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मंदिर और पुजारियों की उपयोगिता पर गहन विचार हो

सद्गुरुजी
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मंदिर और पुजारियों की उपयोगिता पर गहन विचार हो
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एक व्यापारी गांव से शहर आकर बस गया और उसने अपना कारोबार शुरू किया.वो अपनी लगन और मेहनत के बल पर कुछ ही सालों के बाद एक बहुत समृद्ध व्यापारी बन गया.अब व्यापारी के मन में ख्याल आया कि उसे समाज के लिए कुछ करना चाहिए.बहुत सोच विचार करने के बाद उसने निर्णय लिया कि वो भगवान शिव का मंदिर एक गांव में और एक शहर में बनवायेगा.मंदिर ऐसा बने कि जिसमे शिवपूजन के साथ साथ सुबह-शाम प्रसाद यानि भोजन की भी व्यवस्था हो,जहाँ आने पर लोंगो को अच्छे संस्कारों की शिक्षा मिले,गरीबों को शरण मिलने के साथ साथ तन ढकने को वस्त्र भी मिले,रोगियों को चिकित्सा और दवा की सुविधा मिले.
सबसे महत्वपूर्ण बात ये कि मंदिर में जाति के आधार पर कोई भेदभाव न हो.लगभग छह महीने में गांव और शहर दोनों जगह मंदिर बनकर तैयार हो गया.व्यापारी ने दोनों मंदिरों में एक एक पुजारी नियुक्त कर दिया.दोनों मंदिरों में पूजापाठ के साथ साथ जनता की सेवा भी होने लगी.कुछ महीने के बाद सेठ जी को पता चला कि शहर के मंदिर में भीड़भाड़ नहीं है,जबकि देहात के मंदिर में शहर से भी लोग जा रहे हैं.अपने आदमियों के जरिये सेठ जी ने इसका कारन पता किया तो मालूम पड़ा कि शहर वाले मंदिर के पुजारी का बात व्यवहार ठीक नहीं है.उसे अपने ब्राह्मण होने का बहुत अहंकार है.देवता की पूजा से ज्यादा अपने पैर पुजवाने का शौक है.वो गृह-नक्षत्रों और पूजापाठ के नाम पर डरा धमकाकर हर व्यक्ति से कुछ न कुछ धन भी ले लेता है.
मंदिर में आने वाले लोगों से उसका बात व्यवहार भी बहुत ख़राब है.इसीलिए बहुत कम लोग मंदिर में आ रहे हैं.इसके ठीक विपरीत गांव वाले मंदिर के पुजारी का बात व्यवहार बहुत अच्छा है.उसकी नजर लोंगो से गलत ढंग से धन वसूलने पर नहीं रहती है.वो अपनी तनख्वाह से ही संतुष्ट है.लोग पुजारी के मृदुल और मित्रवत व्यवहार से आकर्षित होकर मंदिर में खींचे चले आते हैं.सेठ जी ने पुजारियों को और परखने के लिए उनका तबादला करते हुए शहर के पुजारी को गांव वाले मंदिर में और गांव के पुजारी को शहर वाले मंदिर में भेज दिया.कुछ दिन बाद सेठ जी को पता चला कि अब शहर वाले मंदिर में खूब भीड़भाड़ रहने लगी है और देहात वाले मंदिर में सन्नाटा पसरता जा रहा है.अब देहात से लोग शहर वाले मंदिर में आने लगे हैं.
सेठ जी को अब ये बात पूर्णत: समझ में आ गई कि गांववाले मंदिर के पुजारी का बात व्यवहार ठीक नहीं हैं.मंदिर के देवता से ज्यादा महत्वपूर्ण मंदिर का पुजारी है.ये बात सेठ की समझ में अब अच्छी तरह से आ चुकी थी.सेठ जी ने गांव वाले मंदिर के पुजारी को हटाकर एक नया पुजारी नियुक्त कर दिया,जो योग्य तो था ही,मंदिर में आने वाले लोंगो से उसका बात व्यवहार भीं बहुत अच्छा था.थोड़े ही दिनों के बाद गांव वाले मंदिर में भी लोंगो की भीड़ होने लगी.वाराणसी तो मंदिरों का शहर है.यहांपर हर गली में अनेकों मंदिर हैं.कुछ मंदिर के पुजारियों से मेरा वर्षो पुराना परिचय है.कुछ मंदिर के पुजारी काशी की जनता के बीच बहुत लोकप्रिय हैं.जनता उन्हें बहुत आदर सम्मान देती है.जनता और उनके बीच में गहरा भावनात्मक सम्बन्ध है.
मुझे लगता है कि इसका एकमात्र कारण उन पुजारियों का लोंगो से निस्वार्थ प्रेम और मित्रवत व्यवहार है.वो मंदिर में आने वाले लोंगो का दुःख जानकर दुखी हो जाते हैं और अपनी जानकारी के अनुसार उनके दुःख निवारण का उपाय भी बताते हैं.वो उनका कष्ट करने के लिए बिना कुछ लिए पूजापाठ भी करते हैं.कई पुजारी तो जाति-बिरादरी का भेदभाव माने बिना लोंगो के यहाँ आयोजित होने वाले वैवाहिक समारोह में भाग भी लेते हैं.इन पुजारियों की विनम्रता और मित्रवत व्यवहार लोंगो को उनकी और आकर्षित करते हैं.मेरे विचार से यही मंदिर ओर पुजारियों की सर्वोत्तम उपयोगिता है.बहुत से भीड़भाड़ वाले प्रसिद्द मंदिरों में धर्म और आस्था के नाम पर आने वाले दर्शनार्थियों से न सिर्फ आर्थिक लूटपाट की रही है,बल्कि वहां के पुजारियों द्वारा उनके साथ अभद्र व्यवहार भी किया जाता है.अक्सर दर्शनार्थियों से गाली-गलौंज और हाथापाई तक वो कर लेते हैं.
देश के कुछ प्रसिद्द मंदिरों में अब भी पशु-बलि प्रथा जारी है,जो अब पूर्णत:बंद होनी चाहिए.ये मंदिर मंदिर न होकर एक दुकान बन गए हैं और दर्शनार्थी दर्शनार्थी न होकर ग्राहक बन गए हैं.पूरे देशभर में अनगिनत ऐसे मंदिर हैं,जिनके पास अथाह सम्पत्ति है,उनमे से कुछ स्कूल,हॉस्पिटल,अनाथ आश्रम और वृद्धाश्रम आदि स्थापित कर सामाजिक सेवा कार्य कर रहे हैं,परन्तु अधिकतर मंदिर किसी भी सामाजिक सरोकार से नहीं जुड़े हैं और विशुद्ध रूप से मंदिर के जरिये एक धार्मीक व्यवसाय कर रहे हैं.सरकार को ऐसे मंदिरों का अधिग्रहण कर मंदिर की आमदनी को सामाजिक विकास के कार्यों में लगाना चाहिए.सरकार को मंदिर में पूजापाठ करने के लिए योग्य और जनता से भेदभाव रहित मित्रवत व्यवहार करने वाले पुजारियों की नियुक्ति करनी चाहिए,तभी मंदिर और पुजारियों की सही उपयोगिता सिद्ध होगी.
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आलेख और प्रस्तुति=सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कन्द्वा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६.
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