लिए खत लिखना कश्मीर में हुर्रियत कांफ्रेंस का प्रभाव बढ़ाने का प्रयास हो सकता है, जो लगभग ख़त्म हो चुका है। हो सकता है कि हुर्रियत कांफ्रेंस के नेताओं ने सैयद अहमद बुखारी को यह सलाह दी हो। एक बात और गौर करने वाली है कि कुछ समय पहले जब कश्मीर में आतंकवादी बड़े पैमाने पर हमारे सैनिकों और सुरक्षाबलों को शहीद कर रहे थे, तब इमाम सैयद अहमद बुखारी चुप थे। अब जब बड़े पैमाने पर आतंकवादी मारे जा रहे हैं, तब सुलह समझौते की बात कर रहे हैं। यह बात संदेहास्पद लगती है। पाकिस्तान सीमा पार से आतंकवाद को हर तरह से समर्थन तो दे ही रहा है, इसके साथ ही वो दोगली चाल चलते हुए संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून को बार-बार पत्र लिखकर हस्तक्षेप करने की मांग भी कर रहा है। नवाज शरीफ ने बान की मून को पिछले एक माह में दो बार पत्र लिखकर जम्मू-कश्मीर में मानवाधिकारों के कथित उल्लंघन की जांच करने की मांग की है।
मजेदार बात यह है कि बलूचिस्तान और अपने कब्जे वाले कश्मीर में पाकिस्तान किस तरह से खूनी खेल खेलकर मानवाधिकारों का उल्लंघन कर रहा है, ये सारी दुनिया देख रही है। हिन्दुस्तान के खिलाफ प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों तरह से दुश्मनी निभा रहे पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को खत लिखना मूर्खता और अपने मुल्क के खिलाफ जाना ही कहा जाएगा। भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता तजिंदर बग्गा ने कहा है कि शाही इमाम समय-समय पर अपना देशद्रोही चेहरा दिखाते रहते हैं, वोट बैंक के कारण चंद नेता ऐसे गद्दारों की चरणवंदना करते हैं। देश के आंतरिक मसले पर सीधे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखने के विवाद पर मुस्लिम धर्मगुरु मौलाना सय्यदत अतहर देहल्वी ने भी ट्वीट करके शाही इमाम का विरोध किया है। उन्होंने ट्वीट करके पाकिस्तान के प्रधानमंत्री से वार्ता या अन्य किसी देश के मध्यस्थता को भारत की संप्रभुता के खिलाफ बताया है। मौलाना सय्यदत अतहर देहल्वी ने बहुत काबिले तारीफ़ बात कही है।
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