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थोड़ी घबराहट सी
थोड़ी गुदगुदाहट सी
दिल में थी
जब मैं पहली बार तुमसे मिली
सोचा था ये पूछेंगे
ये बात करेंगे
लेकिन ये क्या हुआ
सब कुछ भूल गयी
क्या दिलकश अंदाज़ था
तुम्हारे बात करने का
बैठने का, चलने का
और बीच बीच में मुझे देखने का
तुम्हारी हंसी
मेरे दिल के तारो को झंकृत कर रही थी
तुम्हारी मुस्कान
मेरी आँखों की चमक बन रही थी
तुम्हे याद है न
मैं किस तरह एकटक तुम्हे देखे ही जा रही थी
वो इसलिए कि मैं
हर एक लम्हा कैद करना चाहती थी
मैं चाहती थी कि
तुम्हारे जाने के बाद
जब भी मैं अपनी आँखें
बंद करू तो
तुम्हारा हँसता हुआ
मुस्कराता हुआ चेहरा नज़र आये
सोच रही थी ये शाम,
यह वक़्त यही ठहर जाए
थोड़ा मन उदास था
ख़ुशी और गम का साथ था
एक बार फिर बेचैनी थी
तुम्हे जी भरकर देख लेना
चाहती थी
रोक लेना चाहती थी
हमारे दूर जाने का समय
नज़दीक था, फिर
एक पल में ही गायब हो गए
एक सपने कि तरह
क्या यह सपना था मेरा…
नहीं, सच ही तो था
आये तो थे तुम
मुझसे मिलने!!
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