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“साक्षात्कार” मतलब दो व्यक्तियों के बीच प्रश्न और उत्तर के माध्यम से विचारों का आदान प्रदान… या यूँ कहें किसी एक व्यक्ति को जानना!!
हम सभी ने साक्षात्कार तो बहुत लिए और दिए होंगे लेकिन क्या कभी आत्म साक्षात्कार किया है……? मैंने अक्सर लोगों को ये कहते हुए सुना है कि मैं उसे बहुत अच्छी तरह जानता हूँ / जानती हूँ ….. ये कैसे संभव है….?
अगर किसी ने आत्म साक्षात्कार किया होगा तो वह व्यक्ति ऐसा कभी नहीं बोलेगा!! हम खुद को ही नहीं जानते….. किसी दूसरे को जानना बहुत मुश्किल है…. असंभव है…. !!
अभी कुछ दिनों पहले मुझे मेरे एक मित्र ने बोला कि “तुम दुखवादी हो!” मुझे बड़ा कष्ट हुआ सुनकर…. क्रोध भी आया… विश्वास ही नहीं हुआ… कोई कैसे कह सकता है ये ….. !! मैं सोच रही थी मैं तो हर वक़्त हँसती मुस्कराती रहती हूँ…. मेरा चित्त प्रसन्न रहता है…. जो दिमाग में आता है बोल देती हूँ…. फिर मैं कैसे दुखवादी हो गयी….?? मैंने अपने मित्र की बात पर गहन विचार किया…. मैं अपने हर एक कदम पर नज़र रखने लगी… फिर मैंने गौर किया कि मैं जो बातें बोल देती हूँ वो अक्सर दुःख की ही होती हैं…. इसका मतलब कही अन्दर गहरा दुःख समाया हुआ है…. जिससे मैं अनजान हूँ!!
हम खुद को ही नहीं जानते तो किसी दूसरे को कैसे जानेंगे…. लोगों की बोली हुई बातों पर हमारा उपरी मन बहुत जल्दी भरोसा कर लेता है… जैसा किसी ने कह दिया वैसी ही भ्रांतियां हम पाल लेते हैं…किसी ने अगर तारीफ कर दी तो हम उसे ही सच मान बैठते हैं….लेकिन अगर कुछ बुरा बोल दिया तो उसका विरोध करते हैं भले ही हमारा अंतर्मन उस बात को सही समझता हो…..क्योंकि हम अपना एक image बनाकर रहते हैं…. महानता का image …… लेकिन सच्चाई कुछ और होती है..हमारा भीतरी मन हर एक बात को समझता है …… और इस सच्चाई से वाकिफ हम तब होते हैं जब आत्मा साक्षात्कार करते हैं….!! आत्मसाक्षात्कार से हमे शक्ति मिलती है जो जैसा है उसे उसी रूप में स्वीकार करने की….. क्योंकि हम खुद को पहचान चुके होते हैं…. !!
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